राजनीतिक उथल पुथल के बाद आखिरकार महाराष्ट्र में एनसीपी के टूटने के साथ ही मुख्यमंत्री की घोषणा हो गई। आज तड़के सुबह देवेंद्र फडणवीस ने पूरे देश को चौंकाते हुए मुख्यमंत्री पद की सपथ ली और उनके साथ ही उप मुख्यमंत्री पद की शपथ NCP के नंबर 3 और शरद पवार के भतीजे, अजित पवार ने ली। स्थिति को देखने से तो यही लग रहा है कि NCP दो धड़ों में बंट गयी है। एक धड़ा अजित पवार के साथ है जिसके दम पर वह BJP के साथ सरकार बनाने जा रहे हैं तो वहीं दूसरा धड़ा अभी भी शरद पवार के साथ ही है।
राजनीति के इस खेल में अगर किसी ने सबसे अधिक लाभ लिया है वह है अजित पवार। कांग्रेस, NCP और शिवसेना की सरकार में भी वह बनते उपमुख्यमंत्री ही लेकिन उन्हें वह स्वतंत्र लाभ नहीं मिलता जो उन्हें शरद पवार जैसे राजनीति के माहिर खिलाड़ी के साये से बाहर आ कर मिलेगा।
अजित पवार कोई अधिक सम्मानित नेता नहीं है, उनका नाम भ्रष्टाचार में भी लिप्त रहा है लेकिन यहां पर जो मास्टरस्ट्रोक खेला है वह उन्हें या तो बहुत ऊपर ले जाएगा या फिर गर्त में लेकिन, एक बात तय है कि यह कदम जरूर उन्हें शरद पवार के छाए से दूर हो, आगे बढ़ने में मदद करेगा।
अजित पवार का जन्म 22 जुलाई, 1959 को महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में उनके दादा-दादी के यहां हुआ था। अज़ित पवार एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार के बड़े भाई अनंतराव पवार के बेटे हैं। वह अपने चाहने वालों और जनता के बीच दादा (बड़े भाई) के रूप में लोकप्रिय हैं। अजित पवार ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 1982 में की थी जब वह केवल 20 साल की उम्र के थे। उन्होंने राजनीति में पहले कदम के रूप में एक चीनी सहकारी संस्था के लिए चुनाव लड़ा था। इसके बाद आता है साल 1991 जिसमें, वह पुणे जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष बनते हैं और वह 16 साल तक इस पद पर रहे। अजित 1991 में बारामती निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए, लेकिन उन्होंने अपने चाचा शरद पवार के लिए सीट खाली कर दी, जो उस समय पी.वी. नरसिम्हा राव सरकार में भारत के रक्षा मंत्री थे।
फिर वह उसी वर्ष महाराष्ट्र विधानसभा के लिए चुने गए और नवंबर 1992 से फरवरी 1993 तक कृषि और बिजली राज्य मंत्री रहे। तब तक अज़ित पवार राजनीति में धीरे-धीरे एक बड़ा नाम बन चुके थे। अज़ित पवार की सियासी कर्मभूमि बारामती है, जहां शरद पवार ने भी राजनीति का ककहरा सीखा था। अजित पवार यहां से 1991 से अब तक 7 बार विधायक चुने गए हैं लेकिन वह हमेशा अपने चाचा शरद पवार जैसे बड़े राजनीतिक व्यक्तित्व के छाए में ही रहे।
साल 2010 में कांग्रेस-एनसीपी की सरकार में अजित पवार पहली बार महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री बने। हालांकि सितंबर 2012 में एक घोटाले के चलते उन्हें इस्तीफा देना पड़ा, लेकिन बाद में एनसीपी ने एक श्वेत पत्र जारी किया और कहा कि अजित पवार बेदाग हैं। अजित पवार का विवादों से भी नाता रहा है। उनका नाम महाराष्ट्र में 1500 करोड़ रुपये के सिंचाई घोटाले से भी जुड़ा और वे इस मामले में आरोपी हैं। साल 2013 में एक बयान की वजह से अजित पवार की काफी आलोचना की गई थी। दरअसल, अजित पवार ने सूखे को लेकर 55 दिनों तक उपवास करने वाले कार्यकर्ता पर विवादित टिप्पणी की थी। बाद में अपने इस बयान के लिए सार्वजनिक रूप से माफी भी मांगी। इसी तरह उनपर साल 2014 में बारामती में ग्रामीणों को धमकाने के भी आरोप लागे थे। अजित पवार को कहीं न नहीं ऐसा लगने लगा था कि शरद पवार उनके साथ खेल खेल रहे है और पार्टी की कमान अपनी बेटी सांसद सुप्रिया सुले को सौपेंगे।
शरद पवार ने यह खेल वर्ष 2006 में ही शुरू कर दिया था जब सुप्रिया सुले ने राजनीति के क्षेत्र में कदम रखा था। पहले शरद पवार ने उत्तराधिकार के इस विवाद को सुलझाने के लिए सुप्रिया सुले को केंद्र और अजित पवार को महाराष्ट्र का जिम्मा दिया था लेकिन वह अपनी बात से पलट गए। बाद में शरद पवार ने राष्ट्रवादी युवती कांग्रेस लॉन्च किया और सुप्रिया को इसका चीफ बनाया। इससे राज्य में यह अटकलें तेज हो गईं थी कि शरद पवार अज़ित पवार की जगह पर अपनी बेटी को आगे बढ़ा रहे हैं।
इसलिय उनके लिए यह आवश्यक था कि वह पवार की विरासत को बनाए रखे और अपनी एक अलग पहचान बनाये। इसलिय उन्होंने कुंठा और आकांक्षा में भाजपा के साथ सरकार बनाने का फैसला लिया।
शरद पवार ने इसी वर्ष लोकसभा चुनाव के दौरान अज़ित पवार के बेटे पार्थ की मावल लोकसभा सीट से उम्मीदवारी का ऐलान का विरोध किया था। शरद पवार ने जानबूझ कर अजित को राज्य की राजनीति तक सीमित रखने का स्वांग रचा। उनकी बेटी सुप्रिया सुले साल 2014 के चुनावों में वह महाराष्ट्र के बारामती से निर्वाचित हुईं थी। इस साल अक्टूबर में अजित पवार ने विधानसभा की बारामती सीट की सदस्यता से इस्तीफा दिया तो राजनीतिक गलियारों में पिछले काफी समय से चल रहे परिवार में चल रहे मतभेद के कयास को बल मिल गया था।
लंबे समय से ये बात चल ही रही है कि एनसीपी में शरद पवार का राजनीतिक वारिस कौन है? उनकी बेटी सुप्रिया सुले या भतीजे अजित पवार। लेकिन शरद पवार के कदमो को देखते हुए और सुप्रिया सुले को अधिक तवज्जो देने के कारण अजित पवार को शायद यह समझ में आ गया था कि वह NCP में नंबर 2 ही रह जाएंगे। इसलिय बाहर जाने में ही भलाई है। जो भी हो अजित पवार का यह मास्टर स्ट्रोक ही माना जाएगा जिससे वह सत्ता के केंद्र में आ गए है। अब देखना यह है कि NCP क्या कदम उठती है क्योंकि सुप्रीमो शरद पवार यह कह चुके हैं कि अजित का कदम NCP का नहीं है।