अयोध्या फैसले के बाद एक बार फिर से सभी की नजरें सुप्रीम कोर्ट की तरफ़ है। कारण है सबरीमाला पर निर्णय। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केरल के सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश को लेकर अपना फैसला सुनाया। इसमें कोर्ट ने इस मामले को सात जजों की बड़ी पीठ को सौंप दिया है। कोर्ट इस बारे में गुरुवार को फैसला सुनाने वाला था लेकिन 5 जजों की बेंच ने कहा कि परंपराएं धर्म के सर्वमान्य नियमों के मुताबिक हों और आगे 7 जजों की बेंच इस बारे में अपना फैसला सुनाएगी। कोर्ट में इस मुद्दे पर राय बंटी नजर आई और 5 जजों की बेंच के 2 जज पुनर्विचार याचिका को खारिज करने के पक्ष में थे लेकिन बाकी 3 जजों ने इस मुद्दे को बड़ी बेंच के पास भेजने का फैसला बहुमत के आधार पर लिया। ऐसे में यह मामला अब सिर्फ हिंदुओं तक ही सीमित नहीं है। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले में मुस्लिम महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश और पारसी महिला जो गैर पारसी से विवाह कर चुकी हैं उनके टावर ऑफ साइलेंस में प्रवेश पर भी साथ में सुनवाई हो सकती है।
अपने फैसले के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि परंपराएं धर्म के सर्वोच्च सर्वमान्य नियमों के मुताबिक होनी चाहिए। अब बड़ी बेंच में जाने के बाद मुस्लिम महिलाओं के दरगाह और मस्जिदों में प्रवेश पर भी सुनवाई की जाएगी और ऐसी सभी तरह की पाबंदियों को दायरे में रखकर समग्र रूप से फैसला लिया जाएगा।
अब, बड़ी पीठ यह तय करेगी कि इस तरह की प्रथा वैध है या नहीं, या फिर न्यायालयों को धार्मिक आस्था को आवश्यक मान कर तब संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार आगे बढ़ना चाहिए या नहीं।
अब इसका अर्थ यह है कि जल्द ही सबरीमाला के मामले पर नए दृष्टिकोण से सुनवाई हो सकती है जिसका परिणाम और अधिक व्यापक होगा। इस मामले को सात न्यायाधीशों की बेंच को भेजने के शीर्ष अदालत के फैसले का सबसे तात्कालिक और महत्वपूर्ण आशय यह है कि भगवान अयप्पा के भक्तों की आस्था को मान्यता दी जा सकती है और फैसले में कोई बड़ा बदलाव भी देखने को मिल सकता है। इस आस्था के लिए हिन्दू सड़क पर भी उतर आए थे। दिलचस्प बात यह है कि इस विरोध प्रदर्शन में पुरुषों से ज्यादा महिलाओं की संख्या थी जिनका मानना है कि भक्तों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट को फैसला लेना चाहिए था। भगवान अयप्पा के भक्तों का मानना है इस मंदिर में पीरियड्स की वजह से नहीं बल्कि भगवान अयप्पा के ब्रह्मचारी होने की वजह से अब तक औरतों के जाने की मनाही थी।
अब इस मामले को बड़ी बेंच को सौपें जाने के बाद कोर्ट के फैसले के पलटने की संभावना भी बढ़ गयी है। यह मुद्दा बड़ी बेंच के पास जाने के बाद अब राष्ट्रीय मुद्दा बन गया है। यह न केवल भारतीय न्यायपालिका पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालने वाला है, बल्कि इससे राजनीतिक क्षेत्र में भी हलचल मचने वाला हैं। हालांकि, मुख्यधारा की मीडिया ने इस मामले को जगह कम दे कर इसे छोटा बनाने की कोशिश की है, लेकिन इस मामले का 7 जजों की पीठ को सौपा जाना एक बड़ी घटना है जो कि भारत के इतिहास पर गहरा असर डालेगी। इस फैसले का प्रभाव विभिन्न समुदायों पर भी पड़ने वाला है। पुनर्विचार याचिकाओं पर सीजेआई गोगोई ने कहा है कि ‘धार्मिक स्थान पर महिलाओं पर प्रतिबंध सिर्फ सबरीमाला मंदिर तक ही सीमित नहीं है, यह मस्जिद और पारसी मंदिर में महिलाओं के प्रवेश से भी जुड़ा है’। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अब बड़ी बेंच सबरीमाला मामले के अलावा मस्जिद में महिलाओं के प्रवेश और महिलाओं के खतना संबंधी धार्मिक मामलों पर भी सुनवाई करेगी। जिसका असर देश के प्रत्येक क्षेत्रों में पड़ेगा।
बता दें कि जब सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति दी थी तब इसके खिलाफ भारी प्रदर्शन करने वाले प्रदर्शनकारियों पर सख्ती दिखाते हुए दो दिनों में केरल पुलिस ने 1400 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया था और वहीं 258 लोगों के खिलाफ मामला भी दर्ज किया था। उस समय सबरीमाला मामले से पिनराई विजयन की सरकार का हिंदू-विरोधी रुख भी सामने आ गया था। यही नहीं उन्होंने मंदिर के कपाट बंद होने पर मंदिर के मुख्य पुजारी पर अभद्र शब्द का उपयोग कर हिन्दुओं की नजरों में आ गये थे। हालांकि, भक्तों का जनसैलाब देख कर केरल की वामपंथी सरकार भी अब सतर्क हो गयी है और अब सबरीमाला मंदिर जाने वाली महिलाओं को किसी भी प्रकार की सुरक्षा प्रदान नहीं की जाएगी। यह बात खुद वहाँ के कानून मंत्री एके बालन ने स्पष्ट किया है। हालांकि, ये सवाल भी उठता है कि जो एलडीएफ़ की सरकार पिछले वर्ष भक्तों पर लाठियां बरसा रही थी आज वह इतनी संवेदनशील कैसे हो गयी? शायद वो हिन्दुओं को नाराज नहीं करना चाहती।
गौरतलब है कि 28 सितंबर 2018 को सीजेआई रंजन गोगोई की अगुवाई में जस्टिस आर फली नरीमन, जस्टिस एएम खानविल्कर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की पीठ ने सभी उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाजत दी थी। उस समय न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा ने पूरी तरह से असहमति व्यक्त करते हुए कहा था कि विश्वास के मामले न्यायालयों द्वारा निर्देशित नहीं किए जा सकते। अब सात जजों की सैवंधानिक पीठ इसपर क्या फैसला सुनाती है ये देखना दिलचस्प होगा।