इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने टाटा समूह के छह ट्रस्टों का रजिस्ट्रेशन कैंसिल कर दिया है। टाटा के इन छह ट्रस्टों में जमशेदजी टाटा ट्रस्ट, आरडी टाटा ट्रस्ट, टाटा एजुकेशन ट्रस्ट, टाटा सोशल वेलफेयर ट्रस्ट, सार्वजनिक सेवा ट्रस्ट और नवाजभाई रतन टाटा ट्रस्ट शामिल हैं। मुंबई के आयकर आयुक्त ने 31 अक्टूबर को इस संबंध में आदेश जारी किया है। बता दें कि इस वर्ष 110 बिलियन कमाने वाली टाटा समूह की टाटा SONS में ये ही ट्रस्टस सबसे अधिक यानि 66 प्रतिशत के शेयर होल्डर है।
क्यों सरकार ने रद्द किया रजिस्ट्रेशन ?
द हिन्दू बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के अनुसार टाटा के इन छह ट्रस्टों यानि जमशेदजी टाटा ट्रस्ट, आरडी टाटा ट्रस्ट, टाटा एजुकेशन ट्रस्ट, टाटा सोशल वेलफेयर ट्रस्ट, सार्वजनिक सेवा ट्रस्ट और नवाजभाई रतन टाटा ट्रस्ट का रजिस्ट्रेशन 1970 के दौर में किया गया था। इन्दिरा गांधी द्वारा किये जा रहे टैक्स टेररिजम से बचने के लिए शायद यह कदम उठाया गया होगा। इनकम टैक्स एक्ट की धारा 11 और 12 के अनुसार, ट्रस्ट और सोसायटी को तब तक आयकर छूट प्रदान की जाती है जब तक वे ‘निषिद्ध गतिविधियों’ में शामिल नहीं होते हैं।
टाटा समूह की वेबसाइट के अनुसार, टाटा SONS का 66 प्रतिशत उन ट्रस्टों के पास है जो भारत में शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कृति और आजीविका की पहल को बढ़ावा देते हैं’।
परन्तु नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने पाया है कि इसके तहत अनुमोदन देने के लिए न सिर्फ नियमों का उल्लंघन हो रहा है, बल्कि प्रतिबंधित गतिविधियों में शामिल ट्रस्टों को भी कर छूट का लाभ मिल रहा है। इससे सरकार को लगभग 12 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। इन संगठनों ने 3139 करोड़ रुपये का निवेश प्रतिबंधित विकल्पों में किया ताकि मुनाफा कमाया जा सके। इस प्रक्रिया में सरकार को 1066.95 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। इन ट्रस्टों ने यह रकम प्रतिबंधित निवेश क्षेत्रों में निवेश की जो कि आयकर अधिनियम की धारा 13 (1) (डी) के अनुकूल नहीं है। टाटा ट्रस्टस को यह पता था कि मुनाफे से निवेश करना प्रतिबंधित है लेकिन फिर भी उन्होंने यह किया।
जब यह बात कैग ने उजागर की तब इन ट्रस्टों ने 2015 में खुद ही रजिस्ट्रेशन त्यागने (सरेंडर) और आयकर में छूट नहीं लेने का फैसला ले लिया। इसके बाद, यह मामला 2018 में संसद की लोक लेखा समिति (पीएसी) के उप-प्रबंधक को हस्तांतरित किया गया था, जिसमें कहा गया था कि, ट्रस्ट 1973 से निवेश के निषिद्ध तरीकों में निवेश कर रहे थे।
इस साल जुलाई में आयकर विभाग ने सभी ट्रस्टों को नोटिस भेजकर असेसमेंट करने की बात कही थी, और 2015 में रजिस्ट्रेशन सरेंडर करने पर भी सवाल उठाए हैं। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, आयकर विभाग ने कहा है कि वो पिछले तीन वित्तीय वर्ष की देनदारी चुकाने के लिए टाटा समूह के सभी ट्रस्टों को डिमांड नोटिस भेजेगा। यह बकाया राशि कई करोड़ों रुपये में है। आयकर विभाग यह कार्रवाई आईटी एक्ट की धारा 115 (टीडी) के तहत करेगा। इसके मुताबिक किसी ट्रस्ट का रजिस्ट्रेशन रद्द होने पर उसे पिछले साल की उस आय पर भी टैक्स चुकाना पड़ता है जिस पर छूट ली गई हो। कोई ट्रस्ट अगर नॉन-चैरिटेबल ट्रस्ट में मर्ज या कन्वर्ट होता है, तो उसे अतिरिक्त टैक्स भी देना पड़ता है। बता दें कि 2016 में आईटी एक्ट में यह विशेष प्रावधान जोड़ा गया था।
टाटा ट्रस्टों ने इस बारे में बयान जारी किया है। उसने कहा, “ट्रस्ट यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि कैंसिलेशन का यह आदेश 2015 में इन छह ट्रस्टों की ओर से अपनी इच्छा से रजिस्ट्रेशन सरेंडर करने से जुड़ा है। रजिस्ट्रेशन को सरेंडर (कानून में उपलब्ध विकल्प) करने का निर्णय ट्रस्टों ने सर्वोत्तम हित में लिया था। वे अपने धर्मार्थ कार्यों के लिए उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम इस्तेमाल करना चाहते हैं।” टाटा के ट्रस्टों ने कहा कि वे आदेश का अध्ययन कर रहे हैं और जल्द कानूनी रास्ता अपनाएंगे।
कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार इस बात का खुलासा करने में साइरस मिस्त्री(18%) का भी हाथ बताया जा रहा है जिनका परिवार टाटा ट्रस्ट(66%) के बाद टाटा SONS में सबसे अधिक हिस्सेदारी रखता है। उन्होंने यह साबित करने के लिए I-T विभाग को दस्तावेज भी उपलब्ध कराये कि टाटा अवैध तरीकों से कर की बचत कर रहे हैं। मिस्त्री 2012 से 2016 तक टाटा समूह के अध्यक्ष थे। उनसे पहले टाटा समूह के अध्यक्ष रतन टाटा (1991-2012) थे जिनके साथ मिस्त्री की सार्वजनिक रूप से विवाद के बाद समूह से बाहर कर दिया गया था।
पब्लिक सर्विस के नाम पर टाटा ट्रस्ट ने कई लेफ्ट-लिबरल मीडिया को स्पोन्सर किया है। यह Independent And Public-Spirited Media Foundation (IPSMF) को फंड करते हैं, जो बदले में द वायर, ऑल्ट न्यूज़, कारवां और द बेटर इंडिया जैसे कई वामपंथी मीडिया संगठनों को फंड करता हैं। साथ ही ट्रस्ट सीधे तौर पर आर्थिक और राजनीतिक साप्ताहिक (ईपीडब्ल्यू) जैसी अति वाम पत्रिकाओं को भी फंड करता हैं। TISS जैसी संस्थाएं भी सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट द्वारा फंडेड है जो टाटा संस में 27 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखती हैं।
इन्हीं मीडिया संस्थानों को फंड देने के नाम पर, यह समूह हजारों करोड़ रुपये का टैक्स देने से बचता है। रतन टाटा के 1990 के दशक की शुरुआत में इस समूह का कार्यभार संभालने के बाद इस समूह पर कई घोटालों में शामिल रहने का आरोप लगा है। इन घोटालों में 2 जी घोटाला, एयर एशिया घोटाला, विस्तारा साझेदारी और जगुआर सौदे शामिल है। टाटा देश के सबसे भरोसेमंद संस्थानों में से एक है। समूह अक्सर अपने आप को ‘human face of industry’ के रूप में को ब्रांड करता है लेकिन भ्रष्टाचार और टैक्स चोरी के प्रत्येक्ष सबूत सामने आने के बाद निश्चित रूप से टाटा को घाटा होगा।