कांग्रेस ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है, वो शिवसेना को उँगलियों पर नचाएगी

शिवसेना महाराष्ट्र

जैसे-जैसे समय आगे बढ़ रहा है महाराष्ट्र की राजनीति में अनिश्चितता भी बढ़ती जा रही है। भाजपा सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद बहुमत न होने की वजह से सरकार बनाने में असफल है। शिवसेना से प्रीपोल गठबंधन होने के बावजूद भाजपा और शिवसेना के बीच सबकुछ ठीक नहीं दिखाई दे रहा है। अब इस परिदृश्य में एक नया मोड़ आता दिखाई दे रहा है। कांग्रेस की तरफ से शिवसेना को समर्थन की बाते तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही शुरू हो गयी थी, लेकिन अब आधिकारिक बयान भी आने लगें हैं। IANS  की एक रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस अब यह चाहती है कि शिवसेना खुले तौर पर भाजपा से अपना गठबंधन तोड़ने का ऐलान करे तथा कांग्रेस से समर्थन की मांग करे।

कांग्रेस के राज्यसभा सांसद हुसैन दलवई ने आईएएनएस को बताया, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली पार्टी का गठबंधन से बाहर निकलने पर ही शिवसेना को समर्थन का कोई भी निर्णय निर्भर लिया जायेगा।”

इस बयान से यह स्पष्ट है कि कांग्रेस एक बार फिर अपनी कर्नाटक वाली राजनीति करने पर उतर आई है। किसी भी प्रकार से शिवसेना के नेता को यह पार्टी लालच देकर JDS के कुमारास्वामी की तरह मुख्यमंत्री पद पर बैठा देगी, लेकिन इसके बाद क्या होगा वह किसी से छिपा नहीं है। अगर शिवसेना कांग्रेस के साथ जा मिलती है तो उस परिस्थिति में शिवसेना (56), कांग्रेस (44) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (54) मिल कर 154 सीट के साथ बहुमत का आंकड़ा पार कर लेंगे।

अगर ऐसा संयोग हो जाता है तो एक बार फिर से हमें कर्नाटक का राजनीतिक नाटक महाराष्ट्र में भी देखने को मिल सकता है। यदि कांग्रेस शिवसेना की शर्त मानकर उसके साथ गठबंधन कर सत्ता में आती है तो वो किसी भी महत्वपूर्ण निर्णय और योजनाओं में हावी होने की पूरी कोशिश करेगी जैसा कि कर्नाटक में कुमारस्वामी की सरकार में देखने को भी मिला था। मतलब यह कि अगर सीएम पद पर आदित्य ठाकरे बैठ भी जाते हैं, तो वो कर्नाटका के कुमारस्वामी की भांति ही कांग्रेस की कठपुतली बनकर रह जायेंगे।

बता दें कि जेडीएस और कांग्रेस द्वारा कर्नाटक में किया गया राजनीतिक उलटफेर अभी तक सभी के ज़हन में है कि किस तरह कांग्रेस ने सत्ता के लोभ में जेडीएस के कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बना कर कई महीनों तक दबाव में रखा और फिर समर्थन ही वापस ले लिया। यही नहीं, कई बार तो खुद मुख्यमंत्री पद पर रहे कुमारस्वामी कांग्रेस के दबाव से परेशान दिखे और कई मौकों पर वो रोते भी नजर आये। जबसे कांग्रेस-जेडीएस के बेमेल गठबंधन की सरकार कर्नाटक में बनी थी तबसे वो आये दिन किसी न किसी वजह से चर्चा में रहती थी। दोनों ही पार्टियों ने सत्ता के लालच में गठबंधन तो कर लिया, लेकिन एकजुट होकर सरकार चलाने में असफल रहे। कुमारस्वामी ने मुख्यमंत्री पद को तो बड़े शान से स्वीकार किया था लेकिन वो काम कम करते थे और रोते ज्यादा थे। कभी ‘कांग्रेस मेरी नहीं सुनती’ का रोना तो कभी ‘मैं मजबूर हूं का रोना, कभी किसानों के सामने रोना, मीडिया के समक्ष रोना। अब अगर कल को कांग्रेस शिवसेना की गठबंधन सरकार बनती है और कल को आदित्य ठाकरे भी आपको रोते हुए दिखाई दें तो इससे किसी को हैरानी नहीं होगी। हालांकि, गठबंधन की सरकार बनाने के बाद इसी वर्ष जुलाई में आखिर यह अवसरवादी गठबंधन टूटा और सरकार गिर गयी।

कांग्रेस की यह पुरानी चाल रही है कि वह BJP को सत्ता से दूर रखने के लिए इस तरह के बेमेल गठबंधन वाली सरकार बनाती है और फिर अपने सहयोगी दलों पर दबाव बना कर अपना काम निकलवाती है। महाराष्ट्र में भी राजनीतिक परिदृश्य कर्नाटक जैसा ही नजर आ रहा है। उद्धव ठाकरे और शिवसेना कांग्रेस के बनाए जाल में जाती दिखाई दे रहे हैं। अगर शिवसेना कांग्रेस के साथ गठबंधन बनाती है तो यह उद्धव ठाकरे और शिवसेना के इतिहास की सबसे सबसे बड़ी गलती होगी। इससे न केवल शिवसैनिकों का मनोबल गिरेगा बल्कि सर्वदा प्रखर रहने वाली शिवसेना कांग्रेस के दबाव में रहने वाली पार्टी बन जाएगी। महाराष्ट्र कांग्रेस में भी कई नेता सिद्धारमैया जैसे कई कद्दावर नेता है जो इस अवसर की ताक में बैठे हुए हैं और ये बात शिव सेना जितनी जल्दी समझ जाए उतना ही बेहतर होगा।

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