‘बीजेपी के पास 119 MLAs’: पटना और बेंगलुरु के बाद अब अमित शाह का फोकस मुंबई प्रोजेक्ट पर है

भाजपा

महाराष्ट्र में पिछले 20 दिनों से जारी कुर्सी के खेल का तो आपको पता ही होगा, इसी खेल की क्रिकेट के खेल से तुलना करते हुए बीते गुरुवार को केंद्रीय परिवहन मंत्री ने कहा था कि ‘क्रिकेट और राजनीति में कुछ भी संभव है। कभी आपको लगता है कि आप मैच हार रहे हैं, लेकिन परिणाम एकदम विपरीत हो जाता है’। उनके कहने के एक दिन बाद ही भाजपा ने इसे साबित भी कर दिया। एक तरफ जहां महाराष्ट्र में शिवसेना, NCP और कांग्रेस सरकार बनाने के बेहद नजदीक दिखाई दे रही थी, तो उसी वक्त महाराष्ट्र भाजपा के अध्यक्ष अचानक से मीडिया के सामने आकर यह कहते हैं कि उनके पास 119 विधायकों का समर्थन हासिल है और भाजपा जल्द ही राज्य में सरकार का गठन करेगी।

दरअसल, कल यानि शुक्रवार को महाराष्ट्र भाजपा के अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने मीडिया के सामने आकर 119 विधायकों के उनके साथ होने की बात कही। एक संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा, भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से हमारी संख्या 119 पहुंच रही है। भाजपा इस संख्या के साथ सरकार बनायेगी। बता दें कि राज्य में स्वतंत्र विधायकों की संख्या 23 हैं और भाजपा के पास अपने खुद के विधायकों की संख्या 105 है। ऐसे में अगर चंद्रकांत पाटिल के दावों को सही मान लिया जाये तो 14 निर्दलीय विधायकों ने भाजपा का समर्थन कर दिया है। महाराष्ट्र की 288 सदस्यीय विधानसभा में सामान्य बहुमत से सरकार बनाने के लिए किसी पार्टी या गठबंधन के पास कम से कम 145 विधायकों का समर्थन होना आवश्यक है, ऐसे में सरकार बनाने के लिए अभी भाजपा को 26 और विधायकों की ज़रूरत है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या भाजपा इन 26 विधायकों को अपने पक्ष में करने में सफल होती है या नहीं।

हालांकि, अगर भाजपा यहां अपने इरादों में सफल हो भी जाती है, तो इससे किसी को कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। इससे पहले भाजपा ऐसे ही चुनावी समीकरणों के बीच कर्नाटका और बिहार में सरकार बना चुकी है। पिछले वर्ष मई में 222 सीटों वाली कर्नाटका विधानसभा के नतीजों में बीजेपी 104 सीटों के साथ सबसे बड़े दल के रूप में सामने आई थी। दूसरे नंबर पर 78 सीटों के साथ कांग्रेस रही थी, जबकि जेडीएस 37 सीटें जीतने में सफल हुई थी। उस वक्त कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए JDS को अपना समर्थन दे दिया था। हालांकि, इस सरकार को झटका तब लगा था जब दो सप्ताह के अंदर-अंदर 18 विधायकों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया और सदन से भी इस्तीफा दे दिया था। 18 विधायकों के कम हो जाने से कर्नाटका विधानसभा का जादुई आंकड़ा कम हो गया था और निर्दलीय विधायकों के साथ मिलकर भाजपा ने अपनी सरकार बना ली थी।

इसी तरह वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में बिहार में महागठबंधन (आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस) की सरकार बनी थी, जिसके मुखिया नीतीश कुमार थे और बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में वे सत्ता की कुर्सी संभाल रहे थे, लेकिन महज़ 20 महीने बाद ये गठबंधन टूट गया और नीतीश कुमार ने बीजेपी के समर्थन से फिर से बिहार में सरकार बना ली थी।

अब हमें ठीक यही सब महाराष्ट्र में भी होता दिखाई दे रहा है, जहां अगर भाजपा के हवाले से सब कुछ सही रहा, तो कुछ दिनों बाद हमें राज्य में भाजपा की सरकार बनती दिख सकती है, और यह जनादेश की सही मायनों में सम्मान होगा। क्योंकि चुनावों के समय देवेन्द्र फडणवीस NDA के CM चेहरा थे, और शिवसेना ने भी भाजपा के नाम पर ही लोगों से वोट बटोरे थे। भाजपा को राज्य में जहां लगभग 1.5 करोड़ वोट्स मिले हैं, तो वहीं शिवसेना को 90 लाख वोट्स ही मिले हैं। और ये 90 लाख वोट भी फडणवीस को सीएम बनाने के लिए लोगों ने दिये हैं, आदित्य ठाकरे को नहीं। ऐसा इसलिए क्योंकि चुनावों से पहले शिवसेना ने आदित्य ठाकरे को सीएम चेहरे के तौर पर कभी प्रोजेक्ट ही नहीं किया था। ऐसे में राज्य में अगर भाजपा अपना सीएम बना लेती है, तो ना केवल यह सिर्फ शिवसेना के लिए एक बड़ा सबक होगा बल्कि यह सही मायनों में जनादेश का भी सम्मान होगा।

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