जब अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और शांति को ISIS और अन्य संगठनों के बढ़ते प्रभाव के नजरिए से देखा जाता है, तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को उसकी निष्क्रियता के लिए भारी आलोचना का सामना करना पड़ता है। ऐसा इसलिए क्योंकि UN नए स्थायी सदस्यों को शामिल करने की प्रक्रिया में देरी कर रहा है। यूएनएससी के पास केवल पांच स्थायी सदस्य देश हैं, जिनमें चीन, फ्रांस, रूस, अमेरिका और ब्रिटेन शामिल हैं और इसके अलावा 10 गैर-स्थायी सदस्य भी शामिल हैं जिन्हें हर 2 वर्ष में बदला जाता है।
UNSC के स्थायी सदस्य, जिन्हें पी-5 के रूप में बेहतर जाना जाता है। आतंकवाद और वैश्विक समस्याओं से निपटने के लिए इन देशों का चयन किया गया था। लेकिन इन दिनों ये देश आपसी मतभेदों में ही उलझे रहते हैं। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि, सैयद अकबरुद्दीन ने UNSC में वर्तमान सुधार प्रक्रिया की आलोचना करते हुए उसकी तुलना एक ग्रीक ट्रैजेडी से की है।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने महासभा की प्लैनरी मीटिंग को संबोधित करते हुए कहा कि एक अप्रचलित वैश्विक शासन ढांचा 21वीं सदी में शांति और सुरक्षा की चुनौतियों से निपटने में सक्षम नहीं हो सकता।
अकबरुद्दीन ने सुरक्षा परिषद में सुधार के लिए अंतर-सरकारी वार्ता (IGN) प्रक्रिया के वर्तमान रूप के प्रति अपनी असंतुष्टि को व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि 40 साल के बाद भी महासभा के सुधार प्रक्रिया में कोई बदलाव नहीं हुआ है। “हर साल इस बहस को बैठकर और सुनकर, एक दुखद ग्रीक पौराणिक कथा की याद दिलाई जाती है, जहां देवताओं द्वारा एक पहाड़ी के ऊपर एक विशाल शिलाखंड को चढ़ने की सज़ा एक व्यक्ति को सुनाई गयी थी, जो हमेशा नीचे लुढ़क जाता था।
अकबरुद्दीन जनरल असेंबली प्लेनरी मीटिंग में आगे कहते हैं- “हम इस ग्रीक त्रासदी को साल-दर-साल लागू करते हैं, और हर चेतावनी के प्रति अनजान रहते हैं। चारों ओर से संकेत दिये जा रहे हैं, वैश्विक दृष्टिकोण बदल रहा हैं, हर प्रकार से मानदंड बदल रहे हैं, पर संयुक्त राष्ट्र परिवर्तित ही नहीं होना चाहता”।
अकबरुद्दीन ने यह भी बताया कि कैसे UNSC अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और शांति के जटिल मुद्दों का समाधान करने में विफल रहा है: “सिप्फ़स पहाड़ी पर लुढ़कने वाले पौराणिक शिलाखंड की भांति सुरक्षा परिषद में सुधार के वादे को पूरा करने में सामूहिक रूप से विफलता मिली है। इसके कारण न केवल वैश्विक संस्थानों पर से लोगों का विश्वास उठता जा रहा है, बल्कि विश्व भर के लोगों पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। लोगों के जीवन के लिए यह गंभीर विषय है।
स्वयं संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने चेतावनी दी कि दुनिया अलग-थलग हो रही है और वर्तमान परिस्थिति अच्छी नहीं है, परंतु इसके बावजूद सुरक्षा परिषद के सुधार एक मैरी-गो-राउंड जितना सरल नहीं हो सकता। अकबरुद्दीन ने इस बात पर भी जोर दिया कि अधिकांश सदस्य राज्य सुरक्षा परिषद की सदस्यता की स्थायी और अस्थायी श्रेणियों में विस्तार के पक्ष में हैं।
नरेंद्र मोदी सरकार जब से सत्ता में आई है संयुक्त रूप से एक स्थायी सीट के लिए दबाव बना रही है और जापान, भारत, ब्राजील और जर्मनी इसीलिए एक दूसरे के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं। UNSC में स्थायी सीट के लिए भारत के दावे को सभी P5 सदस्यों द्वारा समर्थित किया गया है, लेकिन चीन भारत का इस मुद्दे पर कभी खुलकर न तो समर्थन करता है न ही विरोध करता है, इसका कारण है भारत का जापान से अच्छा संबंध।
P5 बंटी हुई है, तो वहीं G4 एक संयुक्त देशों का समूह है और संयुक्त रूप से UNSC में एक स्थायी सीट के लिए चुनाव लड़ेगी। UNSC में यदि किसी एक को जगह नहीं दिया जाता है, तो अन्य 3 देश इस प्रस्ताव को किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं करेंगे। ऐसे में ये चारों देश अगर मिलकर लड़ाई लड़ते हैं तो वह दिन दूर नहीं जब यूएन में भारत भी मजबूती से पक्ष रख सकेगा। लेकिन यूएन इस मुद्दे पर सुधार को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाता है, तो यूएनएससी को अप्रासंगिक होने में ज़्यादा समय नहीं लगेगा।
भारत को क्या मिलेगा UNSC में शामिल होने से?
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता भारत को वैश्विक राजनीति के स्तर पर अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन और रूस के समकक्ष ला खड़ा कर देगा। सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनते ही भारत पड़ोसी देशों के मानवाधिकारों से संबंधित मामलों को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के ध्यान में ला सकता है। हिंद महासागर को “शांति का क्षेत्र” घोषित किया जा सकता है और यह चीन को उसकी विस्तारवादी नीतियों का माकूल जवाब होगा।