आशुतोष एक ऐसी लड़ाई में एससी का मुद्दा ले आये जिसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं

सख्त कार्रवाई होनी चाहिए इनके खिलाफ

हाल के दिनों में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय चर्चा के केंद्र में बना हुआ है और कारण है विश्वविद्यालय के धर्म संकाय में एक मुस्लिम प्रोफेसर की नियुक्ति। इस नियुक्ति के बाद से छात्र सड़क पर उतर हड़ताल कर रहे है। यही मौका था जब कुछ-एक गिद्ध पत्रकार नजरें गड़ाए थे कि कब उन्हें मदनमोहन मालवीय जी के बगिए को बदनाम करने का मौका मिले। इस मामले के सामने आने और छात्रों के अपने आंदोलन पर अडिग रहने के कारण ऐसे पत्रकारों को मौका भी मिल गया। सभी अपने-अपने हिसाब से रिपोर्टिंग कर इस विश्वविद्यालय को बदनाम करने लगे है और अपना अपना ज्ञान दे रहे है। ऐसे ही एक स्वघोषित पत्रकार और आम आदमी पार्टी के पुराने खिलाड़ी आशुतोष है। इन्होंने इसी मामले को एक ट्वीट किया और सिर को पैर से जोड़ दिया यानि बिना बात के मामले को किसी और बात से जोड़ दिया।

दरअसल, उन्होंने ट्वीट किया कि “बीएचयू: संस्कृत पढने का हक क्या सिर्फ ब्राह्मणों को ही है? क्या ममुसलिम और दलित नहीं पढ सकते?”

यह तो सभी को पता है कि यह मामला संस्कृत धर्म विज्ञान के छात्रों को मुस्लिम प्रोफेसर से जुड़ा है, लेकिन इन गिद्ध पत्रकारों को तो बस जातिवाद करने का मौका चाहिए। ऐसे ही आशुतोष ने इस मुद्दे को भी जातिवाद से जोड़ दिया और बात ममुसलिम और अनुसूचित जाति छात्रों के पढ़ने की बात करने लगे। जबकि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में छात्रों के एडमिशन के दौरान आरक्षण के प्रावधान को सख्ती से लागू किया जाता है।

रही बात प्रोफेसर की नियुक्ति की तो यह अवैध तो नहीं लेकिन अनैतिक जरूर है। क्योंकि जिस धर्म में दूसरे धर्म के व्यक्तियों को काफिर कहा जाता है वह कैसे हिन्दू धर्म के एक मंदिर समान संस्कृत धर्मविज्ञान में शिव-पार्वती की मूर्ति के पैर पड़, गुरुकुल प्रथा के अनुसार शिष्यों पढ़ा सकता है? अगर वह पढ़ाता है तो फिर वह भी काफिर ही कहलाएगा। क्योंकि अच्छा मुस्लिम वही है जो अल्लाह के शब्दों (कुरान 6:115) को मानता है। कुरान 3:85 में यह लिखा है कि जो कोई भी इस्लाम के अलावा अन्य धर्मों की इच्छा रखता है – कभी भी उसे स्वीकार नहीं किया जाएगा, और उसके बाद, वह हारे हुए लोगों में से होगा।

आशुतोष का इस तरह से इस धर्म के मामले को जाति का मामला दिखाता है कि वह इस मुद्दे पर भी हिंदुओं को आपस में ही तोड़ना चाहते है। यह तो हो गयी इनके प्रोपोगेंडे की बात लेकिन अपने इस प्रोपोगेंडे में वह भूल गए कि ‘दलित’ शब्द के प्रयोग पर सरकार रोक लगा चुकी है। केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने सभी राज्यों के प्रमुख सचिवों को लिखित आदेश दिए थे कि अब सरकारी स्तर पर या कहीं भी दलित शब्द का प्रयोग वर्जित होगा। लेकिन फिर भी वह इस प्रकार के शब्द का इस्तेमाल कर छात्रों के बीच फुट डालने की एक नाकाम कोशिश कर रहे है। यही नहीं यह स्वघोषित पत्रकार ने इस मुद्दे को ब्राह्मण और गैर-ब्राह्मण करने की कोशिश की जो कि शर्मनाक है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में कोई भी छात्र किसी भी संकाय में पढ़ सकता है लेकिन आशुतोष जैसे गिद्ध पत्रकार ही है जो बिना बात के ही जातिवाद पत्रकारिता करते है।

विवाद छात्रों और विश्वविद्यालय के बीच है। आशुतोष कैसे दलित और मुस्लिम छात्रों को फ्रेम में ला रहे हैं, यह ऐसी चीज है जिसे हम समझ नहीं पा रहे हैं। अब जब यह स्थापित हो गया है कि विरोध छात्रों और विश्वविद्यालय प्रशासन के बीच है, तो क्या आशुतोष के खिलाफ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर झूठ बोलने और गलत सूचना देकर कर नफरत फैलाने के लिए कार्रवाई की जाएगी? इस तरह के वर्जित शब्दों का इस्तेमाल कर समाज में कलह बढ़ाने के लिए पुलिस को तुरंत संज्ञान लेना चाहिए।

 हालांकि, यह पहला मामला नहीं है जब आशुतोष इस प्रकार की पत्रकारिता कर रहे हैैं।  आशुतोष ने 2016 में सेक्स स्कैंडल मामले में फंसे आम आदमी पार्टी के निष्कासित मंत्री संदीप कुमार का बचाव करते हुए एक ब्लॉग लिखा था। इस ब्लॉग में उन्होंने महात्मा गांधी समेत कई बड़े नेताओं के बारे में आपत्तिजनक बातें लिखी थीं। इसके बाद रोहिणी कोर्ट ने विवादास्पद आम आदमी पार्टी के नेता आशुतोष के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के आदेश दिए थे। इसके अतिरिक्त, आशुतोष उन तीन पत्रकारों में से थे, जिन्होंने डॉ. अजय अग्रवाल पर एक फर्जी स्टिंग ऑपरेशन के लिए अदालत के सामने आत्मसमर्पण किया था। इन सभी तथ्यों से यह साबित होता है कि आशुतोष ध्यान आकर्षित करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते है।

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