नागरिकता संशोधन विधेयक लोकसभा में पारित हो चुका है। ये विधेयक पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश के धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का प्रावधान रखता है। इसे लोकसभा में 311 मत [पक्ष] – 80 मत [विपक्ष] से पारित किया गया। रोचक बात तो यह है कि जहाँ एक तरफ संसद में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, तृणमूल काँग्रेस जैसी कई पार्टियों ने इसका विरोध किया तो वहीं, भाजपा और उसके साथी दलों के अलावा बीजेडी, एआईएडीएमके, वाईएसआर कांग्रेस और शिवसेना जैसी पार्टियों ने भी इसका समर्थन किया। अब सवाल यह कि परंतु इसके पीछे कुछ अहम कारण भी है, जो इन पार्टियों को मजबूरी में ही सही, पर राष्ट्रहित में सही फैसला लेने के लिए प्रेरित करती है।
अनुच्छेद 370 पर लोगों को अपने समर्थन से हैरत में डालने के बाद अब वाईएसआर काँग्रेस ने एक और चौंकाने वाला कदम उठाते हुए इस विधेयक का समर्थन किया है। परंतु इसके पीछे वाईएसआर काँग्रेस का राष्ट्र प्रेम नहीं, अपितु सत्ता में बने रहने की आकांक्षा ज़्यादा महत्वपूर्ण कारण है। सत्य तो यह है कि जगन मोहन रेड्डी भाजपा के साथ अपने संबंधों में किसी प्रकार की कड़वाहट नहीं लाना चाहते, और वे केंद्र सरकार की ओर राज्य में निवेश हेतु मदद की निगाह से भी देखते हैं। इसके अलावा जिस प्रकार से उन्होने उद्योगों की स्थापना के विरुद्ध निर्णय लिए हैं, वे पहले ही केंद्र सरकार की दृष्टि में है।
भले ही बीजेडी भाजपा की सहयोगी दल नहीं है, परंतु विपक्ष में वे इकलौती ऐसी पार्टी है, जिसने राष्ट्र हित में लिए हर निर्णय पर निस्वार्थ भाव से भाजपा का समर्थन किया है। तीन तलाक संशोधन विधेयक हो, या फिर अनुच्छेद 370 को हटाने का निर्णय हो, या फिर नागरिकता संशोधन विधेयक ही क्यों न हो, बीजेडी ने स्पष्ट कर दिया कि राष्ट्रहित में भाजपा उनपर सदैव विश्वास कर सकती है।
वहीं इस विधेयक को समर्थन जनता दल [यूनाइटेड] के निर्णय ने सभी को हैरत में डाला। तीन तलाक संशोधन विधेयक और अनुच्छेद 370 पर जेडीयू ने भाजपा का पुरजोर विरोध किया था। परंतु इस विधेयक के समर्थन से दो बातें स्पष्ट हो चुकी हैं। एक तो जेडीयू बिहार चुनाव को ध्यान में रखते हुए कोई भी कदम ऐसा नहीं लेना चाहती है जो भाजपा के विरुद्ध जाये। जेडीयू अच्छी तरह जानती है कि यह वही भाजपा है, जिसने हार कर भी कर्नाटक को पुनः प्राप्त किया था, और वे एचडी कुमारस्वामी जैसा हश्र तो बिलकुल नहीं चाहती। इसके साथ ही कर्नाटक के उपचुनाव और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रदर्शन से नीतीश कुमार को डर लगने लगा है कि कहीं भाजपा के विरुद्ध जाना बिहार में उनकी कुर्सी के लिए खतरा न बन जाए।
इसके अलावा पूर्वोत्तर से भी विपक्ष को करारा चांटा पड़ा है। एनपीएफ़, एनडीपीपी और एमएनएफ़ जैसे दलों ने भी इस विधेयक को अपना समर्थन देकर सिद्ध किया है कि उन्हें इस विधेयक के लागू होने से कोई समस्या नहीं है, और जिन्हें समस्या है, उन्हें भारत की समृद्धि से कोई वास्ता नहीं है। सच कहें तो इस बिल से कई पार्टियों का वास्तव चेहरा उजागर हुआ है। जहां राष्ट्रहित के विरोधियों की पहचान हुई है, तो वहीं कुछ ऐसी पार्टी भी सामने आयीं हैं, जो वैचारिक रूप से समान हो या नहीं, परंतु राष्ट्रहित पर समर्थन देने से पीछे नहीं हुईं।