कुछ दिनों पहले जब देवेन्द्र फड़णवीस और अजित पवार ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी, तो कई मीडिया समूहों ने यह फेक न्यूज़ फैलाई थी कि ‘इर्रिगेशन स्कैम’ के मामले में पवार को क्लीन चिट दे दी गयी है। कांग्रेस के जाने-माने नेता शशि थरूर ने भी बड़ी ही उत्सुकता से इस फेक न्यूज़ को प्रोमोट किया था और भाजपा और फड़णवीस की छवि को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की थी।
मेनस्ट्रीम मीडिया और कई राजनेता जिस मीडिया सोर्स का सहारा लेकर यह खबर फैला रहे थे, वह असल में कट्टा न्यूज़ था, जिसे DNA अखबार के एक पूर्व पत्रकार सुधीर सूर्यावंशी चलाते हैं। बाद में यह खबर सामने आई कि कट्टा न्यूज़ ने इस खबर को पूरी तरह ट्विस्ट कर दिया था। असल में तो उन 9 मामलों में ‘जांच’ को अस्थायी रूप से रोका गया था, जिनमें अजित पवार का नाम शामिल तक नहीं था। ANI ने इसके बाद एक ट्वीट भी किया था जिसमें लिखा था कि इस जांच को दोबारा भी खोला जा सकता है।
Super exclusive breaking . Anti corruption bureau gives the clean chit to @AjitPawarSpeaks who was alleged involved in the Rs 70,000 Cr irrigation scam. The clean chit is given to today. This investigation file has been closed down today. #MahaPoliticalTwist #MaharashtraCrisis pic.twitter.com/LW5rDlwqIr
— KattaNews (@katta_news) November 25, 2019
कट्टा न्यूज़ की इस फेक न्यूज़ को देखते ही देखते लिबरल बिरादरी ने कैच कर लिया और द वायर, द क्विंट और अन्य लेफ्ट मीडिया पोर्टल ने तुरंत कट्टा न्यूज़ का प्रोमोशन करना शुरू कर दिया, और अपने फोलोवर्स से कट्टा को फॉलो करने के लिए कहा। इसके अलावा इस खबर को मेनस्ट्रीम मीडिया ने भी खूब चलाया।
हालांकि, इसके बाद facthunt नाम की एक वेबसाइट ने इस खबर को जांचा तो यह पूरी तरह झूठी साबित हुई। उस वक्त महाराष्ट्र एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) ने डेप्युटी सीएम अजित पवार को सिंचाई घोटाले में राहत मिलने की खबरों को अफवाह बताया था। कांग्रेस द्वारा आरोप लगाए जाने के बाद एसीबी ने कहा था कि अजित पवार के खिलाफ आज कोई मामला बंद नहीं किया गया है। एसीबी ने कहा था कि सिंचाई घोटाले से जुड़े करीब 3 हजार टेंडरों की भी जांच चल रही है।
उस वक्त जब फड़णवीस सरकार के समय 9 मामलों में जांच को बंद किया गया था, तो मीडिया ने इस मामले को जमकर हवा दी थी और भाजपा पर भ्रष्टाचार पर नरम रवैया बरतने का आरोप लगाया था। हालांकि, अब जब एनसीपी-कांग्रेस और शिवसेना की सरकार ने अजित पवार के खिलाफ सभी आरोपों को वापस ले लिया है, तो अब मीडिया में किसी को कोई परेशानी नहीं हो रही है।
27 नवंबर को बॉम्बे हाईकोर्ट में दायर किए गए एफिडेविट में एसीबी ने कहा था, ‘VIDC के चेयरमैन (अजित पवार) को निष्पादन एजेंसियों के भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है, क्योंकि उनका कोई कानूनी कर्तव्य नहीं था।’ बता दें कि जब यह 55 हज़ार करोड़ का इर्रिगेशन घोटाला हुआ था, तो उस वक्त अजित पवार ‘विधर्भ इर्रिगेशन डेव्लपमेंट कॉर्पोरेशन’ और महाराष्ट्र सरकार में जल संसाधन डिपार्टमेन्ट के मंत्री थे, और राज्य में कांग्रेस और NCP की सरकार थी।
अब कोर्ट में जो हलफनामा दायर किया गया है, वह नवंबर 2018 में कोर्ट में दायर किए गए हलफनामे से बिलकुल अलग है। इसमें तत्कालीन ACB प्रमुख संजय बरवे ने बताया था कि अजित पवार ने सिंचाई परियोजनाओं के कॉन्ट्रैक्ट देने की प्रक्रिया में दखलंदाजी की थी। हालांकि, अब उन्हें पूरी तरह दोषमुक्त करार दिया गया है। पवार देश के सबसे दागी राजनेताओं में से हैं। उन पर अपराधियों के साथ संबंध, राज्य की शक्ति के अवैध उपयोग और भ्रष्टाचार के आरोप हैं।
2019 के आम चुनाव अभियान के दौरान पीएम मोदी ने कहा था “केंद्र और राज्य में मंत्रियों के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, पवार राजनेताओं ने सिंचाई परियोजनाओं, बुनियादी ढांचे और रियल्टी क्षेत्रों के माध्यम से हजारों करोड़ रुपये लूटे। वे अब इन सभी घोटालों से चिंतित हैं”। उस वक्त उन्होंने एनसीपी को ‘नेचुरली करप्ट पार्टी’ भी कहा था।
भारतीय मीडिया को जान-बूझकर एजेंडावादी पत्रकारिता करने की आदत है। ज़्यादा पाठकों को आकर्षित करने के लिए और TRP बढ़ाने के लिए ये मीडिया संगठन ऐसी खबरों को बिना जांच-पड़ताल के छाप देते हैं और विपक्ष के साथ मिल जाते हैं। मीडिया में कुछ लोगों को अभी भी कुछ राजनेताओं के इशारों पर ही काम करने की आदत लगी है, और जिस तरह अब ACB द्वारा अजित पवार के खिलाफ सभी मामलों को बंद किए जाने की खबरों को मीडिया के इस धड़े ने छिपाया है, उससे मीडिया-राजनेताओं का अनैतिक गठबंधन और ज़्यादा उजागर हुआ है।