पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, एक ऐसे व्यक्ति हैं जिनका उनके राष्ट्रवादी विचारों के लिए सभी राजनीतिक दलों में सम्मान किया जाता है। हालांकि, बढ़िया मुख्यमंत्री की बात छोड़िए, क्या वे एक बढ़िया प्रशासक भी हैं? शायद नहीं। उनके राज में पंजाब में न तो ड्रग की समस्या सुलझ पाई और ना ही वे किसानों को पराली जलाने से रोक पाए हैं। दिल्ली-एनसीआर और उत्तर भारत के कई शहरों में जो भयंकर वायु प्रदूषण हुआ, उसका सबसे बड़ा जिम्मेदार पंजाब की ओर से आने वाला पराली जलाने का धुआँ ही था। जिस वक्त कैप्टन साहब को उचित कदम उठाकर अपने किसानों को पराली न जलाने के लिए प्रेरित करना चाहिए था, उस वक्त वो इसका ठीकरा भी केंद्र सरकार पर ही मढ़ रहे थे।
वर्ष 2019 के आंकड़ों से स्पष्ट है कि वे दिल्ली-एनसीआर में जिस स्मोग की चादर ने शहर को अपने चंगुल में लेकर रखा, उसमें 46 प्रतिशत योगदान पराली के धुएँ का था। आकड़ों से यह भी स्पष्ट है कि हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने अपने यहां पराली जलाने पर काफी हद तक काबू पाया है। वहीं इसी दौरान पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। पंजाब में अब तक पराली जलाने के 22,137 मामले सामने आ चुके हैं। आखिर इन सबके लिए कौन जिम्मेदार है? क्या अमरिंदर सिंह को पराली जलाने वाले किसानों को ऐसा करने से रोकना नहीं चाहिए था?
It’s clear from these satellite maps that maximum concentration of live farm fires is in Punjab. @capt_amarinder has failed royally in his duty to ban stubble burning. CM unwilling to enforce law against his vote bank. @mlkhattar @myogiadityanath have done a relatively better job pic.twitter.com/qXGux8qI1c
— Rahul Kanwal (@rahulkanwal) November 5, 2019
वैसे यह इकलौती समस्या नहीं है, जिसे काबू करने में अमरिंदर सरकार विफल साबित हुई हो। पंजाब में ड्रग समस्या बहुत पहले से है। वर्ष 2017 के चुनाव से पहले कांग्रेस ने वादा किया था कि अगर वे चुनाव जीत जाते हैं तो राज्य में नशाखोरी पूरी तरह से समाप्त कर देंगे। स्थिति यह है कि कांग्रेस को सत्ता में आए आज तीन साल होने वाले हैं लेकिन पंजाब की हालत पहले से भी दयनीय होती जा रही है। पंजाब में ड्रग्स की समस्या इतनी बढ़ चुकी है कि आए दिन अखबारों में ड्रग्स की खबरें कहीं न कहीं दिख ही जाती हैं। ड्रग समस्या और ड्रग माफिया न सिर्फ युवाओं को बर्बाद कर रहे हैं बल्कि जांच करने वाले पुलिस अधिकारियों की भी हत्या कर दे रहे हैं। नशा कारोबारी के खिलाफ की गयी कार्रवाई के कारण ही 29 मार्च को मोहाली में एक ड्रग इंस्पेक्टर नेहा शौरी को जान से हाथ धोना पड़ा था।
बीबीसी के आंकड़ों के अनुसार जनवरी और जून 2018 के बीच पंजाब में नशीली दवाओं के दुरुपयोग से 60 मौतें हुईं। जबकि 2017 में ड्रग संबंधित घटनाओं में कुल 30 लोगों की मौत हुई थी। वर्ष 2016 और 2017 में एनडीपीएस अधिनियम (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances ) के तहत अपराधियों के खिलाफ कुल 18,215 प्राथमिकी दर्ज की गई थी। अप्रैल 2017 से अब तक दर्ज की गई एफआईआर की संख्या 23,869 तक पहुंच गई है। सूबे के सामाजिक सुरक्षा विभाग द्वारा वर्ष 2016 के एक आंकड़े के अनुसार पंजाब के गांवो में करीब 67 फीसद घर ऐसे हैं, जहां कम से कम एक व्यक्ति नशे की चपेट में है। पंजाब का दुष्प्रभाव उसके पड़ोसी राज्य हरियाणा पर भी पड़ा है। नशारुपी चिड़िया पंजाब से उड़ती हुई अब हरियाणा और शेष भारत में भी अपना घोंसला बना रही है, जिससे एक बात स्पष्ट है कि पंजाब में अमरिंदर सरकार अपने वादों को पूरा करने में पूरी फिसड्डी साबित हुई है। इसके अलावा राज्य में लॉ एंड ऑर्डर की समस्या भी खड़ी होती जा रही है। एक तरफ जहां महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ते जा रहे हैं, तो वहीं युवाओं में खालिस्तानी सोच फिर से उत्पन्न होने का डर भी पैदा हो रहा है।
अगर पंजाब की राजनीतिक स्थिति का सही से आंकलन किया जाए तो यह स्पष्ट होगा कि पंजाब में कभी जनता सरकार से खुश हो ही नहीं पाई। लोगों के पास मुख्यतः दो विकल्प मौजूद होते हैं। कांग्रेस और अकाली दल। आमतौर पर अकाली दल को सत्ता उस वक्त ही मिली है जब लोग कांग्रेस की सरकारों से तंग आ चुके हों। ऐसे में अकाली दल की सरकार का सर्वाधिक समय पिछली सरकारों का पाप धोने में ही बीत जाता है, और लोग फिर से कांग्रेस को सत्ता पर काबिज कर देते हैं। पंजाब में ऐसा ही होता आया है। यूं तो अकाली दल एनडीए का ही हिस्सा है, लेकिन अकेले भाजपा अपने दम पर राज्य में अपनी मशीनरी को मजबूत नहीं कर पाई है, और इसीलिए लोगों के पास विकल्प की कमी है।
अमरिंदर सरकार बेशक राज्य के मुद्दों को हल करने में नाकाम साबित हुए हो, लेकिन राष्ट्र के मुद्दों पर अमरिंदर सिंह ने अन्य कांग्रेस नेताओं से हटकर देश के हित में बयान दिये हैं। खलिस्तान मुद्दे पर पाक की आईएसआई के एजेंडे को एक्सपोज करना हो, या कनाडा सरकार के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो से अपनी चिंताएँ जाहीर करना हो, अक्सर उन्हें देश के हित में बयान देते हुए सुना गया है। पाक पीएम इमरान खान के पुलवामा हमले में सबूत मांगने पर भी पंजाब के सीएम अमरिंदर सिंह ने खान को करारा जवाब दिया था। उन्होंने अपने ट्वीट में कहा था ‘आपके पास जैश चीफ मसूद अजहर है और वह बहावलपुर में है। वह ISI (पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी) की मदद से हमले की साजिश रच रहा है। जाइए उसको वहां से पकड़िए। अगर आप नहीं कर सकते हैं, तो हमें बताइए। हम आपके लिए ऐसा करेंगे। और हां, मुंबई में 26/11 हमले के सबूतों का क्या हुआ। जो बोलते हो करके दिखाओ।’
Dear @ImranKhanPTI you have Jaish chief Masood Azhar sitting in Bahawalpur & masterminding the attacks with ISI help. Go pick him up from there. If you can’t let us know, we’ll do it for you. BTW what has been done about the proofs of Mumbai’s 26/11 attack. Time to walk the talk. pic.twitter.com/Zct6I7QieY
— Capt.Amarinder Singh (@capt_amarinder) February 19, 2019
इसके अलावा सिद्धू के पाकिस्तान जाने की भी अमरिंदर सिंह कई बार कड़ी निंदा कर चुके हैं। उनका राष्ट्रवादी होना अच्छी बात है लेकिन सीएम के पद पर होते हुए अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करना भी अति आवश्यक हो जाता है। अमरिंदर सिंह की राष्ट्रवादी छवि भले ही आम जनता के बीच उन्हें लोकप्रिय बनाती है, परन्तु राज्य में जमीनी स्तर पर उनके प्रयासों का न दिखाई देना वहां की जनता को काफी निराश भी करती है। ऐसे में वो एक अच्छे व्यक्ति जरुर हो सकते हैं, परन्तु वो एक असफल मुख्यमंत्री साबित हुए हैं। एक अच्छा मुख्यमंत्री होने के लिए उन्हें सिर्फ बयान नहीं, बल्कि काम भी करके दिखाना होगा। जिन भी मुद्दों पर वे विफल साबित हुए हैं, उन्हें उनका हल निकालने की तरफ ध्यान देना चाहिए।