CAB पर उमड़े विवाद के बीच में महाराष्ट्र के मानवाधिकार आयोग के आईपीसी ऑफिसर अब्दुर रहमान ने विवाद खड़ा किया। लगता है वे हर्ष मंदर के ट्वीट्स बड़े ध्यान से पढ़ रहे हैं। राज्य सभा में बिल पारित हुए 24 घंटे से ऊपर हो चुके हैं, परंतु उन्होंने कोई नया ट्वीट नहीं किया है। उधर अगस्त में स्वैच्छिक रिटायरमेंट के लिए आवेदन करने वाले अब्दुर रहमान अब ट्विटर पर प्रोपगैंडा फैलाते हुए दिखाई रहे हैं –
The #CitizenshipAmendmentBill2019 is against the basic feature of the Constitution. I condemn this Bill. In civil disobedience I have decided not attend office from tomorrow. I am finally quitting the service.@ndtvindia@IndianExpress #CitizenshipAmendmentBill2019 pic.twitter.com/Z2EtRAcJp4
— Abdur Rahman (@AbdurRahman_IPS) December 11, 2019
जनाब अपने ट्विटर त्यागपत्र में लिखते हैं, “CAB 2019 संविधान के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध है। मैं इस बिल का विरोध करता हूं। मैं सविनय अवज्ञा के अंतर्गत कल से ऑफिस नहीं आऊंगा। मैं आधिकारिक रूप से आईपीएस सेवा छोड़ रहा हूं”।
परंतु ट्विटर यूजर्स रहमान के इस स्टंट से बिलकुल भी प्रभावित नहीं हुआ। जब से उन्होंने यह ट्वीट किया है, तभी से कई ट्विटर यूज़र उनका मज़ाक उड़ाते हुए नज़र आ रहे हैं। कुछ लोग तो उनकी हिपोक्रिसी को एक्स्पोज़ करते हुए बता रहे हैं कि उन्होंने अगस्त में ही अपनी नौकरी छोड़ने की अर्ज़ी दी थी, जिसे 25 अक्टूबर को गृह मंत्रालय ने खारिज कर दिया था। इसके बाद उन्होंने केन्द्रीय प्रशासनिक ट्राइब्यूनल में इसी परिप्रेक्ष्य में नवंबर में अपील की थी, जिसपर अभी निर्णय आना बाकी है।
सोशल मीडिया ने अब्दुर रहमान के ‘क्लीन रिकॉर्ड’ की भी पोल खोल दी। अब्दुर रहमान पर मुस्लिम समुदाय को प्राथमिकता देने के आरोप लगाए जाते हैं। 2011 से उनपर आईपीसी और मुंबई पुलिस एक्ट के अंतर्गत कई मुकदमे दर्ज हैं। ऐसे में नैतिकता के आधार पर उनका इस्तीफा मात्र छलावा है, जिससे वे आगे की कार्रवाई से बच सकें।
परंतु इस केस में नाटकीय मोड़ तब आया, जब अब्दुर रहमान के समर्थन में पत्रकार बरखा दत्त उतर आयीं। उन्होंने मोदी सरकार को निशाने पर लेने हेतु ट्वीट किया, “वरिष्ठ आईपीएस ऑफिसर अब्दुर रहमान ने CAB के पारित होने के प्रति विरोध जताते हुए अपना इस्तीफ़ा सौंपा”।
Senior IPS officer @AbdurRahman_IPS resigns from service to register his civil protest against the passage of the #CABBill pic.twitter.com/AKoVnen0Hx
— barkha dutt (@BDUTT) December 11, 2019
परंतु कई लोगों ने बरखा दत्त को रहमान के केवल दूसरे पेज को प्रकाशित करने के लिए आड़े हाथों लिया, और बरखा दत्त का दांव धीरे-धीरे उन्हीं पर भारी पड़ने लगा। पहले पेज में रहमान अपने आप को ही एक्सपोज कर बैठे। पहले पेज पर ये साफ लिखा है कि अगस्त में उन्होंने वीआरएस के लिए आवेदन किया था। शायद इसीलिए बरखा पहले पृष्ठ को नहीं दिखाना चाहती थीं, जिससे जनता को यह लगे कि उन्होंने CAB के विरोध में अपना त्यागपत्र सौंपा है। बरखा दत्त के इस ट्वीट पर सोशल मीडिया के यूजर्स ने जमकर उनकी क्लास लगाई।
@BDUTT show this first…he resigned in the month of August…!!!! Don't think we are fools#CitizenshipAmmendmentBill2019 #CAB2019 pic.twitter.com/GObbfsZlJD
— Abhay Subramanian (@bengaluruputra) December 11, 2019
No @BDUTT IPS officer Abdur Rahman did NOT resign because of #CAB He is lying.
He sought VRS on 1 August 2019 for “personal reasons”. MHA rejected it on 25 October 2019. I'm told he is facing charges which he wants to escape. So he used #CAB for grandstanding on 11.12.19. #Media https://t.co/KWyEq9xLPC— Kanchan Gupta (Hindu Bengali Refugee)🇮🇳 (@KanchanGupta) December 12, 2019
Is it the same Abdur Rahman whom Barkha has found for us? Was accused of irregularities in recruitment, and was giving preference and benefits to Muslim candidates https://t.co/YrIoR5Evuq pic.twitter.com/hwZEy1C8Mj
— Rahul Roushan (@rahulroushan) December 11, 2019
What Shabbir Bro is concealing??
•Abdur Rahman applied for VRS – Aug 2019.
•Rejected by Home Ministry.
•He is being investigated for graft on irregularities in recruitment of constables.
The above are reasons for quitting IPS.
Not the #CAB2019 passed by Indian Parliament! https://t.co/JMkNDa2FXq
— Dr.SG Suryah (@SuryahSG) December 12, 2019
Why so halla over communal bigot IPS Abdur Rahman? He is the same officer who is accused of irregularities in recruitment and was giving preference to Muslim candidates. He misused his position and now crying over alleged discrimination. Shame! https://t.co/SBejzo9dgG pic.twitter.com/0jggmzH0Mx
— Vivek Bansal (@ivivekbansal) December 12, 2019
उदाहरण के लिए कंचन गुप्ता ने बरखा दत्त को आड़े हाथों लेते हुए कहा है, “बरखा जी, अब्दुर रहमान ने इसलिए त्यागपत्र नहीं दिया क्योंकि CAB पारित हुआ था। वो झूठ बोल रहा है। व्यक्तिगत कारणों से उन्होने 1 अगस्त 2019 को वीआरएस के लिए आवेदन किया था, जिसे 25 अक्टूबर को गृह मंत्रालय ने खारिज कर दिया था। उनपर कई ऐसे आरोप हैं, जिनपर वे कार्रवाई से बचना चाहते हैं। तो इसलिए उन्होने CAB का अपने सहूलियत अनुसार उपयोग किया”।
मजे की बात तो यह है कि अब्दुर रहमान ने एक नहीं, बल्कि दो दो त्यागपत्र ट्विटर पर पोस्ट किए हैं। एक में वे अपने आप को संत के तौर पर दिखाना चाहते हैं, परंतु उन्होंने अगस्त में डाले गए अपने वीआरएस के आवेदन का कहीं भी उल्लेख नहीं किया है। हालांकि, दूसरे पत्र में वे स्वीकारते हैं कि उन्होंने वीआरएस के लिए अगस्त में आवेदन किया था।
The #CitizenshipAmendmentBill2019 is against the basic feature of the Constitution. I condemn this Bill. In civil disobedience I have decided not attend office from tomorrow. I am finally quitting the service.@ndtvindia@IndianExpress #CitizenshipAmendmentBill2019 pic.twitter.com/Z2EtRAcJp4
— Abdur Rahman (@AbdurRahman_IPS) December 11, 2019
हालांकि, यह पहला ऐसा केस नहीं है, जहां किसी प्रशासनिक अफसर ने अपने निजी विचारधारा को सर्वोपरि रखा हो। के गोपीनाथन हो, या फिर जम्मू कश्मीर के अवसरवादी अफसर शाह फैसल हों, ऐसे कई अफसर हैं, जो अपने काम से ज़्यादा अपने निजी विचारधारा को प्राथमिकता देते हैं। जहां एक ओर पूर्वोत्तर CAB के विरोध में जलाया जा रहा है, वहाँ ये निस्संदेह चिंताजनक बात है की अब्दुर रहमान जैसे अवसरवादी CAB का दुरुपयोग अपने निजी लाभ के लिए कर रहे हैं, चाहे इसके पीछे किसी निर्दोष की बलि क्यों न चढ़ जाये। वहीं बरखा दत्त जैसे पत्रकार तथ्यों की गहराई में जाए बिना ही अपने एजेंडे के लिए सरकार पर ही निशाना साधने में व्यस्त रहते हैं. हालांकि, सोशल मीडिया पर यूजर्स इनके झूठ के लिए अच्छी लताड़ लगाते हैं।