शिक्षकों को घेरने और मूर्तियां तोड़ने के अलावा अब JNU के छात्र महिला पत्रकारों से बदतमीजी भी करने लगे!

जेएनयू

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय को एक बार फिर वहां पढ़ाई कर रहे वामपंथी प्रदर्शनकारियों ने शर्मसार किया है। हाल ही में फ़ीस में वृद्धि के मुद्दे पर कवरेज करने आयीं दो महिला पत्रकारों के साथ उन्होने न सिर्फ बदतमीजी की, अपितु उनके द्वारा की जा रही कवरेज को भी बाधित किया। महिला पत्रकार यहाँ पर जेएनयू में फ़ीस वृद्धि के निर्णय को आंशिक रूप से हटाये जाने के पश्चात की स्थिति कवर करने आयी थीं।

ज़ी न्यूज़ के डीएनए एनालिसिस, जिसका शीर्षक था ‘क्या जेएनयू में धारा 370 लागू है?”, बताता है कि उनके चैनल की दो महिला पत्रकारों ने वहाँ की स्थिति का जायज़ा लेने के लिए जेएनयू में प्रवेश किया था। बता दें कि कुछ हफ्ते पहले जेएनयू प्रशासन ने एक सूची जारी की थी, जिसके अंतर्गत संस्थान की कुछ सुविधाओं के शुल्क में बढ़ोत्तरी की गयी थी। उदाहरण के लिए महज 20 रुपये प्रतिमाह की दर पर मिलने वाला सिंगल सीटर हॉस्टल रूम 600 रुपये प्रतिमाह के दर पर मिलता है। ये तब भी भारत के अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों के मुक़ाबले काफी सस्ता है।

हालांकि, वामपंथी ब्रिगेड ने इसे उनके वर्चस्व के लिए एक खतरे के रूप में देखा और परिसर के भीतर बड़े पैमाने पर विरोध का आयोजन किया, जिससे परिसर का महौल अस्त-व्यस्त सा हो गया। फीस वृद्धि के विरोध के नाम पर, वामपंथी ब्रिगेड ने परिसर के भीतर खूब दंगा मचाया। दीक्षांत समारोह को बाधित करने से लेकर, आधिकारिक उद्घाटन से पहले स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा को खंडित करने तक अराजकतावादियों ने वो सब किया है। फीस वृद्धि के खिलाफ विरोध प्रदर्शन जेएनयू छात्रों के भीतर हठधर्मिता का भाव प्रदर्शित करते हैं। उन्होंने मान लिया है कि जेएनयू में राष्ट्र को मिलने वाले अनुदान पर उन्हें रहने का जन्मसिद्ध अधिकार है, जहां से वे अक्सर भारत विरोधी नारे लगते पाये जाते हैं।

ज़ी न्यूज़ के लिए कवरेज कर रहीं दो महिला पत्रकारों को प्रदर्शनकारी छात्रों के एक समूह ने घेर लिया, जिन्होंने उन्हें ‘गोदी मीडिया गो बैक’ [‘साइकोफेंट मीडिया’ के कर्मियों से दूर रहना], ‘ज़ी न्यूज़ गो बैक’ और ‘ज़ी न्यूज़ मुर्दाबाद!’ जैसे नारे लगाए थे। यह काफी नहीं था, तो प्रदर्शनकारियों ने महिला पत्रकारों के साथ छेड़छाड़ और दुर्व्यवहार करना शुरू कर दिया, यहां तक ​​कि उनके उपकरणों के साथ लाइव कवरेज को बाधित करने का कार्य किया।

डीएनए विश्लेषण की मेजबानी करने वाले पत्रकार सुधीर चौधरी ने ज़ी न्यूज़ के पत्रकारों के साथ हुई अभद्रता की जमकर आलोचना की। उनके विश्लेषण के एक अंश अनुसार, “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का रोना रोने वाले बहुत से लोग हमारे पत्रकारों की उपस्थिति को बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं और उन्होंने उनके प्रति अपनी असहिष्णुता का खुलकर प्रदर्शन किया है। ये लोग अपने लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को आरक्षित करना चाहते हैं । वे भारत विरोधी नारे लगाना चाहते हैं, वे अफजल प्रेमी गिरोह बनाना चाहते हैं। उन्हें सब कुछ करने की आज़ादी है, लेकिन इस देश में किसी को भी उनसे असहमत होने की आज़ादी नहीं है। ”

परंतु यह ऐसा पहली बार नहीं है, जब इन वामपंथी अराजकतावादियों [जो विद्यार्थी होने का दावा करते हैं] ने संस्थान में अराजकता फैलाई हो। कुछ ही दिन पहले स्वामी विवेकानन्द की मूर्ति को कुछ असामाजिक तत्वों ने न केवल क्षतिग्रस्त किया था, अपितु मूर्ति के नीचे बेहद अभद्र भाषा में कुछ शब्द लिखे, जो अधिकतर दक्षिणपंथी विचारधारा और वर्तमान केंद्र सरकार पर निशाना साध रहे थे। इतना ही नहीं, 12 नवंबर को ज़ी न्यूज़ की भांति घटना की कवरेज कर रहे IANS की एक टीम पर भी इन अराजकतावादियों ने हमला किया था।

अपने इस अंधविरोध में जेएनयू के इन अराजकतावादियों ने जेएनयू की महिला सुरक्षाकर्मियों तक को नहीं छोड़ा। 14 नवंबर की रात को महिला सुरक्षाकर्मियों पर हमला किया गया, और उनके साथ बदसलूकी की गयी। इसके बावजूद हमारी मेनस्ट्रीम मीडिया इन अराजकतावादियों को शोषित के तौर पर, और पीड़ित व्यक्तियों को ‘शोषक वर्ग’ के तौर पर प्रदर्शित करती है। इस बात पर मैल्कम एक्स का कथन एकदम सटीक बैठता है, जहां उन्होने मीडिया के इस कुत्सित ट्रेंड के पीछे वर्षों पहले सम्पूर्ण विश्व को आगाह किया था।

जेएनयू में हुई इस घटना से स्पष्ट होता है कि यह संस्थान किस तरह पढ़ने तो छोड़िए, कुछ क्षणों के लिए रहने योग्य भी नहीं बचा है। यूएसए के क्रांतिकारी राष्ट्रपति अब्राहम जोसेफ लिंकन ने एक बार कहा था, ‘पाखंडी: वह व्यक्ति जिसने अपने माता-पिता दोनों की हत्या की, और इस आधार पर दया की याचिका डाली कि वह एक अनाथ था’ । यदि वे जीवित होते, तो जेएनयू की स्थिति को देखकर वे अपने कथन से निराशा में ही सही, पर पूर्णतया सहमत होते।

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