अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आ गया है और यह दिन भारतीय इतिहास में युगों-युगों तक याद किया जाएगा। आज आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने 491 साल पुराने अयोध्या जमीन विवाद को सुलझा दिया है। यह मामला पिछले 134 सालों से कोर्ट का चक्कर लगा रहा था, लेकिन आज अंतिम फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर लग चुकी है। यह बताना जरूरी है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वर्ष 2010 में एक फैसला सुनाया था जिसमें अयोध्या स्थित विवादित स्थल को तीन पक्षों में बांटने का निर्णय किया था। जिसके तहत विवादित स्थल को निर्मोही अखाड़ा, राम लला और सुन्नी वक्फ बोर्ड के बीच समान रूप से विभाजित किया गया था। इसलिए विवादित स्थल को हिंदू पक्ष और मुस्लिम पक्ष में 2:1 के अनुपात में विभाजित किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट का मौजूदा फैसला साल 2010 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करता है। सुप्रीम कोर्ट ने साल 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा सुनाए गए फैसले को गलत बताया, जिसमें 2.77 एकड़ की विवादित जमीन को रामलला विराजमान, सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा के बीच बांटा गया था। जिस निर्मोही अखाड़े को खारिज किया गया है 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उसे एक तिहाई जमीन का मालिक बनाया था। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि कि हाई कोर्ट ने जो तीन पक्ष माने थे, उसे दो हिस्सों में मानना होगा। इसी कारण सुप्रीम कोर्ट ने इसके बजाय विवादित 2.77 एकड़ भूमि को राम लला के पक्ष में दिया है। दूसरी ओर, शीर्ष अदालत ने केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को मस्जिद के निर्माण के लिए अयोध्या में एक प्रमुख स्थान पर 5 एकड़ उपयुक्त वैकल्पिक भूमि आवंटित करने का भी निर्देश दिया है।
जबकि शीर्ष अदालत के फैसले के कार्यकारी हिस्से पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को लागू करने का अधिकार है, जो लगभग एक दशक पहले पारित किया गया था। सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ और जस्टिस एसए बोबडे, डी वाई चंद्रचूड़ भी शामिल थे। अशोक भूषण और अब्दुल नज़ीर ने भी अयोध्या विवाद के एक प्रमुख पहलू पर अलग रुख अपनाया है। जबकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले में कहा गया था कि भगवान राम का जन्म स्थान एक न्यायिक मामला था, जबकि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा- राम जन्मभूमि स्थान न्यायिक व्यक्ति नहीं है, जबकि भगवान राम न्यायिक व्यक्ति हो सकते हैं। ढहाया गया ढांचा ही भगवान राम का जन्मस्थान है, हिंदुओं की यह आस्था निर्विवादित है। विवादित 2.77 एकड़ जमीन रामलला विराजमान को दी जाए। इसका स्वामित्व केंद्र सरकार के रिसीवर के पास रहेगा। 3 महीने के भीतर ट्रस्ट का गठन कर मंदिर निर्माण की योजना बनाई जाए।
अपने फैसले में, शीर्ष अदालत ने एएसआई-निष्कर्षों पर भरोसा किया है कि खाली जमीन पर बाबरी मस्जिद का निर्माण नहीं किया गया था। यह भी माना गया है कि संरचना एक गैर-इस्लामिक संरचना थी। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि विवादित स्थल पर मंदिर के अस्तित्व को साबित करने के लिए पर्याप्त पुरातात्विक साक्ष्य थे। हालांकि, अदालत ने आगे कहा कि एएसआई ने यह साबित नहीं किया है कि क्या मस्जिद बनाने के लिए एक मंदिर को ध्वस्त किया गया था। इलाहाबाद उच्च न्यायालय इस बिंदु पर एकमत नहीं था, हालांकि उसने सर्वसम्मति से विवादित स्थल के विभाजन पर फैसला किया था।
जबकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय की पीठ के जस्टिस शर्मा ने निष्कर्ष निकाला था कि विवादित स्थल पर बाबरी मस्जिद के निर्माण के लिए एक हिंदू संरचना को ध्वस्त कर दिया गया था। मस्जिदों के निर्माण से पहले मंदिरों के खंडहरों का निर्माण किया गया था जो मस्जिद के निर्माण से बहुत पहले से थे और मस्जिद के निर्माण में कुछ सामग्री का उपयोग किया गया था।” इसलिए, भले ही सर्वसम्मति से नहीं, लेकिन बहुमत की राय से इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह विचार किया कि बाबरी मस्जिद के निर्माण के लिए एक हिंदू जैसी संरचना को ध्वस्त कर दिया गया था। इसलिए इस पहलू पर, सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को इस अर्थ में खारिज कर दिया कि बाबरी मस्जिद बनाने के लिए एक मंदिर को ध्वस्त किया गया था।
शीर्ष अदालत के फैसले का सार यह है कि इसने विवादित स्थल को समग्र रूप में देखकर सबूतो के आधार पर ही फैसला सुनाया गया है। पांच न्यायाधीशों की बेंच ने सर्वसम्मति से इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि विवादित जमीन राम लला की है। वहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को भी खारिज करते हुए शिया व निर्मोही अखाड़े के दावे को अतार्किक बताया है।