महाराष्ट्र में अचानक से देवेंद्र सरकार के गठन ने देश में एक नई राजनीतिक बहस छेड़ दी है। भाजपा सरकार ने देश के राजनीतिक इतिहास में दूसरी बार अधिनियम -12 का उपयोग करते हुए (इसी का उपयोग कर इंदिरा गांधी ने आपातकाल लागू किया और पीएम की कुर्सी का दावा किया) –राष्ट्रपति शासन को किया और राकांपा के अजित पवार की मदद से सरकार बनाई , जिन्होंने उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। सुप्रीम कोर्ट में शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने भाजपा के खिलाफ पेटिशन दायर किया है, फैसला आज नहीं हो पाया है, कल भी सुनवाई होगी। अब कल सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर होगी।
अब बीजेपी और अजीत पवार के लिए विधानसभा में बहुमत साबित करने की बड़ी चुनौती है। राज्यपाल ने फडणवीस को 30 नवंबर तक बहुमत साबित करने को कहा है। अगर सुप्रीम कोर्ट एनसीपी, शिवसेना और कांग्रेस के दावे के मुताबिक सरकार की वैधता को खत्म करता है, तो भाजपा को हर हाल में बहुमत सिद्ध करना होगा।
ऐसे में तीन संभावित परिदृश्य बनते हैं, जो राज्य में भाजपा के भविष्य की नींव रखेगी। बता दें कि महाराष्ट्र विधानसभा में 288 सीटें हैं और किसी भी पार्टी या गठबंधन को बहुमत की सरकार बनाने के लिए 145 विधायकों के समर्थन की आवश्यकता है। ऐसे में पहले परिदृश्य में भाजपा अपने स्वयं के विधायकों में से 105, 8 से 15 निर्दलीय और राकांपा के 25 से 50 विधायकों के साथ सरकार का दावा पेश करें। इस मामले में फडणवीस सरकार आसानी से बहुमत सिद्ध कर सकती है और बीजेपी-एनसीपी [अजित] गठबंधन संभवत: अगले पांच साल तक सरकार चलाएगी।
दूसरे परिदृश्य में यदि एनसीपी के पास वास्तव में 49 विधायक है जैसा कि पार्टी द्वारा प्रेस में दावा किया गया है; तो फिर बीजेपी कांग्रेस या शिवसेना के विधायकों में फूट डालने की कोशिश करेगी, जैसा कि पार्टी ने कर्नाटक में किया। यहां तक कि अगर पार्टी को एनसीपी के 5 विधायकों का समर्थन है, जो अजित पवार के साथ हैं, और 15 निर्दलीय उम्मीदवार इसके साथ जाते हैं, तो पार्टी को सरकार बनाने के लिए शिवसेना और कांग्रेस के कम से कम 20 विधायकों को अपने पाले में लाना होगा। ऐसा करने में अमित शाह के अनुभव से ये संभव है कि भाजपा शिवसेना के कई विधायकों को अपने पाले में करने में सफल हो सकती है।
शिवसेना के विधायकों का हिंदुत्व के प्रति वैचारिक आत्मीयता है, और ऐसे में वे किसी भी दिन वे किसी अन्य पार्टी की तुलना में भाजपा के साथ जाना पसंद करेंगे। भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ने के उद्धव के फैसले से शिवसेना के कई विधायक खुश नहीं थे। ये विधायक देवेंद्र फड़नवीस के साथ बहुत सौहार्दपूर्ण संबंध रखते हैं और मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल से काफी खुश थे। अगर पार्टी दलबदल के लिए जाती है तो ये विधायक भाजपा के खेमे में आसानी से आ सकते हैं।
तीसरे परिदृश्य में- फडणवीस बहुमत साबित करने में सक्षम नहीं हो पाएंगे और उन्हें सीएम की कुर्सी खाली करनी होगी। उस स्थिति में, शिवसेना, एनसीपी के शरद पवार गुट और कांग्रेस को राज्य में सरकार बनाने का मौका मिलेगा। यह बीजेपी और अमित शाह के लिए काफी शर्मनाक होगा। अमित शाह की राजनीतिक चतुराई और उनके पिछले ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए, इसकी बहुत कम संभावना कि बीजेपी इतनी आसानी से पराजित हो पाएगी, और हमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए यदि एक बार फिर विजय अमित शाह की हो।