लुटियंस दिल्ली यानि वो दिल्ली जो हमें अंग्रेजों के गुलामी की याद दिलाती रहती है। यहां लाल-लाल इमारते हैं जहां संसद, राष्ट्रपति भवन और तमाम बंगलों के साथ कनॉड प्लेस जैसा महंगा इलाका है। आज भी देश का राजकाज वहीं से संचालित होता है, जिसे ब्रितानी शासनकाल में अंग्रेज वास्तुकार एडविन लुटियन ने बनाया था, आज ‘लुटियन जोन’ में रहना स्टेटस सिंबल बन चुका है। दिल्ली को अक्सर कहा जाता है कि असली दिल्ली तो लुटियन्स दिल्ली है। यहीं जान बसता है। लेकिन दिल्ली भारतीयों की है लुटियंस की नहीं इसीलिए मोदी सरकार ने ब्रितानी प्रतिकों और गुलामी की यादों पर बुल्डोजर चलवाने की ठान ली है। इकॉनमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार लुटियंस की दिल्ली की तस्वीर बदलने वाली है। दरअसल, सरकार ने फैसला किया है कि ब्रिटिश जमाने की इमारतों को गिराकर अब नई इमारतें बनाए जाएंगे।
दिल्ली की सेंट्रल पब्लिक वर्क्स विभाग (CPWD) अब पांच साल पुराने एक प्रस्ताव का फिर से अध्ययन कर रही है। लुटियंस बंग्लो जोन को इसके हिसाब से नया लुक दिया जाएगा। लुटियंस बंगलो साल 1912 से 1930 के दौरान बनाए गए थे। इनका निर्माण अंग्रेजों ने किया था। CPWD का यह भी कहना है कि इन बंगले की उम्र अब खत्म हो चुकी है। एक अधिकारी ने कहा कि लुटियंस दिल्ली में मौजूद जगह का सही इस्तेमाल करने के हिसाब से और नए मकान में ऊर्जा दक्षता के लिए यह योजना बनाई जा रही है।
हालांकि देश के वामपंथियों और लिबरलों का कहना है कि सरकार लुटियंस दिल्ली को तोड़कर उससे जुड़ी हमारी यादों को खत्म करना चाहती है। वह हम पर हिंदू शैली की इमारतों को थोपना चाहती है। वामपंथियों ने तो यहां तक कह दिया था यह प्रधानमंत्री मोदी का एक सपना है। जिस तरह शाहजहाँ ने अपनी पत्नी के लिए एक भव्य मकबरा बनाने का फैसला किया, उसी तरह मोदी अपनी घमंड के लिए एक नई राजधानी बनाना चाहते हैं। हर सम्राट अपनी राजधानी बनाना चाहता है, और उन सम्राटों से मोदी अलग नहीं हैं।
https://theprint.in/opinion/narendra-modi-wants-to-rebuild-new-delhi-for-no-good-reason/298367/
जर्जर हो चुकी इमारतों को न बनवाने के तर्क में वामपंथियों का कहना है- ”मोदी सरकार अपने राजनीतिक लाभ के लिए बस ये सब कर रही है, इससे कुछ नहीं होने वाला, सिवाय हजारों करोड़ों रूपयों की बर्बादी के।” इसके साथ ही वे कहते हैं कि इस प्रोजेक्ट में पर्यावरण का भी काफी दोहन होगा।वे तर्क ये भी देते हैं कि अगर पीएम मोदी ने यहां अपनी राजधानी बनाई तो उन्हें भुगतना पड़ सकता है। उनके अनुसार- ”अब तक के इतिहास को देखें तो साफ पता चलता है कि यहां जितने भी राजाओं ने राजधानी बनवाई वे सभी हार गए या फिर शासन करने में असफल रहे।” इसके लिए वे दिल्ली विश्वविद्यालय के एक साइन बोर्ड का हवाला देते हैं।
Govt of India is planning to raze & rebuild parts of Lutyens Delhi that includes the Parliament building, Central Secretariat and the central vista. This letter is to the @rashtrapatibhvn to cancel the bid. Please do sign & support in saving our heritage https://t.co/fKKwNhzUya
— نکھل کمار (@niksez) September 27, 2019
ऐसे में अब हमारे वामपंथी बुद्धिजीवियों को सोचना होगा कि यह एक गुलामी का निशान है, ये इमारत जर्जर हो चुके हैं और इनसे खतरा भी है। इन्हें हटाने से उनकी यादों को कोई चोट नहीं पहुंचने वाला लेकिन इन जर्जर इमारतों को न हटाने से कुछ अनहोनी जरूर हो घट सकती है।