MoUs, बिज़नस डील और क्या नहीं- जर्मनी भारत का सबसे बड़ा वैश्विक पार्टनर बनने की राह पर

जर्मनी

PC: News18

31 अक्टूबर को जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्कल भारत के दौरे पर जब आईं थीं तो उनके साथ 12 मंत्री और व्यापार क्षेत्र की कई बड़ी हस्तियों ने भी शिरकत की। फ्रांस और यूरोप जैसे कई यूरोपीय देश अक्सर भारत में आर्थिक वातावरण को लेकर अपनी चिंताएँ जताते रहे हैं। हालांकि, जर्मनी की चांसलर का अब भारत में एक बड़े बिजनेस डेलीगेशन के साथ आना यह दर्शाता है कि स्थितियाँ अब लगातार बदल रही हैं। जर्मनी यूरोप में भारत का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है और जर्मनी भारत को एक विशाल बाज़ार के रूप में देखता है। यही कारण है की जर्मनी के व्यापारी अब भारत में निवेश करना चाहते हैं और जर्मनी भारत के साथ फ्री ट्रेड अग्रीमेंट (FTA) करने के लिए भी आतुर है।

इस बात में कोई शक नहीं है कि भारत के प्रतिकूल आर्थिक वातावरण की वजह से कई सालों तक विदेशी निवेशकों ने भारत की ओर मुड़कर नहीं देखा। वर्ष 2014 में मोदी सरकार आने के बाद से सरकार ने इज ऑफ डूइंग बिजनेस में बड़ी छलांग लगाई है, जिसका नतीजा हमें देखने को मिल रहा है। वर्ष 2014 में इज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग में भारत का स्थान 142 था, जो कि वर्ष 2018 में 77 पर पहुंच चुका है।

हालांकि, जर्मनी के सत्ताधारी क्रिश्चियन डेमोक्रेट यूनियन के संयुक्त संसदीय दल के उप नेता योहान वाडेफुल को अभी भी भारत सरकार से और सुधारों की उम्मीद है। वाडेफुल का कहना है, “हम अपने भारतीय साझीदारों को जरूर बताते हैं कि जर्मन और यूरोपीय कारोबार के रास्ते में अब भी क्या बाधाएं हैं।” बता दें कि अब तक भारत विदेशी कारोबारियों के लिए एक मुश्किल बाजार ही रहा था।  ज्यादातर देश अत्यधिक लालफीताशाही, भ्रष्टाचार और बुनियादी सुविधाओं की कमी को समस्या बताते रहे हैं, लेकिन अच्छी बात यह है कि पिछले कुछ सालों में चीज़ें बड़ी तेजी से बदली हैं। इसके साथ ही भारत सरकार इनमें और ज़्यादा सुधार लाने के लिए प्रतिबद्ध है।

जर्मनी इस बात को भी मानता है कि अगर उसे चीन जैसी बड़ी शक्ति का सामना करना है तो उसे भारत जैसे देश का साथ चाहिए होगा। बता दें कि मर्कल की भारत यात्रा से कुछ ही दिन पहले जर्मन संसद ने भारत और जर्मनी के बीच संबंधों को मजबूत करने की मांग रखते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था। संसद में इस मामले पर चर्चा के दौरान जर्मन विदेश मंत्री हाइको मास ने भारत को दक्षिण एशिया में “स्थिरता का स्तंभ” कहा था। मास ने कहा था, “यूरोपीय नजरिए से एशिया नीति को जरूरत से ज्यादा चीन तक सीमित करना खतरनाक होगा, खासतौर से तब जब हमारे पास भारत के रूप में एक सहयोगी है जो हमारे मूल्यों और लोकतंत्र की हमारी समझ के ज्यादा करीब है”।

मर्कल के इस भारत दौरे से भारत और जर्मनी के रिश्तों में और मजबूत आई है। दोनों देशों के बीच कुल 20 से ज़्यादा MOUs पर हस्ताक्षर हुए जिनमें खेल, शिक्षा, आर्टिफ़िश्यल इंटेलिजेंस और क्लाइमेट चेंज जैसे मुद्दे शामिल थे।

जर्मनी और भारत सुरक्षा और रणनीतिक साझेदार भी हैं। मर्कल के भारत दौरे से ठीक पहले भारत में मौजूद जर्मनी के राजदूत ने कहा था कि कश्मीर मुद्दा पूरी तरह भारत का आंतरिक मुद्दा है। वहीं आर्थिक क्षेत्र में तो दोनों देश अपने रिश्तों को बेहतर करने की बात कर ही रहे हैं। कुल मिलाकर जर्मनी और भारत के बीच मजबूत होते रिश्ते भविष्य में दोनों देशों के नागरिकों के लिए अच्छे साबित होंगे।

Exit mobile version