शाह के दिमाग में क्या चल रहा है? अर्नब के सवालों पर उन्होंने Maharashtra के लिए कई बड़े हिंट्स दिए हैं

अमित शाह, अजित पवार, शिवसेना

दिल्ली में रिपब्लिक टीवी का समिट चल रहा है। इस समीट में कई राजनीतिक हस्तियों का आना जाना लगा हुआ है। केंद्र सरकार के कई मंत्री यहां अपना इंटव्यू दे चुके हैं। इसी कड़ी में भारत के गृहमंत्री अमित शाह भी पहुंचे, रिपब्लिक टीवी के इडिटर इन चीफ ने महाराष्ट्र की सियासत और 80 घंटों की फडणवीस सरकार पर कुछ सवाल किए। आईये जानते हैं उन्होंने गृहमंत्री शाह से क्या क्या पूछा…

अर्नब गोस्वामी ने जब अमित शाह से पूछा कि आप अजीत पवार के साथ क्यों गए? क्या उन्होंने आपको गुमराह किया? इस पर बड़ी बेबाकी से अमित शाह ने जवाब देते हुए कहा कि हम उनके पास नहीं गए थे बल्कि वे हमारे पास आए थे। किसी भी स्थिति में यह उनकी सरकार थी, जिसे पिछले सप्ताह गठित किया जाना था, इसलिए हमें गुमराह करने का सवाल ही नहीं खड़ा होता ”

अब इस बयान को अजित पवार के बयान से जोड़कर देखें।

अजीत पवार ने एक बयान में कहा हो कि वे हमेशा NCP के साथ ही थे। उन्होंने कहा, ‘मैंने पहले ही कहा है कि मैं राकांपा के साथ था और मैं राकांपा के साथ हूं। क्या उन्होंने मुझे निष्कासित कर दिया है? क्या आपने इसे कहीं सुना या पढ़ा है? मैं अभी भी एनसीपी के साथ हूं।’

अब ये दो बयान संयुक्त रूप से एक बहुत ही महत्वपूर्ण संदेश देते हैं कि फडणवीस को शपथ दिलाने के लिए आधी रात की योजना के साथ पिछले सप्ताह हुई ट्विस्ट को बीजेपी ने पूरी तरह से जानते हुए भी इसे निभाया। यह विपक्षी दलों के भीतर एक तथाकथित “कबूतरों के बीच बिल्ली” को स्थापित करने का एक जानबूझकर प्रयास था और उनमें भय का एक तत्व पैदा किया कि उनके लिए क्या हो सकता है!

अर्नब ने जो अगला प्रश्न पूछा उसमें सब स्पष्ट हो जाता है…

“क्या शिवसेना इसके बाद फिर से बीजेपी के पाले में आ सकती है?”  इस पर शाह ने मुस्कुराते हुए कहा कि अभी उन्हें अपने मंत्रालयों का बंटवारा तो सफलतापूर्वक निपटा लेने दीजिए। अर्नब ने आगे कहा कि “आप ठीक से या सफलतापूर्वक इसका क्या मतलब है” इस पर शाह फिर मुस्कुराते हैं और कहते हैं, “नहीं, मैं केवल यह चाह रहा हूं कि वे इसे अच्छी तरह से निपटा लें”। जिसे सुनकर दर्शक हंस पड़े।

इन दो बयानों से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि पिछले सप्ताह क्या कोशिश की गई थी। दरअसल, यह भाजपा का एक दांव था जिससे शिवसेना अपने मुंह के बल गिरे और इससे साफ पता चलता है कि शिवसेना सरकार बनाने को लेकर किस तरह से शरद पवार के चरणों में जा गिरी है। मुख्यमंत्री पद अब शिवसेना के लिए यह प्रतिष्ठा का मुद्दा बन गया है। इससे पहले सरकार गठन जो विभिन्न मुद्दों पर आपसी बातचीत की वजह से देरी हो रही थी, इस 80 घंटे की सरकार के बाद एकाएक बदल जाता है। इस प्रकरण के बाद साफ तौर पर समझा जा सकता है कि शिवसेना किस तरह एनसीपी और कांग्रेस की कठपुतली बनकर रह गई है।

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