‘हम हंबनटोटा लेकर रहेंगे’, चीन की आंख में आंख डालकर गोटाबाया ने दी चेतावनी

आखिरकार श्रीलंका हमारे साथ आया!

गोटाबाया

श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षा जब श्रीलंका के चुनावों में विजयी हुए थे, तो इसने भारत में बैठे कुछ रणनीतिकारों की चिंताओं को बढ़ा दिया था। ऐसा इसलिए क्योंकि गोटाबाया समय-समय पर अपने भारत-विरोध को सबके सामने प्रदर्शित कर चुके थे। हालांकि, उनके राष्ट्रपति बनने के महज़ एक हफ्ते के अंदर-अंदर उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे भारत के खिलाफ कोई नीति नहीं बनाएंगे और न ही वे चीन को श्रीलंका को चीन की एक कठपुतली बनने देंगे।

कुछ दिनों पहले ही गोटाबाया ने यह बयान दिया था कि वे भारत के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाएंगे जिसका भारत में काफी स्वागत किया गया था। उसके बाद अब गोटाबाया ने कहा है कि वे हंबनटोटा पोर्ट को 99 वर्ष के लिए चीन को दिए जाने की संधि पर पुनर्विचार करेंगे।

बता दें कि दिसंबर 2017 में श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेना और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने चीन के कर्ज के जाल में फंसकर हंबनटोटा बंदरगाह और इसके आस-पास की 15000 एकड़ जमीन 99 सालों के लिए चीन को सौंप दी थी। उस वक्त श्रीलंका की सरकार ने अपने इस कदम का यह कहकर बचाव किया था कि वह बंदरगाह को बनाने के दौरान लिए गए चीनी कर्ज को चुका नहीं सकी इसलिए उसके पास कोई और रास्ता नहीं बचा था।

हालांकि, श्रीलंका की सरकार के इस कदम से भारत सरकार की चिंता बढ़ गयी थी। अब अगर गोटाबाया श्रीलंका की पूर्व सरकार के इस फैसले पर पुनर्विचार कर चीन को लीज पर दिए गए इस पोर्ट को वापस अपने कब्जे में लेते हैं, तो ना सिर्फ यह श्रीलंका की संप्रभुता के लिए फायदेमंद होगा बल्कि भारत को भी इसका रणनीतिक फायदा मिलेगा।

और सिर्फ इतना नहीं, गोटाबाया ने चीन को अपना दोस्त कहकर स्पष्ट किया कि उसके साथ वे अपनी चिंताओं को साझा करने से पीछे नहीं हटेंगे। उन्होंने कहा-  “भले ही चीन हमारा अच्छा दोस्त है और हमें विकास करने के लिए उनकी मदद की जरूरत है, लेकिन मैं यह कहने से डरता नहीं हूं कि यह गलती थी। मैं चीन से पुरानी डील पर पुनर्विचार करने और बेहतर समझौते के साथ आकर हमारी मदद करने की अपील करता हूं। आज लोग उस समझौते को लेकर खुश नहीं है, हम एक साल, दो साल, पांच साल… के बारे में सोच सकते हैं लेकिन हमें भविष्य के बारे में सोचना होगा कि आगे क्या होगा?”

हंबनटोटा को लेकर गोटाबाया पिछले दिनों एक और बड़ा फैसला ले चुके हैं जिसने चीन की चिंताओं को बढ़ा दिया था। दरअसल, पिछले दिनों गोटाबाया ने हंबनटोटा पोर्ट पर रूसी नेवी के जहाज़ को गश्त लगाने की अनुमति दे दी थी, जिसे चीन के खिलाफ एक बड़ा संकेत माना गया था।

पिछले कुछ सालों में भारत और राजपक्षा परिवार के रिश्ते लगातार खराब होते जा रहे थे, और इसी कारण से भारत को इस बात की चिंता सता रही थी कि वे चीन के पक्ष में नीति बना सकते हैं। इसका एक उदाहरण हमें तब देखने को मिलता है जब वर्ष 2015 में महिंदा ने भारत सरकार पर यह आरोप लगाया कि उन्हें हराने में भारत सरकार का बड़ा योगदान है। इसके बाद वर्ष 2018 में यानि पिछले ही वर्ष गोटाबाया ने भारत पर आरोप लगाया कि राजपक्षा परिवार के खिलाफ भारत सरकार का विशेष द्वेष है। हालांकि, गोटाबाया से ही जुड़े सूत्रों ने अब बताया है कि पिछले एक साल में उन्हें भारत सरकार के रुख में बड़ा बदलाव देखने को मिला है। उनके सूत्रों के अनुसार ‘अब भारत सरकार के रुख में बड़ा बदलाव आया है।

पहले कोलंबो में मौजूद भारतीय अधिकारी हमसे मिलने में आनाकानी करते थे, लेकिन अब हमारे बीच मधुर संबंध है। हम अभी भी उसी नीति का पालन करेंगे, जिसका हम पहले करते थे, और वह नीति है कि चीन हमारा व्यापारिक साझेदार है, जबकि भारत एक रिश्तेदार है’। राजपक्षा परिवार और भारत सरकार के बीच पुराने रिश्ते चाहे जैसे भी रहे हों, लेकिन अब दोनों के लिए यही फायदेमंद है कि वे पुरानी बातों को भुलाकर अपने रिश्तों को नए आयाम दें।

पिछले एक साल में कूटनीति और दूतावास के माध्यम से भारत सरकार ने जिस तरह राजपक्षा परिवार के साथ संबंधों को दुरुस्त करने के लिए कदम उठाए, उसी का यह नतीजा है कि आज गोटाबाया का राष्ट्रपति के रूप में चुना जाना भारत के लिए चिंता की बात बिलकुल नहीं है और अब वे चीन की चिंता बढ़ाने वाले कदम उठा रहे हैं।

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