CAA विरोध पर सेक्युलरों की ध्रुवीकरण की राजनीति उल्टी पड़ सकती है, ऐसे में एक बड़ा तबका होगा नाराज

संशोधित नागरिकता कानून यानि CAA के खिलाफ देशभर में विरोध प्रदर्शन देखने को मिल रहे हैं। इनमें से कुछ तो बेहद हिंसक साबित हुए हैं। दिल्ली में जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के विरोध प्रदर्शन के दौरान बसों को आग लगाना हो, या नॉर्थ ईस्ट के कुछ राज्यों में बसों और ट्रेनों को आग के हवाले करना हो। हालांकि, इन विरोध प्रदर्शनों को भड़काने में देश की विपक्षी पार्टियों और मीडिया की भूमिका को कम नहीं आंका जा सकता। संसद से लेकर मीडिया तक, विपक्षी नेताओं ने शुरू से ही इस कानून के प्रावधानों को लेकर देश के मुसलमानों को झूठ और गलत तथ्य परोसा है।

इस बात में किसी को कोई शक नहीं है कि यह संशोधित कानून भारतीय मुसलमानों को किसी भी तरह प्रभावित नहीं करता है, लेकिन फिर भी भारतीय मुसलमानों को भारतीय विपक्षी राजनीतिक पार्टियां जान-बूझकर भड़का रही हैं, ताकि इन्हें भ्रमित कर चुनावों में वोट बंटोरे जा सके। हालांकि, इन विपक्षी पार्टियों को इस बात का ज़रा भी आभास नहीं है कि CAA का विरोध करने वालों के मुक़ाबले CAA का समर्थन करने वालों की संख्या कई गुणा है और अगर उनकी मुस्लिम ध्रुवीकरण की राजनीति ऐसे ही चलती रही, तो देश का गैर-मुस्लिम समुदाय अपनी वोट की चोट से इन्हें इनके राजनीतिक हाशिये पर ला सकता है।

CAA का विरोध करने वालों में उत्तर में पंजाब के CM अमरिंदर सिंह से लेकर पूर्व में पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी तक, सभी ने इस कानून का विरोध किया है और इसे लोकतन्त्र विरोधी बताया है। 15 दिसंबर को ट्वीट कर अमरिंदर सिंह ने पीएम मोदी से इस कानून को वापस लेने की मांग की।

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भी CAA का विरोध करने के लिए इंडिया गेट पर धरना दिया। उन्होंने मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि यह लोकतंत्र है, तानाशाही नहीं है और छात्र इस लोकतंत्र के मूल हैं। कांग्रेस महासचिव ने यह भी कहा कि देश गुंडों की जागीर नहीं है।

ऐसे ही यूपी के पूर्व सीएम और सपा नेता अखिलेश सिंह यादव ने अपने ट्वीटस के माध्यम से ही इस कानून को विध्वंसकारी घोषित कर दिया। उन्होंने ट्वीट किया “भाजपा सरकार ने अपने विध्वंसकारी क़ानून से देश के वर्तमान को हिंसा की आग में झोंक दिया है और विद्यार्थियों पर हमले करके देश के भविष्य पर प्राणांतक चोट की है। कहते हैं जब लोग हारने लगते हैं तो वो दमनकारी हो जाते हैं। भाजपा जैसी सत्ता की भूख भारत के इतिहास ने पहले कभी नहीं देखी”।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो एक कदम आगे बढ़ाते हुए इस कानून के खिलाफ एक बड़ी रैली का आयोजन किया। इसके अलावा उन्होंने कहा कि अगर केंद्र को इस कानून को पश्चिम बंगाल में लागू करना है, तो उसे उनकी लाश पर से गुजरना होगा। उन्होंने कहा “अगर आप मेरी सरकार को बर्खास्त करना चाहते हैं तो कर दें, लेकिन मैं कभी भी नागरिकता संशोधन कानून को पश्चिम बंगाल में लागू नहीं होने दूंगी”।

इसी तरह केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने भी CAA को लेकर इसी तरह का रुख अपनाया हुआ है और इस कानून को राज्य में लागू ना करने की बात कही है। उन्होंने तो इस कानून को स्वतन्त्रता छीनने वाला घोषित कर दिया।

अब आते हैं सबसे बड़े सवाल पर। आखिर वह क्या चीज़ है जो इन सभी नेताओं को इस कानून का विरोध करने पर मजबूर कर रही है? क्या यह बिल भारत के किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव करता है? इसका उत्तर है नहीं। यह बिल सिर्फ तीन पड़ोसी देशों में धार्मिक आधार पर उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करने की बात कहता है, तो इससे इन पार्टियों को क्या परेशानी हो सकती है? इस कानून का विरोध करने का सीधा मतलब यह है कि आप इस कानून के तहत भारत की नागरिकता प्राप्त करने वाले हिंदुओं और अन्य गैर-मुस्लिमों से ईर्ष्या रखते हैं, क्योंकि भारत के मुसलमानों को इस कानून से क्या फर्क पड़ता है? लेकिन देश की विपक्षी पार्टियों ने देश के मुसलमानों को इस कानून के खिलाफ भड़काकर उन्हें अपने वोट बैंक में बदलने की रणनीति पर काम किया, और अभी भी इसी रणनीति पर काम किया जा रहा है। चाहे देश जले, चाहे लोगों में तनाव फैले या फिर चाहे देश में लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति ही क्यों न बिगड़ जाए।

हालांकि, ये सभी विपक्षी नेता और पार्टियां यह बात भूल रही हैं कि नागरिकता कानून में संशोधन करना भाजपा का चुनावी एजेंडा था और देश के वोटर्स ने भाजपा को इस कानून के लिए उन्हें जनादेश दिया था। अब जब भाजपा ने यह कदम उठाया है तो इसका विरोध कर इन पार्टियों ने जनादेश का अपमान किया है, और आने वाले समय में इन पार्टियों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। झारखंड में अभी चुनाव जारी हैं और वहां आखिरी चरण के चुनाव 20 दिसंबर को खत्म होंगे। ऐसे में कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों द्वारा CAA के विरोध से इन्हें इन चुनावों में भारी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। CAA का विरोध कई पार्टियों के लिए बुरा सपना सिद्ध हो सकता है, क्योंकि भारत के अधिकतर वोटर्स इस कानून का समर्थन करते हैं।

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