सीएम की कुर्सी के लिए अपनी विचारधारा और मूल्यों की बलि देने वाली शिवसेना ने अब NCP और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने का फॉर्मूला लगभग तैयार कर लिया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार शिव सेना को 5 सालों के लिए मुख्यमंत्री का पद मिल सकता है, जबकि बाकी दोनों पार्टियों को 5-5 सालों के लिए डिप्टी सीएम का पद मिल सकता है। इसके अलावा कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के तहत तीनों पार्टियों के बीच 14-14-12 का फॉर्मूला भी तैयार हो चुका है, जिसमें शिवसेना और NCP को 14 मंत्रिपद मिलेंगे और कांग्रेस को 12 मंत्री पद दिये जाएँगे। बता दें कि मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक समर्थन के बदले NCP और कांग्रेस ने शिवसेना से ऐसी शर्तें मानने को कहा था जो कि उसकी विचारधारा के बिलकुल उलट थीं, हालांकि सत्ता-मोह में शिवसेना ने सभी शर्तों को लगभग मान लिया है।
दरअसल, इन तीनों पार्टियों में विचारधारा का अलगाव होने के कारण वीर सावरकर को भारत रत्न दिये जाने, अल्पसंख्यकों को शिक्षा में आरक्षण दिये जाने जैसे मुद्दों पर पेंच फंस गया था। सूत्रों के अनुसार शिव सेना अपनी इन मांगों से पीछे हट गयी है और अन्य दो पार्टियों की मांगों के आगे झुक गयी है। शिवसेना को शुरू से ही हिंदुत्व विचारधारा को मानने वाली पार्टी के रूप में जाना गया है, और इसी के बूते उसने महाराष्ट्र में अपना जनाधार बनाया है। ऐसे में अगर शिव सेना अपने मूल्यों की बलि देकर सत्ता के लालच में इस गठबंधन को आगे बढ़ाती है, तो यह निकट भविष्य में ही शिव सेना के लिए अस्तित्व का खतरा पैदा कर सकता है।
आज जो शिवसेना सत्ता और सीएम की कुर्सी के मोह में अपने मूल्यों को भूल चुकी है, उसकी स्थापना करने वाले बाला साहेब ठाकरे एक हिन्दुत्ववादी नेता थे, और वे कांग्रेस के कट्टर आलोचक थे। बता दें कि 19 जून, 1966 को मराठा अस्मिता को ध्यान में रखते हुए महाराष्ट्र के स्थानीय लोगों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने के खातिर बाला साहेब ठाकरे ने शिव सेना की नींव रखी थी। शिवसेना की नींव रखने वाले बाल ठाकरे मूल रूप से कार्टूनिस्ट थे और ‘मार्मिक’ नाम की साप्ताहिक राजनीतिक पत्रिका के जरिए राजनीतिक विषयों पर तीखी टिप्पणी किया करते थे, साथ ही मराठा समाज के लोगों के हक की आवाज भी उठाते थे। बाला साहेब छत्रपती शिवाजी को अपना आदर्श मानते थे। शिवसेना की छवि एक कट्टर कांग्रेस विरोधी दल की थी। बालासाहेब ठाकरे अपने कार्टूनों में इंदिरा गांधी को खूब निशाना बनाया करते थे। बालासाहेब के राज में ही मुंबई को अंडरवर्ल्ड से छुटकारा मिला, जिसके कारण सभी अपराधियों को मुंबई से बाहर भागना पड़ा था। हालांकि, आज शिव सेना ने उसी अंडरवर्ल्ड को पाल-पोसने वाली ताकतों के सामने आत्म-समर्पण कर दिया है।
गौरतलब है कि वर्ष 2014 तक शिवसेना कांग्रेस और NCP के खिलाफ कड़ा रुख अपनाकर रखती थी। वर्ष 2014 में शिव सेना के भावी मुख्यमंत्री आदित्य ठाकरे ने NCP और कांग्रेस के नेताओं के मुखौटे से बने रावण की फोटो को ट्विटर पर शेयर करते हुए लिखा था ‘कांग्रेस और NCP यानि नेशनल करप्ट पार्टी का रावण जलता हुआ, जिन्होंने इस देश को कई सालों तक लूटा है’।
Destroying the Ravan raj of the CONgress and NCP (national Corruption party). Each of these have looted Maharashtra pic.twitter.com/klmrGKy3L0
— Aaditya Thackeray (@AUThackeray) February 28, 2014
हालांकि, आज यही आदित्य ठाकरे CM बनने की चाह में अपने ही विचारों के खिलाफ उसी नेशनल करप्ट पार्टी को दंडवत प्रणाम कर रहे हैं और उसके नेताओं के साथ मिलकर सरकार बनाने की योजना बना रहे हैं। यह शिवसेना की अवसरवादी राजनीति है जिसका शिव सेना को आने वाले समय में बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है, और ऐसा पहले भी हो चुका है। बता दें कि 1977 के चुनाव में बालासाहेब ठाकरे ने कांग्रेस को समर्थन किया था, लेकिन शिव सेना को ये सपोर्ट काफी भारी पड़ा था। साल 1978 के विधानसभा चुनाव और बीएमसी चुनाव में शिव सेना को मुंह की खानी पड़ी थी और शिव सेना को इतना बड़ा धक्का लगा था कि बालासाहेब ने शिवाजी पार्क की एक रैली में अपना इस्तीफा तक ऑफर कर दिया था। हालांकि, शिवसैनिकों के विरोध के बाद ये इस्तीफा उन्होंने वापस ले लिया था। यह दिखाता है कि अगर जनता और कैडर की मर्ज़ी के खिलाफ वातानुकूलित कमरों में बैठकर पसीने बहाने वाले कार्यकर्ताओं के साथ खिलवाड़ कर दिया जाता है, तो उसके क्या अंजाम होते हैं और शिवसेना एक बार फिर उसी अंजाम की ओर बढ़ती दिखाई दे रही है।