यादव जी ने किया गॉड प्रॉमिस, सत्ता में आने के बाद यूपी के प्रदर्शनकारियों के खिलाफ दर्ज सभी केस माफ

अखिलेश यादव

नागरिकता संशोधन कानून पर उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक हिंसा देखने को मिली। इस प्रदेश में अभी तक लगभग 19 मौतें हो चुकी, और कई पुलिसकर्मी घायल हुए। पुलिस पर कई हमले हुए और कई मीडिया वाहनों को भी आग लगा दी गई। इस कारण यह है कि नेताओं के एक धड़े ने लगातार अफवाहों को बल दिया है और दंगों को भड़काने में सफल रहे हैं, वह भी सिर्फ अपने राजनीतिक फायदे के लिए।

इन हालातों में भी पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक घटिया बयान दिया जिससे राज्य में हो रहे दंगे और भड़क सकते हैं। उत्तर प्रदेश के इस पूर्व मुख्यमंत्री ने यह कहा है कि सपा के सत्ता में वापस आने के बाद सीएए आंदोलन के “प्रदर्शनकारियों” के खिलाफ दर्ज किए गए मामलों को वापस ले लिया जाएगा।

अखिलेश यादव ने कहा, “समाजवादी एफआईआर से डरते नहीं हैं। जब सीएम खुद अपने खिलाफ मामले वापस लेते हैं, तो मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि सपा सरकार बनने के बाद आपके (प्रदर्शनकारियों) के खिलाफ सभी मामले वापस ले लिए जाएंगे।”

हालांकि, अखिलेश यादव का यह बयान शर्मनाक है लेकिन आश्चर्यजनक नहीं है। उत्तर प्रदेश अखिलेश यादव के नेतृत्व में बस एक मुस्लिम तुष्टिकरण करने वाला राज्य में तब्दील हो गया था। दरअसल, सपा सरकार ने विशेष वर्ग के गुंडों को दंगा करने के लिए खुली छूट दी थी। यही नहीं अखिलेश यादव ने पहले भी दंगाइयों और आतंकवाद के आरोपियों के खिलाफ मुकदमे वापस लेने में अहम भूमिका निभाई है। अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान, अखिलेश यादव ने मुस्लिम नेताओं को आतंकी मामलों में आरोपी “निर्दोष मुसलमानों” के खिलाफ केस वापस लेने का आश्वासन दिया था।

हालांकि, उनकी यह तुष्टिकरण की रणनीति इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के सामने फेल हो गयी थी। पीठ ने कहा था उत्तर प्रदेश सरकार केंद्र सरकार की सहमति के बिना ऐसे आतंकी मामलों को वापस नहीं ले सकती है, क्योंकि अधिकांश आतंकी अभियुक्तों पर केंद्रीय अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था।

इसी तरह इससे पहले भी मुजफ्फरनगर दंगों के बाद अखिलेश यादव ने बसपा नेता कादर राणा सहित 16 मुस्लिम नेताओं के खिलाफ मुजफ्फरनगर दंगों से संबंधित मामलों को भी वापस ले लिया था। इस तरह से तुष्टिकरण की राजनीति के कारण, उत्तर प्रदेश दंगों का केंद्र बन गया है। वर्ष 2012 में, अखिलेश यादव सरकार की नीतियों के कारण दंगों में भरी वृद्धि हुई थी। दंगों के अचानक बढ़ने से इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) भी चिंतित हो गया था और केंद्र सरकार को उत्तर प्रदेश के “अस्थिर स्थिति” के बारे में सूचित किया था।

बता दें कि वर्ष 2013 में, अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री रहते में उत्तर प्रदेश में अधिकतम दंगे हुए थे। उस वर्ष लगभग 247 दंगे हुए जिसमें 77 लोगों  की जान गयी।

अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में आम नागरिकों के जीवन को अपने राजनैतिक लाभ के लिए दंगाइयों को एक खुली छूट दे रही थी। यह सच है कि 2014 के लोकसभा चुनावों से राज्य में इस तरह के दंगे होना यह दिखाता है कि अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी किस तरह से जनता के जीवन को ताक पर रखती है।

अब इस तरह का बयान और ‘दंगाइयों’ प्रोटेस्ट करने वाले कह कर उनके खिलाफ मामलों को वापस लेने के अपने बयान से अखिलेश यादव ने फिर से राज्य को इस्लामिक कट्टरपंथ और सांप्रदायिक दंगों के भवंर में धकेलना चाहते हैं।

दंगाइयों और इस्लामवादियों के खिलाफ मामलों को वापस लेना ही अखिलेश पर भारी पड़ा और जनता ने उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया। अपने इस बयान से अखिलेश यादव ने फिर से उन हालातों को वापस लाने की धमकी दी है , जब इस राज्य में सिर्फ गुंडों और दंगाइयों का बोल-बाला हुआ करता था। इसलिय यह आवश्यक है कि ऐसी पार्टी को 2022 में भी सत्ता से बाहर ही रखा जाए। उत्तर प्रदेश के लोगों को ऐसे राजनीतिक संगठनों से बहुत सावधान रहना चाहिए जो अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की राजनीति करते हैं और दंगाइयों के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेकर उन्हें खुली छूट देते है।

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