केरल के चर्च और वहां के पादरियों से विवादों का चोली-दामन का नाता है। अब एक नया मामला सामने आ रहा है कि केरल स्थित बिलिवर्स चर्च ने विदेशों से मिलने वाले फंड्स का दुरूपयोग किया है। दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट के अनुसार अधिकांश जमीन लोहरदगा, लातेहार, रांची, खूंटी, चाईबासा और चतरा में खरीदी गई है। इस मामले में गृहमंत्रालय ने बिलिवर्स चर्च को ब्यौरा देने के लिए नोटिस जारी कर दिया है। गृह मंत्रालय की कार्रवाई के बाद राज्य सरकार ने भी एक्शन लेते हुए सीआईडी जांच का आदेश दे दिया है।
झारखंड सरकार ने जांच रिपोर्ट जल्द से जल्द देने के लिए कहा है जिससे गृह मंत्रालय को वे इस बारे में रिपोर्ट दे सकें। गृह मंत्रालय ने जो नोटिस जारी किया है उसमें बताया गया है कि बिलिवर्स चर्च ऑफ इंडिया ने झारखंड के कई जिलों में जमीन खरीदी है। बताया जा रहा है कि यह जमीन चर्च ने वोकेशनल सेंटर, होप सेंटर और पारिश चर्च खोलने के लिए खरीदी गई है। अब गृहमंत्रालय और झारखंड सरकार की जांच के बाद ही तय हो पाएगा कि इस जमीन को किस काम से खरीदा गया और जमीन खरीदने के लिए प्रयोग किया गया पैसा विदेशों से अवैध रूप से मंगाया गया या वैध रूप से।
एनजीओ और ईसाई मिशनरियों से जुड़े ऐसे कई मामले सामने आये हैं जिनका कनेक्शन विदेश में स्थित चर्चों के साथ पाया गया है, जो जनजातीय आबादी का बड़े पैमाने पर धर्मांतरण के लिए जानी जाती हैं। झारखंड जैसे राज्य इसके प्रमुख उदाहरण हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में 88 ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित एनजीओ में शीर्ष 11 को 7.5-39 करोड़ रुपये का विदेशी फंड मिला था। एक रिपोर्ट में कुछ गैर-अधिकारी संगठनों पर देश में अलगाववाद और माओवाद का बढ़ावा देने का भी आरोप लगाया गया था। उन पर यह आरोप भी लगाया जाता है कि विदेशी शक्तियां उनका उपयोग एक प्रॉक्सी के रूप में भारत के विकास को अस्थिर करने के लिए करती हैं।
ऐसा पहला मामला नहीं है जब एफसीआरए कानून के तहत इन अवैध एनजीओ और ईसाई मिशनरियों पर चाबुक चलाया गया हो। इससे पहले हाल ही में मोदी सरकार ने 1,807 एनजीओ और शैक्षणिक संस्थानों को विदेशी फंडिंग में कानूनों का उल्लंघन करते हुए पाया था। राजस्थान विश्वविद्यालय, इलाहाबाद कृषि संस्थान, यंग मेन्स क्रिश्चियन एसोसिएशन, गुजरात और स्वामी विवेकानंद एजुकेशनल सोसाइटी कर्नाटक, उन संस्थाओं और एनजीओ में शामिल थे, जिनका विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम के तहत लाइसेंस रद्द कर दिया गया है। ऐसा इसलिए किया गया था ताकि विदेशों से अवैध रूप से आने वाले पैसों पर लगाम लगाई जा सके।
बता दें कि मोदी सरकार जब से सत्ता में आई है तब से ही लगातार विदेशी फंड्स से पलने वाले चर्च, एनजीओ और ईसाई मिशनरियों चाबुक चला रही है। सरकार ने गैर-सरकारी संगठनों, ईसाई मिशनरियों को विदेशों से मिलने वाले पैसे को ‘चंदा’ न मानकर ‘निवेश’ के तौर पर मान्यता देने का फैसला किया था। यानि विदेशी फंड पर FCRA के नियमों के साथ-साथ कंपनीज़ एक्ट और इनकम टैक्स के ज़्यादा कड़े नियम लागू होंगे और एनजीओ को विदेशों से मिलने वाले पैसे का सारा डिटेल संबन्धित एजेंसियों को देना पड़ेगा। वर्ष 2014 में मोदी सरकार ने आते ही ऐसे प्रोपेगैंडावादी गैर-सरकारी संगठनों पर कार्रवाई करना शुरू कर दिया। वर्ष 2016 में मोदी सरकार ने FCRA कानून के तहत लगभग 20 हज़ार गैर-सरकारी संगठनों के विदेशी चंदा प्राप्त करने पर पूरी तरह रोक लगा दी थी।
गौरतलब है कि सरकार FCRA अधिनियम का इस्तेमाल उन संगठनों के खिलाफ कर रही है जो विदेशी वित्तीय सहयोग का प्रयोग भारत विरोधी गतिविधियों में करती हैं। इनमें ग्रीनपीस इंडिया जैसे एनजीओ का नाम शामिल है, जिस पर फेमा कानून के उल्लंघन करने का आरोप भी लगा है। ऐसी ही एक और एनजीओ है ‘कम्पैशन इंटरनेशनल’, जिसे FCRA अधिनियम के तहत दंडित किया गया है। इन सभी एनजीओ का उन गतिविधियों में शामिल होने का संदेह था जो देश विरोधी हैं।
ऐसे में बिलिवर्स चर्च से झारखंड में अवैध जमीन खरीद मामले की रिपोर्ट मांगना और झारखंड सरकार द्वारा जांच बैठाना बहुत ही सराहनीय काम है। अब जांच के बाद फिर से एक बड़े चर्च के कारनामों का खुलासा होने वाला है। मोदी सरकार ने ऐसे ईसाई मिशनरियों और चर्चों पर FCRA के तहत कानूनी कार्रवाई करके बता दिया है कि धर्म और शिक्षा के नाम पर अब देश में किसी भी प्रकार का अवैध धंधाखोरी नहीं चलेगा।