राणा अय्यूब और बरखा दत्त हमेशा की तरह इस बार भी वैश्विक स्तर पर भारत का अपमान किया है

राणा अय्यूब बरखा दत्त

अपने आप को पत्रकार कहने वाली राणा अय्यूब और बरखा दत्त अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को बदनाम करने का कोई मौका नहीं छोड़ती हैं और नागरिकता संशोधन बिल पर भी इन्होंने ठीक ऐसा ही किया है। इन दोनों ही पत्रकारों ने वाशिंगटन पोस्ट के लिए लिखते हुए भारत सरकार पर हिंदुवादी एजेंडा फॉलो करने का आरोप लगाया है और साथ ही भारत को पाकिस्तान की राह पर चलने वाला देश घोषित कर दिया है। CAB बिल को लेकर अधिकतर लोगों का यही मानना है कि इस कानून के बाद भारत में पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश से आए पीड़ित अल्पसंख्यकों को न्याय मिल सकेगा, जिसका दुनियाभर में स्वागत होना चाहिए। हालांकि, राणा अय्यूब और बरखा दत्त समय-समय पर भारत-विरोधियों के प्रति अपनी वफादारी को सिद्ध करती रहती हैं। चाहे अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को धूमिल करना हो, या अब CAB को लेकर, अपने कुतर्कों से भारत को एक अति-हिंदुवादी मुस्लिम विरोधी देश की तरह प्रदर्शित करना हो, इन्होंने हर बार भारत को बदनाम करने वाले लेख ही वैश्विक मीडिया में लिखे हैं।

CAB को लेकर अपने एजेंडे से भरपूर लेख में बरखा दत्त ने बताया कि इस बिल के पास होने के बाद भारत ने आधिकारिक तौर पर पाकिस्तान की साख का अनुसरण करना शुरू कर दिया है। बरखा दत्त अपने लेख में लिखती हैं कि ऐसा पहली बार हो रहा है कि भारत की नागरिकता को किसी धर्म से जोड़ा जा रहा है। वे लिखती हैं कि CAB के साथ-साथ NRC को लाकर भाजपा भारत को पाकिस्तान के रास्ते पर धकेलने का काम कर रही है। आगे वे अपने लेख में बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासियों के दुखों पर प्रकाश डालने का काम करती हैं। वे लिखती हैं:

“एक तरफ जहां हिंदुओं को नागरिकता दी जा रही है, तो वहीं NRC के तहत भारत में सदियों से रह रहे गरीब मुसलमानों को उनकी नागरिकता प्रमाणित करने के लिए कहा जा रहा है”।

आगे बरखा दत्त सरकार से सवाल पूछते हुए यह भी लिखतीं हैं कि आखिर रोहिंग्या मुसलमानों, पाकिस्तान के अहमदिया और बलूचियों के लिए इस बिल में कोई स्थान क्यों नहीं है। हालांकि, बरखा दत्त ने अपने इस लेख में कहीं भी इस बात का उल्लेख नहीं किया कि दुनिया में हिन्दू पीड़ितों के लिए भारत के अलावा कोई और देश नहीं बचा है जबकि मुसलमानों को शरण देने के लिए इस दुनिया में पहले से ही 57 मुस्लिम देश मौजूद हैं।

ऐसा ही एजेंडा हमें राणा अय्यूब के लेख में देखने को मिला। उनके इस लेख का शीर्षक था:

‘भारत हिन्दू राष्ट्रवादी देश बनने की ओर अग्रसर’

उनके इस लेख की पहली लाइन में लिखा हुआ था ‘नरेंद्र मोदी की सरकार दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र को हिन्दू राष्ट्रवादी देश बनाने पर तुली हुई है, और सोमवार को अमित शाह ने CAB को ज्वलनशील भाषण के साथ लोकसभा में प्रस्तुत कर इसी कड़ी में एक और कदम बढ़ाया’।

आगे वे सरकार के इस कदम में RSS की विचारधारा की भूमिका पर प्रकाश डालती हैं। वे लिखती हैं कि RSS शुरू से ही भारत के संसाधनों पर हिंदुओं का अधिकार जताता आया है और इस प्रकार उन्होंने भारत में हिन्दू प्रभुत्व को आधिकारिक तौर पर मान्यता दे दी है। आगे वे भी अपने लेख में रोहिंग्याओं को नागरिकता देने की बात करते हुए लिखती हैं कि उन्हें इस बिल में इसलिए शामिल नहीं किया गया है क्योंकि वे मुसलमान हैं। वे अपने लेख की आखिरी लाइन में लिखती हैं ‘यह गांधी के भारत का अंत है’।

इन दोनों ने वाशिंगटन पोस्ट के लिए ग्लोबल ओपिनियन सेक्शन में अपने एजेंडावादी लेखों को प्रकाशित किया है। ऐसा ही हमें अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर भी देखने को मिला था। इन पत्रकारों के लिए भारतीय साख से ज़्यादा अंतरराष्ट्रीय मीडिया में रहकर लाइमलाइट पाना ज़्यादा महत्वपूर्ण होता है। अक्सर देखने में आया है कि ये अमेरिकी अखबार ऐसे ही लोगों को लिखने के लिए चुनते हैं जो अक्सर भारत विरोधी एजेंडे को बढ़ावा देते रहते हैं। ऐसे में राणा अय्यूब और बरखा दत्त जैसे पत्रकारों के लिए यह ज़रूरी हो जाता है कि वे अपने आप को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए ऐसे भारत-विरोधी राग अलापते रहें। अपने रोजगार को बचाने के लिए ऐसे लोग भारत-विरोध पर उतर आए हैं जो बेहद शर्मनाक है।

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