महाराष्ट्र में एक नया खुलासा हुआ कि NCP ने महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए BJP को प्रस्ताव भेजा था और साथ में दो शर्तें भी रखी थी। इन दो शर्तों में पहली शर्त यह थी कि केंद्र की राजनीति में सक्रिय बेटी सुप्रिया सुले को सबसे महत्वपूर्ण कृषि मंत्रालय दिया जाए और दूसरी यह थी कि देवेंद्र फडणवीस की जगह किसी और को मुख्यमंत्री बनाया जाए।
जब यह बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने आई तो वह सरकार बनाने के लिए इन शर्तों को मानने को तैयार नहीं हुए। यहां पर यह गौर करने वाली बात यह है कि आखिर शरद पवार देवेंद्र फडणवीस को क्यों हटाना चाहते थे? क्या उनसे दुश्मनी थी या फिर शरद पवार को डर था कि देवेंद्र फडणवीस उनके और उनके परिवार की राजनीतिक भविष्य के लिए खतरा साबित होंगे?
यह बात गले नहीं उतरती है कि NCP सरकार तो बनाना चाहती थी लेकिन देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहते थे। देवेंद्र फडणवीस ने 5 वर्षों में महाराष्ट्र की दशा और दिशा दोनों ही बदल कर रख दी है और विकास कार्यों की लाइन लगा चुके है। अगर वे उसी रफ्तार से जारी रहते तो इसका परिणाम आने वाले 5 से 10 वर्षों में जमीनी हकीकत में बदल जाता। इतना सक्षम नेता आखिर NCP को क्यों स्वीकार नहीं था? इसका सबसे बड़ा कारण था शरद पवार का डर।
जो मीडिया आज शरद पवार को सरकार बनाने के लिए चाणक्य घोषित कर रही है उसे यह समझ ही नहीं आया कि राजनीतिक क्षितिज पर एक ऐसे सितारे ने अपनी जड़ों को मजबूत कर लिया है जिससे शरद पवार जैसे पुराने और माहिर खिलाड़ी भी यह सोचने को मजबूर हो गए हैं कि अगर देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बने रहते तो उनका राजनीतिक भविष्य अधंकार में चला जाता।
शरद पवार के इस डर के दो मुख्य कारण नजर आ रहे हैं। पहला देवेंद्र फडणवीस का एक निर्णायक और ईमानदार नेता होना, और दूसरा एक शानदार राजनीतिक विश्लेषक और रणनीतिकार जिसने महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी एक अलग पहचान बनाई थी।
एक निर्णायक और ईमानदार नेता
देवेंद्र फडणवीस ने अपने कार्यकाल के दौरान राज्य के चहुंमुखी विकास के कई महत्वपूर्ण कदम उठाया था। फडणवीस पर उनके विरोधी भ्रष्टाचार का एक भी आरोप अभी तक सिद्ध नहीं कर पाए हैं। फडणवीस ने राज्य में सड़कों और फ्लाईओवर्स की जाल बिछाने से लेकर सूखाग्रस्त क्षेत्रों में नई सिंचाई परियोजना शुरू करने तक हर क्षेत्र में बेहद मुस्तैदी के साथ काम किया।
केंद्र और राज्य में भाजपा की सरकार होने से महाराष्ट्र की जनता को भी केंद्र की योजनाओं का पूरा और शीघ्रता से लाभ मिला। जहां एक तरफ कांग्रेस शासित राज्यों की सरकारें आयुष्मान भारत और किसान सम्मान निधि जैसे जनकल्याणकारी योजनाओं को लागू करने में हिचकिचा रही थीं, वहीं महाराष्ट्र सरकार ने अटल पेंशन, प्रधानमंत्री आवास, किसान सम्मान निधि, आयुष्मान भारत, मुद्रा लोन जैसी विभिन्न योजनाओं का लाभ बड़ी तत्परता से जनता तक पहुंचाया।
किसी भी विवाद या भ्रष्टाचार में उनका नाम नहीं आया। चाहे कोई भी मौका हो उन्हें अभी तक कोई डिगा नहीं सका है। किसी भी निर्णय को तुरंत लेने की क्षमता उनमें है। फडणवीस के सामने पार्टी के भीतर फैली गुटबाजी, शिवसेना जैसे कटु सहयोगी के साथ सुचारू रूप से सरकार चलाना , राज्य में एनसीपी, कांग्रेस के प्रभाव को सीमित करना और भ्रष्टाचार में लिप्त राज्य के प्रशासनिक तंत्र को साफ करने जैसी अनेकों चुनौतियां थीं। लेकिन इसके बावजूद वह 47 वर्षों बाद 5 साल का कार्यकाल पूरा करने में सफल रहे।
शानदार राजनीतिक विश्लेषक और रणनीतिकार
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के बारे में कहा जाता है कि वह भाजपा के लिए एक इलेक्शन विनिंग मशीन की तरह हैं तो देवेंद्र फडणवीस के बारे में यह कहा जा सकता है कि उन्होंने महाराष्ट्र में भाजपा को उसके परंपरागत चुनावी क्षेत्रों में जीत दिलाना जानते हैं बल्कि नए चुनावी क्षेत्रों और विषम परिस्थितियों में भी अपनी पार्टी को जीत दिलाने में माहिर रहे हैं।
चुनावों के लिहाज से भाजपा के प्रदर्शन पर नजर डालें तो भंडारा-गोंदिया का लोकसभा उपचुनाव जैसे कुछ अपवादों को छोड़कर पार्टी ने फडणवीस के नेतृत्व में लगभग सभी छोटे-बड़े चुनाव जीते हैं।
राज्य में 2014 तक चौथे नंबर का दर्जा रखने वाली भाजपा ने पिछले 5 सालों में अब तक का अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए सर्वाधिक नगर निकाय एवं महानगर पालिकाएं जीती हैं यही कारण कि फडणवीस के समर्थक यह कहते नहीं थकते कि आज के युवा मुख्यमंत्रियों में उनके जैसी चुनावी राजनीति की समझ रखने वाला दूसरा कोई नेता नहीं है।
महाराष्ट्र की राजनीति में लगभग हमेशा से ही मराठा नेताओं का वर्चस्व था और फडणवीस आते हैं राज्य के महज 3% जनाधार वाले ब्राह्मण समुदाय से, जिस वजह से वो राज्य की किसी भी सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले में फिट नहीं बैठते थे। सभी को यह लगता था कि वह सफल नहीं होंगे लेकिन इन फोर्मूलों से ऊपर उठकर उन्होंने विकास का रास्ता चुना और वह सफल भी हुए। राज्य में मराठा आरक्षण आंदोलन हो, किसान आंदोलन हो या फिर भीमा कोरेगांव में भड़की हिंसा। फडणवीस ने बेहद तत्परता और परिपक्वता से इन मोर्चों को संभाला और इन्हें विपक्ष का चुनावी मुद्दा नहीं बनने दिया। यह फडणवीस की राजनीतिक सूझबूझ का ही कमाल था कि पिछले पांच सालों में राज्य के नेता प्रतिपक्ष राधाकृष्ण विखे पाटील और सातारा से तीन बार के सांसद उदयनराजे भोसले जैसे विपक्ष के अनेक कद्दावर नेता एक के बाद भाजपा का दामन थामते हुए नजर आये।
शरद पवार को फडणवीस की छवि से यह डर बन गया होगा कि अगर वह 5 वर्ष और सत्ता में रह जाएंगे तो NCP, वह स्वयं और उनके राजनीतिक वारिस महाराष्ट्र की राजनीति में अप्रासंगिक हो जाते। शरद पवार ने देखा कि एक जननायक अगर राज्य में मुख्यमंत्री बना रहा तो उनकी जरूरत ही समाप्त हो जाएगी।
प्रधानमंत्री मोदी जैसी शासन शैली और जनता से जुड़ने की कला हो, चुनावी राजनीति की समझ, राजनीतिक प्रबंधन और प्रभावी संवाद की कला ने महाराष्ट्र में एक क्रांति ही ला दी थी जिससे पूरा विपक्ष खेमा परेशान हो चुका था। यही कारण था कि शरद पवार ने BJP के सामने रखी गयी शर्तों में देवेंद्र फडणवीस के जगह दूसरे चेहरे को मुख्यमंत्री के रूप में मांग की थी।