नागरिकता संशोधन विधेयक को लोकसभा में भारी बहुमत के साथ पारित होने के बाद अब राज्यसभा में भी पास हो चुका है। परन्तु दोनों ही सदनों में मायावती के नेतृत्व वाली बसपा पार्टी ने इस बिल का समर्थन नहीं किया है और इस कदम से बसपा ने अपने ही मूल आधार [वोट बैंक] के साथ विश्वासघात किया है। मायावती की पार्टी अपने आप को पिछड़े समुदाय की हितैषी बताती है, परंतु उन्होंने नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में अपना मत देकर उन अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के प्रति अपना विरोध जताया है, जिनकी वजह से उनका राजनीतिक अस्तित्व है, और जिन्हें पाकिस्तान में वर्षों से प्रताड़ित किया जा रहा है।
यह ऐतिहासिक रूप से प्रमाणित किया जा चुका है कि विभाजन के दौरान पिछड़े समुदाय से कई हिन्दुओं ने पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान [अब बांग्लादेश] में रहने को अपनी प्राथमिकता दी। दलित मुस्लिम एकता के प्रणेता माने जाने वाले नामशूद्र समुदाय के नेता जोगेन्द्र नाथ मण्डल ने पूर्वी पाकिस्तान में रहने का निर्णय किया। परंतु जोगेन्द्र नाथ मण्डल को स्वयं 1950 में पाकिस्तान छोड़ कर आना पड़ा, और उन्होंने पाकिस्तानी सरकार पर हिंदू विरोधी होने का आरोप भी लगाया। परंतु अन्य दलितों को दोनों पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान में रहने के लिए विवश होना पड़ा।
आज भी पाकिस्तान में रह रहे 85 प्रतिशत हिन्दू दलित हैं, और वे पाकिस्तान की अल्पसंख्यक नीतियों का सबसे ज़्यादा शिकार भी हुए हैं। भेदभाव के अलावा उनके साथ दुष्कर्म, फिरौती के लिए अपहरण, जबरन धर्म परिवर्तन, ईश निंदा के झूठे आरोप और गरीबी का भी सामना करना पड़ता है। अधिकांश लोगों को गरीबी और दलित मुस्लिम एकता की मिथ्या के कारण पाकिस्तान में रहने के लिए बाध्य होना पड़ा। परंतु यह मिथ्या 1950 आते आते ही टूट गयी। जोगेन्द्र नाथ मण्डल को न केवल मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा, अपितु उन्हें पूर्वी पाकिस्तान छोड़ भारत आना पड़ा। आज जब भारत दलित समुदाय के उन्मूलन के लिए अनेक कदम उठा रही है तो वहीं पाकिस्तान आज भी दलितों को जानवरों से बदतर व्यवहार करती है।
पाकिस्तान में रह रहे हिन्दू दलित आज भी अशिक्षा और गरीबी से जूझ रहे है। आज भी हिन्दू दलितों के साथ गुलामों जैसा व्यवहार किया जाता है और उन्हें कृषि मजदूर, गारमेंट फ़ैक्टरी कामगार या सफाई कर्मचारियों के तौर पर काम करना पड़ता है। परंतु यह कोई चौंकाने वाली बात है, क्योंकि पाक आज भी दलितों को हेय की दृष्टि से देखता है। उन्होंने इसे सुनिश्चित किया कि दलित आसानी से हिंदुस्तान न लौट सकें। एक भारतीय उच्च अधिकारी को तत्कालीन पीएम लियाक़त अली खान ने ये भी कहा था, कि यदि वे [दलित] भारत चले गए, तो हमारे ‘कराची के सड़क और पाखाने कौन साफ करेगा?’
सच कहें तो पाकिस्तान आज भी दलित समुदाय को कमजोर बनाए रखने के लिए नित नयी योजनाएँ तैयार करता रहता है। कुछ हिस्सों में समुदाय के स्वामित्व वाली भूमि पर इवैक्यूई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड और शत्रु संपत्ति बोर्ड द्वारा कब्जा कर लिया गया है। यहां तक कि मुस्लिम कब्रिस्तानों में दफन किए गए हिंदू दलितों के शवों को सिर्फ इसलिए खोद कर बाहर निकाला गया, क्योंकि वे गैर-मुस्लिम थे। दलितों को पाकिस्तान में भूमिहीन दास बना कर रख दिया गया है।
जहां तक बांग्लादेश का प्रश्न है, तो वहाँ भी दलितों की स्थिति कोई बेहतर नहीं थी, और मरीचझापी नरसंहार ने उनकी दुर्दशा को और बढ़ा दिया। भारत में मरीचझापी नामक द्वीप पर शरणार्थियों को बसाया गया था, परंतु उनपर जल्द ही पश्चिम बंगाल में राज कर रही कम्युनिस्ट निरंकुशता को हथियार बनाया। कहा जाता है कि नरसंहार में 5,000 से 10,000 दलित-हिंदू मारे गए थे। अब तक, मरीचझापी नरसंहार से बचने वालों को नागरिकता प्रदान नहीं की गई है। नागरिकता संशोधन विधेयक इस ऐतिहासिक अन्याय का प्रायश्चित करने की ओर किया गया एक सार्थक प्रयास है।
पाकिस्तान ने दलित-मुस्लिम एकता के मिथ्या का प्रचार कर दलित-हिंदुओं को व्यवस्थित रूप से गुमराह किया और उन्हें धोखा दिया। उस मिथक का भंडाफोड़ होने में ज्यादा समय भी नहीं लगा। परन्तु तब दलित समुदाय अपनी आर्थिक तंगी के कारण पलायन करने में सक्षम नहीं थे और तब से, पाकिस्तान वास्तव में दलित-हिंदुओं के साथ अमानवीय व्यवहार करता है और हर दिन उनके सम्मान की धज्जियां उड़ाता आया है। परंतु उनका क्या, जो भारत में अपने आप को दलितों के हितैषी कहकर उन्हीं के साथ विश्वासघात कर रहे हैं?
सीएबी के खिलाफ मतदान करके, बसपा ने उन सिद्धांतों के खिलाफ मतदान किया है, जिनके आधार पर पार्टी का सृजन हुआ था। सच कहें तो अपने विरोध में बसपा ने डॉ॰ बीआर अंबेडकर के साथ भी विश्वासघात किया है। सत्य तो यह है कि विभाजन का सबसे बड़ा शिकार दलित-हिंदू थे और अब संशोधित नागरिकता कानून के सबसे बड़े लाभार्थी भी दलित होंगे। परंतु बसपा उत्तर प्रदेश के भीतर मुस्लिम वोट बैंक को खुश करने के लिए उत्सुक है। वे दलित कल्याण की बजाए धार्मिक तुष्टिकरण को लेकर अधिक चिंतित है। ऐसे में CAB के खिलाफ मतदान करके, मायावती के नेतृत्व वाली पार्टी की वास्तविक वफादारी भी उजागर हुई है।