भारत में धर्म के नाम पर सरकारी ज़मीन पर अतिक्रमण करना मानो एक ट्रेंड बन चुका है। सरकारी ज़मीन को हड़पकर पहले तो उसपर धार्मिक ढांचा बना दिया जाता है, और जब बाद में कोई विवाद खड़ा होता है, तो मामले को धर्म से जुड़ा बताकर इसे संवेदनशीलता के नाम पर टाल दिया जाता है, और इस तरह यह ज़मीन हड़पने का सिलसिला चलता रहता है। ऐसा ही हमें कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश के बरेली में होते दिखा, जहां एक समुदाय के लोगों ने अवैध तरीके से सरकारी ज़मीन पर मस्जिद निर्माण करने की कोशिश की। अन्य समुदाय के लोगों को जैसे ही इस खबर का पता लगा, उन्होंने तुरंत इसकी सूचना पुलिस को दी जिसके बाद पुलिस ने आकर वहां किसी भी तरह के निर्माण कार्य पर रोक लगा दी।
बरेली में घटित हुई यह घटना इस बात का जीता-जागता प्रमाण है कि कैसे कुछ लोग एक सुनियोजित तरीके से धर्म की आड़ में अपना एजेंडा चलाते हैं और अगर पुलिस उन्हें ऐसा करने से पुलिस रोकती है, तो वे पुलिस के खिलाफ भी गुंडागर्दी करने से पीछे नहीं हटते। दरअसल, जहां ये मस्जिद बनाने की बात की जा रही थी, उस जगह पर कुछ लोगों ने कुछ ही महीने पहले नमाज़ पढ़ना शुरू किया था। यह जगह एक मदरसे के परिसर में थी। नमाज़ पढ़ने से के बाद बात मस्जिद पर आई और लोगों ने मदरसे के परिसर में ही मस्जिद निर्माण कार्य शुरू कर दिया।
इससे अन्य समुदाय के लोग नाराज़ हुए और फिर पुलिस के हस्तक्षेप के बाद मस्जिद निर्माण कार्य को रोक दिया गया। हालांकि, इसी महीने 12 तारीख की रात को गुपुचुप तरीके से लोगों ने फिर एक बार उसी जगह पर मस्जिद बनाना शुरू कर दिया, और सुबह तक उस इमारत की छत भी तैयार हो चुकी थी। सुबह होते ही अन्य समुदाय के लोगों ने पुलिस को दोबारा इसके बारे में सूचित किया। इसके बाद मौके पर उस क्षेत्र के SHO रवीन्द्र कुमार पहुंचे, और उन्होंने निर्माणाधीन मस्जिद में नमाज़ पढ़ रहे लोगों को वापस जाने को कहा।
हालांकि, इसके बाद लोग चले तो गए लेकिन थोड़ी ही देर में पास वाली मस्जिद से सभी को जो घोषणा सुनाई दी, उसने सबके होश उड़ा दिये। थोड़ी देर बाद पास वाली मस्जिद से एक घोषणा होती है कि पुलिस ने लोगों को नमाज़ पढ़ने से रोका दिया है और साथ ही पवित्र पुस्तक कुरान को भी मस्जिद से बाहर फेंक दिया है’। इसके बाद वहां पर बड़े-बूढ़े-महिलाएं सब इकट्ठे हो गए और उन्होंने हंगामा मचाना शुरू कर दिया, जिसके बाद मौके पर क्षेत्र के DM और SP भी पहुंचे और घटनास्थल पर रैपिड एक्शन फोर्स को तैनात करना पड़ा।
तो देखा आपने किस तरह यह ‘नमाज़ पढ़ो-मस्जिद बनाओ’ गैंग सरकारी ज़मीन पर पहले तो कुछ महीने नमाज़ पढ़ते हैं, फिर उसके बाद उसी ज़मीन पर अपना हक जमाते हैं और वहां मस्जिद निर्माण करने की कोशिश करते हैं, और अगर उन्हें कोई ऐसा करने से रोकता है तो वे अपना विरोध करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं। अब बड़ा सवाल यह है कि आखिर ऐसे लोगों के पास ऐसा करने का साहस कहाँ से आता है? दरअसल, उत्तर प्रदेश ने ध्रुवीकरण की राजनीति करने वाली कई पार्टियों की सरकारों को देखा है, जिनके राज में ही ऐसी मानसिकता वाले लोगों के हौसले बुलंद हुए थे। उदाहरण के तौर पर अखिलेश सरकार में तो ऐसे लोगों को खुश करने के लिए IAS स्तर के अधिकारी तक को निलंबित करवा दिया जाता था।
बता दें कि एक ऐसा ही मामला वर्ष 2013 में अखिलेश सरकार के समय में भी आया था जहां गौतम बुद्ध नगर में सरकारी ज़मीन पर अवैध तरीके से मस्जिद निर्माण करवा दिया गया था। उस वक्त इस इलाके की SDM IAS दुर्गा शक्ति नागपाल थीं। उन्होंने उस वक्त उस मस्जिद की एक दीवार को गिरवा दिया था, जिसके बाद अखिलेश सरकार को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने उस अफसर को सस्पेंड करना ही बेहतर समझा। अखिलेश यादव ने उस वक्त कहा था कि सांप्रदायिक तनाव से बचने के लिए हमें यह फैसला लेना पड़ा है। मुख्यमंत्री के इस फैसले पर यूपी आईएएस असोसिएशन ने कड़ी नाराजगी जताई थी। अगर उसी वक्त सरकार इस मस्जिद-माफिया पर सख्त रुख अपनाती, तो आज इन माफियाओं के इतने बुलंद हौसले नहीं होते।
उन दिनों राजनेता ध्रुवीकरण की राजनीति में इतने व्यस्त होते थे कि पूरे प्रशासनिक तंत्र को वे इस काम में लगा दिया करते थे। हालांकि, आज योगी सरकार के समय स्थिति में बदलाव आता दिखाई दे रहा है जो सराहनीय है। पुलिस को अपना काम सही से करना चाहिए और पुलिस के काम में राजनेताओं का हस्तक्षेप भी नहीं होना चाहिए ताकि किसी भी पुलिस कार्रवाई को राजनीति से दूर रखा जा सके। यही एकमात्र एक ऐसा तरीका है जिससे इन मस्जिद माफियाओं पर काबू पाया जा सकता है।