हाल ही में यूएस की कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस (CRS) की रिपोर्ट प्रकाशित हुई है, जिससे ये पता चलता है कि कैसे भारत की कूटनीतिक घेराबंदी ने पाकिस्तान की हालत खराब कर दी है। अगर इस रिपोर्ट की माने, तो हमारा पड़ोसी देश न केवल भारत के बढ़ते कद से डरा हुआ है, अपितु भारत की अफ़ग़ानिस्तान में बढ़ती सक्रियता से भी चिंतित है।
सीआरएस ने अफगानिस्तान पर अपनी रिपोर्ट में कहा है कि, “पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियों को भारत के नीतिगत एवं कूटनीतिक घेराबंदी का भय सताता है। पाकिस्तान अफगानिस्तान में तालिबान को भारत विरोधी तत्व के रूप में देखता है और उसे इसमें अपना एजेंडा साधने का एक विकल्प नजर आता है।“ इस रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि, “अफ़ग़ानिस्तान में भारत की कमर्शियल और डिप्लोमेटिक उपस्थिति और इसके लिए अमेरिका का समर्थन पाकिस्तान की चिंताओं को और बढ़ाता है। अफगानिस्तान में भारत का इंटरेस्ट मुख्यतः पाकिस्तान के साथ भारत की व्यापक क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता से उपजा है, जो मध्य एशिया के साथ मजबूत और अधिक प्रत्यक्ष वाणिज्यिक और राजनीतिक संबंध स्थापित करने के भारतीय प्रयासों को बाधित करता है।”
इस रिपोर्ट में पाक की भी पोल खुल गयी है, जिसके कारण अफ़ग़ानिस्तान को पाक के विरुद्ध आक्रामक रुख अपनाना पड़ा है। रिपोर्ट में यह समझाने का प्रयास किया गया है कि पाक ने दशकों तक अफगानी मामलों में नकारात्मकता ही दिखाई है। रिपोर्ट के अनुसार, “पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियां अफगानी आतंकियों के साथ संबंध रखती हैं, विशेषकर हक्कानी नेटवर्क के साथ, जो यूएस द्वारा मान्यता प्राप्त एफ़टीओ के अनुसार तालिबान का एक धड़ा बन चुका है। अफगानी नेताओं और यूएस सैन्य कमांडरों के अनुसार क्षेत्र में अधिकांश आतंकवाद को पाकिस्तान द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ावा मिलता आया है”।
यूएस के अनुसार एक कमजोर और असहज पाकिस्तान उसके इरादों के लिए काफी अनुकूल है, बजाए इसके कि उसके सामने एक सशक्त और मजबूत अफ़ग़ानिस्तान खड़ा हो। पाक के लिए ये इसलिए भी और चिंताजनक है क्योंकि अफगान में बहुसंख्यक समुदाय पशतून समुदाय है, जो स्वयं पाक में एक अहम अल्पसंख्यक समुदाय है, और बलूचिस्तान के प्रांत के निवासियों के भांति ही शोषित और पीड़ित है।
भारत के अफगानिस्तान के विकास के लिए कितना प्रतिबद्ध है, इसका उदाहरण इसी में देखने को मिलता है कि कैसे भारत ने अफगानिस्तान के लिए काबुल में उसका संसद बनवाया। यही नहीं, क़ाबुल में मौजूद भारतीय दूतावास के अनुसार अब तक भारत अफगानिस्तान में 2 बिलियन अमरीकी डॉलर यानि करीब 139 अरब रुपये का निवेश कर चुका है और भारत इस देश में शांति, स्थिरता और तरक्की के लिए प्रतिबद्ध है। इससे पहले भारत ने साल 2011 में भयंकर सूखे से जूझ रहे अफ़ग़ानिस्तान को ढाई लाख टन गेहूं दिया था।
इसके अलावा अफगानिस्तान के हेरात में सलमा बांध भारत की मदद से बना। ये बांध 30 करोड़ डॉलर (क़रीब 2040 करोड़ रुपये) की लागत से बनाया गया और इसमें दोनों देशों के क़रीब 1500 इंजीनियरों ने अपना योगदान दिया था। इसकी क्षमता 42 मेगावाट बिजली उत्पादन की भी है। 2016 में अस्तित्व में आए इस बांध को भारत-अफगानिस्तान मैत्री बांध का नाम दिया गया। अगर एक कमजोर अफगानिस्तान से पाक को फ़ायदा हो रहा है, तो एक सशक्त अफगानिस्तान से न केवल भारत, बल्कि स्वयं अफगानिस्तान को भी लाभ मिलेगा।
स्पष्ट है भारत आतंक समर्थक देश पाक को हर प्रकार से घेर रहा है। उरी और पुलवामा हमलों के पश्चात भारत ने पाक की कूटनीतिक छवि को काफी हद तक धूमिल किया है। यही नहीं, उन्होंने अफगानिस्तान में अपनी सक्रियता बढ़ाते हुए कई विकासशील परियोजनाओं में निवेश किया है, एवं अहम क्षेत्रों में अपने कांसुलेट स्थापित किए हैं, जिनमें से कुछ अफगान पाक बार्डर से ज़्यादा दूर नहीं है।
इसके अलावा भारत ने नीतिगत घेराबंदी के अंतर्गत पाकिस्तान को चारों ओर से घेरना शुरू कर दिया है। अभी हाल ही में ओमान ने भारत को अपने दुकम पोर्ट के उपयोग की स्वीकृति दी है, जिसका उपयोग भारतीय नौसेना करेगी। इतना ही नहीं, भारत ईरान के साथ अपनी संधि के अंतर्गत वर्ष 2018 से चाबहार बंदरगाह संचालन की कमान संभाल रहा है, जिससे वे व्यापार की दृष्टि से ईरान और अफगानिस्तान से सीधा संपर्क स्थापित करने का प्रयास करेंगे। या यूँ कहें चाबहार पोर्ट को विकसित करते ही भारत को अफगानिस्तान और ईरान के लिए समुद्री रास्ते से व्यापार-कारोबार बढ़ाने का मौका मिलेगा।
सच कहें तो भारत ने अपनी कूटनीतिक शक्ति को एक नया आयाम दिया है। इसका स्पष्ट प्रमाण है अनुच्छेद 370 के हटाये जाने पर वैश्विक प्रतिक्रिया। पीएम मोदी के असंख्य विदेशी दौरों के कारण भारत ने अधिकांश देशों से ऐसे संबंध स्थापित किए, कि कुछ देशों को छोड़कर लगभग समूचे विश्व ने भारत के इस कदम का अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन करते हुए अनुच्छेद 370 के हटाये जाने को भारत का आंतरिक मामला बताया। भारत ने एक तरफ जहाँ अनुच्छेद 370 हटाकर कश्मीर का मुद्दा पाकिस्तान से पूर्ण रूप से छीन लिया तो दूसरी तरफ पीओके को वापस लेने की अपनी प्रतिबद्धता को भी जगजाहिर किया है। पीओके को उचित तरीके से भारत में समाहित करने के साथ साथ भारत सीधे अफगानिस्तान के साथ एक सीमा साझा करेगा और इससे भारत के लिए ट्रेड रूट खुल सकता है जोकि मिडिल ईस्ट से कनेक्टिविटी को बढ़ाने का काम करेगा।
कुल मिलाकर भारत अपनी कूटनीतिक रणनीति में काफी हद तक सफल रहा है। भारत ने अफ़ग़ानिस्तान के साथ साथ हिंद महासागर में अपनी स्थिति को भी मजबूत किया है। हालाँकि, यूएस की कोंग्रेशनल रिपोर्ट में पाक की कूटनीतिक हार का जिस तरह अमेरिका ने विवरण किया, उससे एक बात तो साफ है – यह नया भारत है, जो किसी को छेड़ता तो नहीं, पर छेड़े जाने पर छोड़ता भी नहीं।