महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की सरकार बन चुकी है। शिवसेना, कांग्रेस और NCP ने जुगलबंदी कर सरकार बनाने के साथ ही एक common minimum program भी जारी किया, जिसके तहत तीनों ही पार्टियां मिलकर सरकार चलायेंगी। इस CMP (Common Minimum Program) में यह प्रस्तावित है कि स्थानीय लोगों के लिए 80 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा।
महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई भारत की आर्थिक राजधानी है। देश के कोने-कोने से हर कोई मुंबई जाना चाहता है और नाम, शोहरत, पैसा सब कुछ कमाना चाहता है। यहां हजारों ऐसे किस्से सुनने को मिल जाएंगे जो अधिकतर एक समान ही होगें। वो किस्से इस प्रकार होंगे कि ‘कैसे एक व्यक्ति एक छोटे से शहर से निकलकर मुंबई आता है और बेहद कम समय में ही अपनी पहचान बना लेता है और एक अच्छी जिंदगी बिताने लगता है।‘ ऐसे किस्से बॉलीवुड से लेकर बड़े-बड़े उद्योगपतियों तक की है। धीरुभाई अंबानी, अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना और गुलजार कुछ उदाहरण हैं जिन्होंने शून्य से शुरू किया और आज स्वयं में एक साम्राज्य खड़ा कर चुके हैं। कई बॉलीवुड कि फिल्मों में इस कहानी हो दिखाया भी गया है। ऐसे कहानी को गुलजार ने बेहद ही संजीदे अंदाज में लिखा भी है।
छोटे छोटे शहरों से, खली बोर दोपहरो से,
हम तो झोला उठके चले, बारिश कम कम लगती हैं,
नदिया मद्धम लगती हैं, हम समुन्दर के अंदर चले।
आज अगर मुंबई भारत की आर्थिक राजधानी है तो अपने व्यवसायिक समुदायों जैसे गुजराती, बोहरा, खोजा मुस्लिम, पारसी, मारवाड़ी और देश के अन्य हिस्सों से आए ऐसे ही लोगों की वजह से। मुंबई के उत्थान का श्रेय अंग्रेजों को भी जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने ही सूरत की जगह मुंबई को अधिक प्रथिमिकता दी जिसके कारण सूरत के सभी व्यवसायी मुंबई की ओर पलायन कर गए। इसलिए साउथ मुंबई में गुजराती समुदाय के लोग ही बहुसंख्यक हैं।
महाराष्ट्र के स्थानिय निवासी व्यवसाय में अधिक रुचि रखते ही नहीं इसलिए अभी तक वहां के व्यवसायिक धंधों पर गैर मराठियों का आधिपत्य रहा है। टाटा हो या बिरला हो या फिर अंबानी, सभी गैर मराठी ही हैं।
सुजाता आनंदन की महाराष्ट्र पर एक पुस्तक महाराष्ट्र मैक्सिमस के अनुसार, “औपनिवेशिक शासकों ने बॉम्बे जैसे तेजी से बढ़ते महानगर को नियंत्रित करने के लिए बॉम्बे म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन (BMC) की स्थापना की थी, लेकिन 1947 तक केवल उन लोगों को वोट देने की अनुमति थी, जो टैक्स भरते थे। यह सच है कि इन आयकरदाताओं में ज्यादातर गुजराती, मुस्लिम बोहरा, पारसी और सिंधी थे।”
मुंबई देश के सबसे बड़े कोस्मोपोलिटन शहरों में से एक है, जिसमें देश के लगभग हर राज्य और क्षेत्र के लोग रहते हैं और इस शहर की अधिकांश आबादी गैर-मराठी ही है।
स्वतंत्रता के समय, बॉम्बे के व्यापार में गुजरातियों, ब्यूरोक्रेसी में दक्षिण भारतीयों और राजनीति में कम्युनिस्टों का वर्चस्व था। उस समय की कांग्रेस सरकार ने शहर को गैर मराठियों से छुटकारा दिलाने के लिए कई चालें चली। इसी वजह से उस समय की कांग्रेस ने शिवसेना को उभरने में मदद की जो मराठी माणूस की तर्ज पर राजनीति कर सके।
लेकिन आज भी मुंबई गैर मराठियों पर ही टीका है। देश की वित्तीय राजधानी GDP का लगभग 6 प्रतिशत, टैक्स कलेक्शन का 30 प्रतिशत, एक्साइज़ कलेक्शन का 20 प्रतिशत, कस्टम ड्यूटीज का 60 प्रतिशत देती है। यही नहीं कॉर्पोरेट टैक्स का 4 लाख करोड़ भी मुंबई से ही आता है। वित्त वर्ष 2019 में मुंबई से कुल टैक्स 3.52 लाख करोड़ रुपये का कलेक्शन हुआ था, जबकि दिल्ली से यही 1.60 लाख करोड़ रुपये था, जो मुंबई के आधे से भी कम था। इन आंकड़ों से यह समझ ही गए होंगे कि अगर मुंबई ही बैठ जाएगी तो पूरा महाराष्ट्र थम जाएगा और जब पूरा महाराष्ट्र थम जाएगा तो देश पर कितना व्यापक असर पड़ेगा।
ऐसी स्थिति में शिवसेना और कांग्रेस ने मिल कर मराठियों को जॉब में 80 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला किया है जो कि मुंबई की अर्थव्यवस्था के लिए ही नहीं बल्कि वहाँ के समाज की बनावट के लिए भी घातक साबित होगा। मुंबई की सफलता में कहीं न कही वहाँ जाकर सफल होने वाले उद्यमियों का बड़ा हाथ रहा है। इस आरक्षण के आने के बाद वह समाप्त हो जाएंगे। लोग मुंबई आना बंद कर देंगे जिससे मुंबई की आत्मा ही नहीं रहेगी। राजनीतिक लाभ के लिए इस गठबंधन द्वारा लिया गया यह फैसला मुंबई की जड़ों को काटने की एक सजिश है और मुंबई को गर्त में ले जाएगा।