ममता बनर्जी के हाल के बयानों ने निश्चित रूप से सभी को हैरत में डाल दिया है। अल्पसंख्यकों की तुष्टीकरण में कोई कसर नहीं छोड़ने वाली ममता बनर्जी ने अचानक से गियर बदलते हुए AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी पर निशाना साधा। बिना उनका नाम लिए ममता ने कूच बिहार की एक रैली में उन्हें अल्पसंख्यक अतिवाद के लिए दोषी ठहराया। उनके अनुसार, “मैं देख रही हूं कि अल्पसंख्यकों के बीच कई कट्टरपंथी हैं। इनका ठिकाना हैदराबाद में है। आप लोग इन पर ध्यान मत दें”। इसके अलावा उन्होंने अपने पार्टी के सदस्यों से भी बोला है कि वे अल्पसंख्यक अतिवाद को किसी भी स्थिति में बढ़ावा न दें।
हालांकि, कई लोगों को इनका बदला हुआ सुर भ्रमित कर सकता है, पर 2021 में पश्चिम बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए ये कोई हैरानी भरी बात नहीं है। यहां ये बताना आवश्यक है कि भाजपा ने लोकसभा चुनावों के दौरान सभी को चकित करते हुए 42 में से 18 सीटें जीतीं थीं। अपने अभियान में भाजपा ने प्रमुख रूप से अल्पसंख्यक तुष्टीकरण को लेकर ममता बनर्जी और टीएमसी पर निशाना साधा और चुनावों में यह स्पष्ट हो गया कि पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी से हिन्दू विमुख हो रहे हैं। राज्य में हिंदू केवल मजबूत विकल्प के अभाव में TMC के लिए मतदान कर रहे थे। परन्तु भाजपा के उदय के साथ ममता बनर्जी को राज्य में बड़ा धक्का लगा और अब असदुद्दीन ओवैसी ने उनकी टेंशन को और बढ़ा दिया है।
इसीलिए लोकसभा चुनाव के परिणामों के पश्चात ममता अपनी अल्पसंख्यक छवि को हटाने के प्रयासों में जुटी हैं। हालांकि, असदुद्दीन ओवैसी के पश्चिम बंगाल में चुनाव लड़ने के फैसले ने टीएमसी को ऐसी दुविधा में डाला है कि ममता को ये समझ नहीं आ रहा कि तुष्टिकरण का टैग हटायें या अपने वोट बेस को बचाएं। खैर, उन्होंने अब इसके लिए ‘अल्पसंख्यक अतिवाद’ का सहारा लिया ताकि दोनों तरफ से अपनी छवि मजबूत भी रख सकें और कोई सवाल भी न उठे। यही वजह है कि कूचबिहार में ममता बनर्जी ने मदन मोहन मंदिर का दौरा किया और यहीं से ओवैसी पर निशाना साधा। अब तक ममता बनर्जी का दृष्टिकोण यह था कि मुसलमानों के रूप में अपने प्राथमिक अल्पसंख्यक वोट बैंक को यथावत रखे। हालाँकि, भारत के पूर्वी हिस्सों में AIMIM के उदय के रूप में एक बड़ा व्यवधान होना तय है।
तेलंगाना और महाराष्ट्र में स्थापित होने के बाद असदुद्दीन ओवैसी अब पूर्वी भारत में पैर जमाना चाहते हैं। हाल ही में उन्होंने बिहार के किशनगंज सीट पर खाता खोला था, जो पश्चिम बंगाल से ज़्यादा दूर भी नहीं है। इसे निस्संदेह ममता ने अपने लिए एक खतरे के तौर पर भाँपा और वे गलत भी नहीं, क्योंकि ओवैसी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे बंगाल की सभी विधानसभा सीटों पर 2021 में अपने उम्मीदवार उतारेंगे। जिस तरह से ओवैसी की AIMIM ने वर्ष 2014 में महाराष्ट्र की 25 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था और कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाई थी, इससे कांग्रेस को काफी नुकसान हुआ था। यही नहीं उनकी पार्टी 2 सीटें जीतने में भी कामयाब रही थी। ऐसा ही कुछ कांग्रेस के गढ़ माने जाने वाले बिहार के किशनगंज में भी देखने को मिला, जहां अपना उम्मीदवार उतार कर कांग्रेस को भारी क्षति पहुंचाई थी। 70 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले किशनगंज में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने उपचुनाव (By Election) में इस सीट पर जीत दर्ज की। स्पष्ट है ओवैसी अल्पसंख्यकों के बीच जो छवि है, उससे ममता के वोट बैंक को बहुत नुकसान पहुंच सकता है। पहले ही ममता की पक्षपाती नीतियों की वजह से राज्य में हिन्दुओं का झुकाव भाजपा की तरफ बढ़ा है, परंतु ओवैसी के आगमन का अर्थ है कि न केवल ममता के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगेगी, अपितु राज्य में त्रिकोणिय मुक़ाबला भी होगा, और ऐसे में किस पार्टी को सबसे ज़्यादा फ़ायदा होगा ये तो आप समझ ही गये होंगे। हो सकता है ओवैसी की पार्टी पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों में ज़्यादा सीटें न जीते, परंतु वे ममता बनर्जी के वोट बैंक में सेंध मारने का काम बखूबी करने वाली है।
इसी टेंशन में ममता बनर्जी ने कूचबिहार में असदुद्दीन ओवैसी को निशाना बनाया है और यह ओवैसी का प्रभाव कम करने की उनकी बड़ी रणनीति का एक हिस्सा लगता है। वास्तव में ममता बनर्जी का “अल्पसंख्यक अतिवाद” के खिलाफ अचानक गुस्सा किसी भी वास्तविक चिंता को नहीं दर्शाता, बल्कि यह राजनीतिक अभियान और चुनावी अंकगणित पर आधारित एक चतुर चाल है। हालांकि, ममता को ओवैसी के चुनावी मैदान में उतरने से काफी नुकसान होने की संभावनाओं को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता ऐसे में ममता का डर लाजमी है। यही वजह है कि अब ममता बनर्जी का फोकस भाजपा से ज्यादा ओवैसी पर है और असदुद्दीन ओवैसी भी खुलेआम ममता को चुनौती दे रहे हैं। आने वाले समय में हो सकता है पश्चिम बंगाल की राजनीति में हमें दिलचस्प ट्विस्ट एंड टर्न देखने को मिले। ऐसे में 2021 के विधानसभा चुनाव में अगर बड़ा उलटफेर देखने को मिलता है तो इसका श्रेय ओवैसी को जरुर जायेगा।