महातिर मोहम्मद, दुनिया के सबसे उम्रदराज़ प्रधानमंत्री, आजकल मलेशिया की नैया डुबाने के लिए दिन-रात काम कर रहे हैं। पहले तो पिछले दिनों उन्होंने कश्मीर के मुद्दे को यूएन में उठाकर भारत से पंगा मोल लिया। हालांकि, इससे उनका पेट नहीं भरा तो अब उन्होंने अमेरिका को आँख दिखाना शुरू कर दिया है। दरअसल, थाईलैंड में जारी ईस्ट एशिया समिट के एक कार्यक्रम के दौरान RCEP के मुद्दे पर बोलते हुए महातिर ने कहा कि अमेरिका जान-बूझकर ASEAN देशों को टार्गेट कर रहा है ताकि अपनी शत्रुतापूर्ण व्यापार नीति के माध्यम से वह एक-एक करके सभी देशों को निशाना बना सके। बता दें कि शुरू से ही RCEP को लेकर भारत का रुख स्पष्ट रहा है कि उसके लिए भारत के नागरिकों के हित पहले आते हैं और वह किसी भी देश के दबाव में आकर कोई फैसला नहीं लेगा। यहाँ तक कि भारत ने कल आधिकारिक तौर पर भी यह पुष्टि कर दी कि वह आरसीईपी का सदस्य नहीं बनेगा। हालांकि, दुनिया के सबसे बूढ़े प्रधानमंत्री को यह लगता है कि कश्मीर मुद्दे पर दिये उनके बयान ने भारत को अमेरिका की एक कठपुतली बनने पर मजबूर कर दिया है, जिसके कारण भारत RCEP का समर्थन नहीं कर रहा है ताकि अमेरिका ASEAN देशों को आसानी से निशाना बना सके।
हालांकि, महातिर मोहम्मद यहीं नहीं रुके, उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका को टक्कर देने के लिए अगर उनको चीन के साथ मजबूत आर्थिक संबंध बनाने पड़े, तो भी वे उससे पीछे नहीं हटेंगे। हालांकि, महातिर का बयान इसलिए हास्यास्पद है क्योंकि एक तरफ तो वे भारत को अमेरिका की कठपुतली घोषित करने पर अड़े हैं, वहीं दूसरी तरफ वे खुद चीन की कठपुतली की तरह व्यवहार कर रहे हैं। महातिर का अमेरिका के खिलाफ बयान देना इसलिए बेतुका है, क्योंकि अमेरिका के साथ तो ASEAN देशों का ट्रेड सरप्लस है। वर्ष 2018 में अमेरिका का ASEAN देशों के साथ 99.6 बिलियन डॉलर का ट्रेड डेफ़िसिट था। खुद मलेशिया का भी अमेरिका के साथ ट्रेड सरप्लस है। वर्ष 2018 में अमेरिका के साथ मलेशिया का ट्रेड सरप्लस 26.5 बिलियन यूएस डॉलर था। अब वही मलेशिया उस चीन की गोद में बैठकर अमेरिका को गाली दे रहा है जिसके साथ उसका ट्रेड डेफ़िसिट है। यह दिखाता है कि मलेशिया ASEAN देशों में ASEAN के हितों के विरुद्ध चीन के हितों के लिए काम कर रहा है।
दरअसल, अमेरिका भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर ASEAN देशों के साथ अपनी सुरक्षा साझेदारी को बढ़ाना चाहता है। ऐसे इसलिए क्योंकि ASEAN देशों के साथ चीन के सीमा विवाद हैं और इनमें से कई देश किसी भी तरह चीन पर पूरी तरह आर्थिक तौर पर निर्भर नहीं होना चाहते। हालांकि, ऐसा लगता है कि चीन ने मलेशिया के रूप में अपनी कठपुतली को ASEAN देशों के बीच बैठा दिया है ताकि ASEAN ब्लॉक में अमेरिका विरोधी सुर को जन्म दिया जा सके।
हालांकि, महातिर मोहम्मद को यह समझ लेना चाहिए कि अगर मलेशिया चीन के साथ ज़रूरत से ज़्यादा आर्थिक नज़दीकियाँ बढ़ाता है, तो उसे इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। चीन अपनी मजबूत अर्थव्यववस्था को एक हथियार की तरह इस्तेमाल करता है और बाकी देशों को अपने हिसाब से चलने पर मजबूर करता है। मलेशिया के प्रधानमंत्री को जहां एक तरफ अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में काम करना चाहिए था, वे बार बार उसके उलट ही काम कर रहा है। पहले मलेशिया ने भारत को ललकारा, जिसके कारण उनकी पाम ऑयल इंडस्ट्री को नुकसान उठाना पड़ा, वहीं अब वह अमेरिका को आँख दिखा रहा है, वो भी चीन के दम पर। अब बूढ़े प्रधानमंत्री की अगुवाई में इस देश की अर्थव्यवस्था का क्या हाल होगा, इसकी फिलहाल कल्पना ही की जा सकती है। हालांकि, महातिर मोहम्मद इस कल्पना को सच्चाई में बदलने में जी-जान से जुटे हुए हैं।