‘रोहिंग्याओं के लिए बंगाली शिक्षा नहीं, बांग्ला सीख जाएंगे तो यहीं रह जाएंगे’- हसीना का दमदार फैसला

हाल ही में शेख हसीना की सरकार ने रोहिंग्याओं से निपटने में एक स्पष्ट रुख दिखाया है। सरकार और बांग्लादेश के लोग रोहिंग्या मुस्लिमों को सुरक्षा की दृष्टि एक बड़ा खतरा मानते हैं इसलिए उनके वापस जाने के लिए सभी कदम उठाने को तैयार हैं।

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार बांग्लादेश की हसीना सरकार ने  रोहिंग्याओं के बच्चों को सिर्फ बर्मीज, इंग्लिश और रोहिंग्या भाषा तक ही सीमित करने का फैसला लिया है। सरकार जानबूझकर उनके बंग्ला सीखने पर रोक लगाना चाहती है। सरकार के इस कदम को समझना मुश्किल नहीं है।

बता दें कि बांग्लादेश का पश्चिमी पाकिस्तान से अलग होने का कारण ही भाषा है। बंगला को बांग्लादेशी पहचान का आधार माना जाता है। इसलिए अगर रोहिंग्याओं के बच्चे बंगला सीख लेंगे तो फिर बांग्लादेश के मूलनिवासी से अलग कर पाना असंभव हो जाएगा। आने वाले समय में रोहिंग्याओं के बच्चे समाज में इतने घुल-मिल जाएंगे तो उन्हें पहचान कर वापस भेजना नामुमकिन हो जाएगा।

एक अंतराष्ट्रीय ग्रुप, Translators Without Borders के सर्वे में यह बात सामने आई है कि अभी भी रोहिंग्या ही रोहिंग्याओं की पसंदीदा भाषा बनी हुई है। हालांकि वे बर्मीज और इंग्लिश के मुक़ाबले बंगाली अधिक समझ लेते हैं।

ऐसे समय में अब शेख हसीना सरकार ने यह निर्णय लिया है कि अब इन रोहिंग्या आप्रवासियों को बंगाली भाषा में शिक्षा नहीं दी जाएगी। अगर यह कदम नहीं लिया जाता तो यह बांग्लादेश के समाज के लिए ही खतरा साबित होगा। पिछले दो साल में रोहिंग्या शरणार्थियों की ज़िंदगी में अगर कोई बदलाव आया है तो इतना कि वे अब बांग्लादेशियों की भाषा को सहजता से समझने लगे हैं। बांग्लादेशी सिर्फ रोहिंग्या बस्ती को लेकर ही नहीं, बल्कि शिविरों में कानून-व्यवस्था को लेकर भी चिंतित हैं। शिविरों के अंदर हत्याओं की संख्या बढ़ी है। रोहिंग्या लोगों द्वारा बांग्लादेशियों की हत्या के भी मामले सामने आ रहे हैं।

हाल के दिनों में रोहिंग्या समुदाय और बांग्लादेशियों के बीच कड़वाहट साफ तौर पर देखी गई है। कॉक्स बाज़ार के एडिशनल डिप्टी कमिश्नर अशरफ़ुल अफसर का कहना है कि मानवता की रक्षा के लिए रोहिंग्या शरणार्थियों को आश्रय दिया गया था, लेकिन जैसे-जैसे समय बीत रहा है स्थानीय लोगों की चिंता बढ़ रही है।

बांग्लादेश में धीरे-धीरे रोहिंग्या शरणार्थी की समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है। यह देश पहले से ही गरीब है और ऐसे में अधिकारियों को इन रोहिंग्याओं को बसाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। बता दें कि रखाइन प्रांत में इसी साल 25 अगस्त से शुरू हुई हिंसा के नए दौर के बाद से बांग्लादेश में 3 लाख से ज्यादा रोहिंग्या मुस्लिम आ गए हैं। लगभग 3 लाख शरणार्थी पहले से ही म्यामांर सीमा के पास कॉक्स बाजार जिले में संयुक्त राष्ट्र के शिविरों में रह रहे हैं। ऐसे में इन शरणार्थियों को लेकर बांग्लादेश के लिए आए दिन नया सिरदर्द पैदा होता है।

बांग्लादेश की खुफिया एजेंसियों का कहना है कि शिविरों में रह शरणार्थी गैरकानूनी तरीके से मोबाइल सुविधा का इस्तेमाल कर रहे हैं। एजेंसियों के मुताबिक हाल के महीनों में कुछ शरणार्थियों के म्यामांर से अवैध मादक पदार्थ की तस्करी में शामिल हो रहे हैं। स्थानीय नागरिकों के लिए ये रोज की समस्या बन रहे हैं और उन्हें रोजगार छिनने का खतरा उन्हें भी दिखाई दे रहा है।

जहां ये रोहिंग्या शरणार्थी बांग्लादेश की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बने हुए हैं, वहीं भारत के लिए भी मुसीबत बन रहे हैं। बांग्लादेशी सीमा से सटे होने के कारण घुसपैठ की संभावनाएं बढ़ रही है। 2013 में बोधगया मंदिर में हुए सीरियल ब्लास्ट में रोहिंग्याओं के शामिल होने की खबरें आई थीं, उधर भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने भी इनपुट दिए हैं कि आईएसआई आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के जरिए रोहिंग्याओं का ब्रेनवॉश करके उन्हें भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर सकते हैं।

सितंबर में यह खबर आई थी कि कई संगठन हैं जो रोहिंग्याओं की मदद कर रहे थे और उन्हें वापस म्यांमार न जाने के लिए भड़का रहे थे। इसी वजह से बांग्लादेश की सरकार ने 41 गैर-सरकारी संगठनों को रोहिंग्याओं की मदद करने के लिए दोषी पाया था जिसके बाद इन सभी एनजीओ की गतिविधियों पर रोक लगा दी गयी थी। इससे पहले बांग्लादेशी सरकार ने कहा था कि कुछ गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) देश से रोहिंग्या शरणार्थियों को म्यांमार वापस भेजने के रास्ते में रोड़ा अटका रहे हैं। खुद शेख हसीना भी इन रोहिंग्याओं को देश के लिए खतरा मानती हैं। इस वजह से अब बांग्लादेश की सरकार ने यह सही निर्णय लेते हुए उनकी बंगाली शिक्षा को ही बंद करने का फैसला लिया है। इससे वे तुरंत पहचान में आ जाएंगे और उन्हें वापस म्यांमार भेजा जा सकेगा।

Exit mobile version