महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के बाद के समीकरण काफी रोचक बन चुके हैं। महाराष्ट्र की जनता ने महायुति गठबंधन [भाजपा शिवसेना गठबंधन] के पक्ष में वोट दिया है, और उन्हे 288 में से 161 सीट प्रदान की हैं। सरकार बनाने हेतु 145 सीटों की आवश्यकता है और महायुति गठबंधन के पास राज्य में स्पष्ट बहुमत है।
दोनों पार्टियों ने देवेन्द्र फडणवीस को मुख्यमंत्री के रूप में पेश कर चुनाव लड़ा था। परंतु सीएम की कुर्सी आदित्य ठाकरे को सौंपने की लालसा में शिव सेना गठबंधन से मुंह मोड़ते नजर आ रही है। अब शिवसेना 2.5 वर्ष के लिए सीएम की कुर्सी मांग रही है, जबकि पार्टी ने केवल 56 सीटें जीतें, और उनका स्ट्राइक रेट 50 प्रतिशत से भी कम है। वहीं भाजपा 105 सीटें जीती है और वो सीएम की कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं है।
दोनों पार्टियों की इस तनातनी में विपक्ष में बैठे काँग्रेस और एनसीपी सोच समझ अपने दांव चल रही है। एक ओर शरद पवार कहते हैं कि जनता ने उन्हे विपक्ष में बैठने को कहा है, तो वहीं उनके पार्टी के नेता शिव सेना को एनडीए छोड़ने की स्थिति में समर्थन देने को तैयार खड़े हैं। एनसीपी के प्रमुख प्रवक्ता नवाब मालिक ने कहा, “यदि भाजपा शिव सेना को मुख्यमंत्री का पद देती है, तो हम नहीं कह सकते। पर अगर भाजपा मना करती है, तो एक विकल्प निकल सकता है। पर सेना को भाजपा का साथ छोड़ना होगा, तभी ये विकल्प संभव होगा।
एनडीए को छोड़ने का सुझाव देकर एनसीपी शिवसेना के अंत की नींव डाल रही है। महायुति का समर्थन करने वाले अधिकांश वोटर काँग्रेस एवं एनसीपी विरोधी हैं। वे दोनों की भ्रष्ट सरकार से तंग आ चुकी थीं, जिसके कारण भाजपा को 2014 में उन्हे परास्त करने में कोई समस्या नही आई। ऐसे में यदि शिवसेना ने एनडीए का साथ छोड़कर काँग्रेस और एनसीपी के गठबंधन के साथ सरकार बनाई, तो महाराष्ट्र के लोग उन्हे अगले चुनाव में एक भी सीट नहीं देंगे। यदि उद्धव ठाकरे ने एनसीपी का दामन थामने की गलती की, तो बाल ठाकरे के कट्टर हिन्दुत्व के आधार पर बनी शिवसेना का अंत होते देर नहीं लगेगी।
जब तक बाल ठाकरे शिवसेना में सर्वेसर्वा थे, काँग्रेस का विरोध और हिन्दुत्व दोनों ही शिवसेना का मुख्य आधार था, परंतु उद्धव ठाकरे के अंतर्गत शिवसेना का प्रमुख ध्येय केवल सत्ता हासिल करना हो गया, चाहे किसी भी प्रकार से करो।
पिछली बार के मुक़ाबले शिव सेना का प्रदर्शन इस चुनाव में काफी लचर रहा। 2014 में पश्चिमी महाराष्ट्र में शिवसेना ने एनसीपी के प्रभुत्व को ध्वस्त करते हुए 12 सीट जीती, परंतु इस बार उन्हे केवल 5 सीट प्राप्त हुई।
एनसीपी शिवसेना को ध्वस्त करने पर इसलिए तुली हुई है क्योंकि वे एनसीपी के लिए एक खतरा बनी हुई है। भाजपा का वॉटर बेस राज्य के तटीय एवं उत्तरी इलाकों में है, और ये वॉटर बेस भाजपा के प्रति निष्ठावान बना हुआ है। परंतु पार्टी कभी भी पश्चिमी महाराष्ट्र में अपनी पकड़ मजबूत नहीं बना पायी है, क्योंकि वो शरद पवार का गढ़ बना हुआ है। शिवसेना एनसीपी को पश्चिमी महाराष्ट्र में चुनौती दे सकती है, क्योंकि उसे एक पारंपरिक मराठा पार्टी के तौर पर देखा जाता है और उसे एनसीपी के मुक़ाबले एक कम भ्रष्ट विकल्प के तौर पर भी माना जाता है। परंतु यदि उसने एनसीपी से गठबंधन किया तो उसके पास नैतिकता नहीं रहेगी। शरद पवार अगर अपनी इस योजना में सफल रहे, तो वे शिवसेना को बर्बाद करके ही छोड़ेंगे।
पार्टी की कमान संजय राऊत के हाथों में है, जिनके कारण शिवसेना एक के बाद एक गलतियाँ करती ही चली जा रही है। राऊत शिवसेना के मुखपत्र सामना का सम्पादन करते हैं और वे उद्धव ठाकरे के काफी करीब है। जब बाल ठाकरे जीवित थे, तब राऊत की नौटंकी नियंत्रित थी। आज बाल ठाकरे के न होने के कारण शिवसेना धर्मसंकट में है, और संजय राऊत के होते हुए ऐसा तो बिलकुल नहीं लगता कि शिवसेना पटरी पर आ सकती है।
काँग्रेस और एनसीपी के पास संख्याबल भले ही कम हो, परंतु शरद पवार और प्रफुल पटेल जैसे नेताओं के रहते वे शिवसेना को अंदर से ध्वस्त करने का माद्दा रखते हैं। सेना को इस ओर ध्यान देते हुए एनडीए के साथ बने रहना चाहिए, क्योंकि अगर उन्होने काँग्रेस और एनसीपी के साथ संधि की, तो पार्टी का राज्य में अस्तित्व ही नहीं रह जाएगा।