श्रीलंका में हाल ही में हुए चुनावों के नतीजे सामने आ चुके हैं और इन चुनावों में चीन का समर्थक माने जाने वाले गोटाबाया राजपक्षे को जीत हासिल हुई है। वे उन्हीं महिंदा राजपक्षे के छोटे भाई हैं जिनके राज में श्रीलंका का हंबनटोटा पोर्ट चीन के हवाले कर दिया गया था। इसके अलावा राजपक्षे परिवार के भारत के साथ रिश्ते बेहद खराब रह चुके हैं और खुद गोटाबाया राजपक्षे भारत पर कई बार उनकी पार्टी के खिलाफ षड्यंत्र रचने के आरोप लगा चुके हैं। हालांकि, पिछले कुछ समय में भारत सरकार ने जिस तरह राजपक्षे परिवार के साथ संबंध मजबूत करने की दिशा में कई कदम उठाए हैं, उससे अब स्थितयों में काफी बदलाव नज़र आता दिखाई दे रहा है। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक श्रीलंका में गोटाबाया से जुड़े सूत्रों ने उन्हें बताया है कि वे चीन को एक व्यापार साझेदार मानते हैं जबकि वे भारत को एक रिश्तेदार के रूप में देखते हैं।
बता दें कि गोटाबाया राजपक्षे श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के छोटे भाई हैं और भारत के साथ उनके पुराने रिश्ते हैं। उन्होंने 1980 में असम में उग्रवाद निरोधी अभ्यास में हिस्सा लिया था और वर्ष 1983 में मद्रास विश्वविद्यालय से डिफेंस स्टडीज में मास्टर्स की डिग्री हासिल की थी। बतौर रक्षा मंत्री वह 2012 और 2013 में भारत की यात्रा पर भी आए थे। इसके अलावा रक्षा मंत्री रहते हुए वर्ष 2009 में उन्होंने लिट्टे के खिलाफ बड़ा ऑपरेशन चलाया था। बता दें कि लिट्टे श्रीलंका का एक तमिल अलगाववादी संगठन था जो श्रीलंका में तमिल लोगों के लिए एक अलग देश की मांग कर रहा था। लिट्टे के खिलाफ जिस तरह बतौर रक्षा मंत्री गोटाबाया राजपक्षे ने एक निर्णायक अभियान चलाया, उसी की वजह से वे श्रीलंका में काफी लोकप्रिय हुए।
श्रीलंका में अब अलगाववाद का खतरा तो लगभग पूरी तरह समाप्त हो चुका है, लेकिन श्रीलंका में जो नया खतरा अब पनपता जा रहा है, वह है इस्लामिक आतंकवाद का खतरा, और यही एक बड़ी वजह हो सकती है कि लोगों ने इस नए खतरे से लड़ने के लिए गोटाबाया पर अपना विश्वास जताया हो। आपको याद ही होगा, इस वर्ष 21 अप्रैल को आतंकवादियों द्वारा ईस्टर के दिन तीन चर्च और पांच होटलों को 8 सीरियल बम धमाकों के जरिये निशाने पर लिया गया था। इस हमले में 277 लोगों की मौत हो गयी थी। इसके बाद श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे पर देश की सुरक्षा को गंभीरता से ना लेने के आरोप लगाए गए थे। अब श्रीलंका के लोगों को लगता है कि जिस तरह गोटाबाया ने श्रीलंका को अलगाववाद से छूट दिलाई थी, ठीक उसी तरह वो अब इस्लामिक आतंकवाद से भी छुटकारा दिलाएंगे।
गोटाबाया की जीत के बाद भारत में अब यह चर्चा की जा रही है कि उनका रुख भारत-विरोधी हो सकता है। हालांकि, ये वही गोटाबाया हैं जो महिंदा राजपक्षे के राष्ट्रपति होने के समय भारत को भाई बता चुके हैं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि गोटाबाया सरकार के होते हुए श्रीलंका और भारत के रिश्तों में हमें मधुरता ही देखने को मिलेगी। जैसा हमने आपको बताया, श्रीलंका के सामने अभी आतंकवाद का खतरा पैदा होता जा रहा है और आतंक के खिलाफ लड़ाई में श्रीलंका को भारत का सहयोग मिलना तय है, जिसकी वजह से दोनों देशों के रिश्तों को नया आयाम मिल सकता है।