राजनीति वैचारिक स्थिरता और धारदार वाकपटुता से होती है न कि झूठ, फरेब और धोखेबाजी से। महाराष्ट्र में त्रिसंकू चुनाव परिणाम आने के बाद एक अलग तरह की राजनीति देखने को मिल रही है जहां राजनीतिक पार्टियां अपने सभी गुणों का प्रदर्शन कर रही हैं। कौन कितना प्रभावशाली है यह तो जनता अगले चुनाव में बता देगी। लेकिन जिस तरह से सभी पार्टियों के सेना नायकों ने एक दूसरे पर प्रतिक्रिया दी है उसका सही से विश्लेषण करने की जरूरत है। जिससे यह पता चलेगा कि कौन अपनी पार्टी के मूल सैद्धांतिक विचारों पर अडिग है और कौन सत्ता की लालच व पुत्र मोह में अपने सिद्धांतों को कुर्सी के पैरों तले दबा रहा है। हम बात कर रहे हैं भाजपा और शिवसेना के दो वरिष्ठ नेताओं के इंटरव्यू की, जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से एक दूसरे पर कटाक्ष किया है लेकिन एक ने गठबंधन की मर्यादा को न लांघने की बात की है तो दूसरे ने खुली चुनौती देकर मर्यादा लांघने की बात कही है।
यहाँ पर बात हो रही है भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की और शिवसेना के प्रवक्ता और राज्य सभा सांसद संजय राऊत की। महाराष्ट्र की सियासत के खेल और उठापटक के बीच इन दोनों के इंटरव्यू सामने आए जिसमें दोनों ही पार्टियों की सैद्धांतिक स्थिति का पता चला। एक ओर जहां अमित शाह ने ANI को दिये इंटरव्यू में भाजपा की स्थिति स्पष्ट की तो वहीं दूसरी ओर संजय राउत ने अमित शाह को ही चुनौती दे डाली।
न्यूज एजेंसी एएनआई को दिए गए इंटरव्यू में अमित शाह ने स्पष्ट किया कि हमने किसी से भी सरकार बनाने का मौका नहीं छीना, हमें अपने सहयोगी शिवसेना की शर्तें मंजूर नहीं थीं इसलिए हम महाराष्ट्र में सरकार नहीं बना पाए। गृहमंत्री अमित शाह से इस इंटरव्यू के दौरान जब शिवसेना से हुई बातचीत से जुड़ा सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा, “हमारी पार्टी के ऐसे संस्कार नहीं कि हम बंद कमरे में हुई बातें सार्वजनिक करें। हमने कोई विश्वासघात नहीं किया है।” वहीं जब अमित शाह से यह पूछा गया कि महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने के बाद नुकसान किसे हुआ तब अमित शाह ने जवाब देते हुए कहा, “राष्ट्रपति शासन से सबसे ज्यादा नुकसान बीजेपी का हुआ है। हमारी केयर टेकर गवर्नमेंट चली गई।” गृहमंत्री अमित शाह ने अपनी बात जारी रखते हुए आगे कहा कि, “महाराष्ट्र में आज भी सभी दलों के पास पूरा मौका है। जिसके पास बहुमत हो वह जाकर राज्यपाल से मुलाकात करे और अपना दावा पेश करे। वे दो दिन मांगते थे और हमने तो 6 महीने दे दिया है। राष्ट्रपति शासन पर मची हायतौबा कोरी राजनीति है।”
लेकिन इसके जवाब में शिवसेना के संजय राउत ने कसम खाकर कहा कि बीजेपी ने बाला साहेब ठाकरे के कमरे में 50-50 फॉर्मूले की बात कही थी। लेकिन अब बीजेपी अपनी जुबान से हट रही है। जिस समय शिवसेना और बीजेपी में 50-50 की बात हुई थी। उस समय अमित शाह वहां मौजूद थे, और हम झूठ नहीं बोलेंगे बाला साहेब की कसम खाते हैं।
संजय राउत ने मीडिया के बीच आकर कहा कि हम झूठ का सहारा लेकर कोई बात नहीं करेंगे। उन्होंने कहा, ‘बीजेपी ने बाला साहेब ठाकरे का अपमान किया है। बाला साहेब के कमरे में बीजेपी ने वादा किया था। इस दौरान उद्धव और अमित शाह मौजूद थे। बाला साहेब का कमरा हमारे लिए मंदिर के समान है। हम झूठ नहीं बोल रहे। 50-50 का बीजेपी ने वादा किया था और अब बीजेपी झूठ बोल रही है। उन्होंने भाजपा को चुनौती देते हुए कहा कि अगर बंद कमरे में हुई बात आपको बुरी लगी थी तो आप बताईए कि क्या बात हुई थी।
इन दोनों ही इंटरव्यू से यही पता चलता है कि कौन कितना गठबंधन धर्म पालन कर रहा है और कौन सत्ता की लालच में अपनी बातों से मुकर रहा है और धमकियां भी दे रहा है। अगर बालासाहब ठाकरे की इतनी ही चिंता होती तो शिवसेना अपने और बाला साहब के सिद्धांतों से समझौता कर अदित्य ठाकरे को CM की कुर्सी दिलाने के लिए धूर-विरोधी पार्टी NCP और हिन्दू-विरोधी कांग्रेस के साथ हाथ नहीं मिलाती। भाजपा आज भी अपने सिद्धांतों पर अडिग है और सत्ता मिले या न मिले वैचारिक मतभेद वाली पार्टी से हाथ नहीं मिला रही है।
जम्मू-कश्मीर जरूर एक अपवाद था, जहां PDP के साथ गठबंधन कर अपना आधार और स्वीकृति बढ़ाने के लिए प्रयोग किया गया था। आज जो शिवसेना सत्ता और सीएम की कुर्सी की मोह में अपने मूल्यों को भूल चुकी है, उसकी स्थापना करने वाले बाला साहेब ठाकरे एक हिन्दुत्ववादी नेता थे, और वे कांग्रेस के मुखर आलोचक थे। आज बाला साहब के उन्हीं विचारों को भुलाकर शिवसेना धुरविरोधी कांग्रेस से हाथ मिलाने जा रही है। भाजपा की ओर से अमित शाह ने पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया है कि भाजपा किसी भी स्थिति में अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करेगी चाहे वो सरकार बनाने की हो यह गठबंधन करने की।