अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इस फैसले को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने एकमत से सुनाया। वर्षों से चले आ रहे इस विवाद पर आखिरकार न्यायालय ने न्याय की अंतिम मुहर लगा दी। इस मामले में कोर्ट में 40 दिन लगातार चली सुनवाई में रामलला की तरफ से 92 साल के वरिष्ठ वकील के परासरण ने पक्ष रखा। तमिलनाडु के अधिवक्ता जनरल रहे के परासरण 6 दशक से इस पेशे में हैं और वो इस मामले में उन कुछ लोगों में से हैं जिन्होंने इस मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
निश्चित ही कोर्ट में सुनवाई के दौरान उन्होंने हिन्दुओं का पक्ष पूरे तर्क के साथ कोर्ट में रखा। राम मंदिर को बनवाने के लिए हिन्दुओं का प्रतिनिधित्व करने वाले के परासरण विधि के पेशे में पिछले 6 दशक से सक्रिय हैं। श्रीराम जन्मूमि केस में उन्होंने हिन्दू पक्ष को बड़ी बेबाकी से और बड़े संयमित तरीके से सभी के समक्ष रखा। पिछले वर्ष सबरीमाला मंदिर के केस में भी उन्होंने हिन्दू समुदाय का पक्ष पुरजोर तरीके से पेश किया था।
स्वयं एक वैदिक हिन्दू शास्त्री होने के नाते के परासरण को कई पार्टियों की सरकारों ने विभिन्न कार्यकालों में अहम पदों पर नियुक्ति किया है। 1983 से 1989 तक वे भारत के एटॉर्नी जनरल रहे हैं। इससे पहले 1976 में उन्होंने तमिलनाडु के एडवोकेट जनरल का पद भी संभाला था। के परासरण को उनकी सेवाओं के लिए पद्म भूषण से 2003 में और 2011में उन्हें पद्म विभूषण से पुरस्कृत किया गया। उन्हें 2012 में राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा के सदस्य के तौर पर नामांकित किया गया।
परन्तु सरकार में उच्च पद पर रहते हुए भी के परासरण ने अन्याय के विरुद्ध विरोध करने में तनिक भी हिचकिचाहट नहीं दिखाई। जब वे देश के सॉलिसिटर जनरल थे, तब उन्होंने सरकार की ओर से एक राष्ट्रीय समाचार पत्र के बिल्डिंग को ध्वस्त करने के मामले में सरकार का प्रतिनिधित्व करने से मना कर दिया और विवश किए जाने पर इस्तीफे की पेशकश भी की। परन्तु उनके इस्तीफे की पेशकश के बावजूद सरकार ने ना सिर्फ उन्हें कायम रखा बल्कि उन्हें एटॉर्नी जनरल के पद पर भी नियुक्भी किया।
1927 में तमिलनाडु के श्रीरंगम में जन्मे, पराशरन ने 1958 में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपनी प्रैक्टिस शुरू की थी। आपातकाल के समय वे तमिलनाडु के एडवोकेट जनरल थे और 1980 में उन्हें भारत के सॉलिसिटर जनरल के रूप में नियुक्त किया गया था। बाद में उन्होंने 1983 से 1989 तक भारत के अटॉर्नी जनरल के रूप में कार्य किया।
“मैं मरने से पहले इस मामले को खत्म करना चाहता हूं।” ये बयान पारासरन ने तब दिया जब सुन्नी वक्फ बोर्ड का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील राजीव धवन ने मामले की दैनिक सुनवाई पर आपत्ति जताई। अंतत: यह उनकी आस्था के साथ-साथ करोड़ों भारतीयों की आस्था और विश्वास का ही परिणाम था कि राम जन्मभूमि का विवाद अंततः समाप्त हुआ।