इन्होंने राज्यपाल को धक्का दिया, फिर भी ये सज्जन पुरुष हैं, लिबरल मीडिया द्वारा हबीब का बचाव पढ़िए

आरिफ मोहम्मद खान

नस्लभेद के विरुद्ध अपनी आवाज़ उठाने वाले उग्रवादी कार्यकर्ता मैल्कम एक्स ने मीडिया के दोहरे रुख को देख बहुत पहले ही कहा था, “ये मीडिया बहुत गैर जिम्मेदार और अपरिपक्व हैं। यदि आप सतर्क नहीं होते हैं, तो यही अखबार (मीडिया) आपको शोषित वर्ग से नफरत करने पर विवश करेंगे और शोषण करने वालों को पीड़ितों के तौर पर पेश भी करेंगे”। केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान पर कथित इतिहासकार एस इरफान हबीब द्वारा की गयी हाथापाई के बाद जिस तरह से वामपंथी मीडिया उन्हें बचाने पर तुली हुई है, उससे मैल्कम एक्स द्वारा कहे गये एक एक शब्द सत्य सिद्ध हुआ है।

हाल ही में केरल के कन्नूर विश्वविद्यालय में आयोजित एक समारोह में केरल के राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद खान भाषण देने के लिए मंच पर आये थे। जैसे ही वे अपना भाषण देने लगे, और मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का अपने भाषण में उल्लेख किया, मंच पर बैठे एस इरफान हबीब उबल पड़े। उन्होंने अविलंब राज्यपाल के सम्बोधन में बाधा डाली और वहाँ मौजूद सुरक्षाकर्मियों के साथ धक्का-मुक्की की। बात यहीं पर नहीं रुकी, इरफान हबीब ने राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को बोलने से रोकने के लिए राज्यपाल के सुरक्षाकर्मी का बैज तक नोच लिया। इसके बाद उन्होंने वहाँ मौजूद अन्य सुरक्षाकर्मियों के साथ बदसलूकी की। कन्नूर यूनिवर्सिटी के वीसी ने बीच में खड़े होकर हबीब को रोका।

परंतु इस बात का विरोध करना तो बहुत दूर की बात, वामपंथी मीडिया ने ‘उल्टा चोर कोतवाल को डांटे’ की तर्ज पर आरिफ मोहम्मद खान को ही निशाने पर लेना शुरू कर दिया। द वायर ने शीर्षक लिखा, ‘सीएए पर केरल राज्यपाल के समर्थन के विरोध में इरफान हबीब ने मोर्चा संभाला’, और पूरे लेख में द वायर ने यह दिखाने का प्रयास किया, कि असल दोषी इरफान हबीब नहीं, बल्कि आरिफ मोहम्मद खान थे, जिनके कारण इरफान हबीब को ऐसा कदम उठाने के लिए विवश होना पड़ा –

कोलकाता के एक अखबार द टेलीग्राफ ने पूरे प्रकरण को सीएए का शांतिपूर्ण विरोध में ही परिवर्तित कर दिया। उनके अनुसार, “केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को सीएए और एनआरसी के विरोधियों की निंदा करने पर प्लाकार्ड और नारों का सामना करना पड़ा” –

परंतु वास्तविकता तो कुछ और ही थी। केरल राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने बताया कि उन्होंने सभी वक्ताओं की बातों को धैर्य के साथ सुना, परंतु उनके एक भी शब्द को अन्य वक्ता सुनना भी नहीं चाहते थे। वक्ताओं ने उस दौरान संविधान पर ख़तरे का भी आरोप लगाया। इरफ़ान हबीब ने राज्यपाल को बोलने से रोकने के लिए राज्यपाल के सुरक्षाकर्मी का बैज तक नोच लिया। इसके बाद उन्होंने वहाँ मौजूद अन्य सुरक्षाकर्मियों के साथ बदसलूकी की। कन्नूर यूनिवर्सिटी के वीसी ने बीच में खड़े होकर हबीब को रोका।

राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद ख़ान ने कहा कि इरफ़ान हबीब न तो उन्हें सुनना चाहते थे और न ही कार्यक्रम से बाहर जाना चाहते थे। उन्होंने कहा कि इन असहिष्णु लोगों का पहले से ही यही रवैया रहा है। इरफ़ान हबीब की हरकतों को देख कर नीचे बैठे लोगों ने हंगामा भी किया। इस बारे में आज तक से बातचीत में आरिफ मोहम्मद खान ने ये भी बताया,

“राज्यपाल होने के नाते संविधान और कानून की रक्षा करना मेरा कर्तव्य है। अगर मैं संसद द्वारा पारित किसी क़ानून से सहमत नहीं हूँ, तो मुझको इस्तीफा देकर अपने घर चले जाना चाहिए। लेकिन, अगर संसद द्वारा पारित किसी क़ानून से मैं सहमत हूँ, तो मुझको उसका बचाव करना चाहिए। अगर किसी को ऐसा लगता है कि मेरी मौजूदगी में कोई संसद से पारित क़ानून पर हमला करेगा और मैं चुप होकर सुनता रहूँगा और जवाब नहीं दूँगा, तो यह ग़लत है। संवैधानिक पदों पर बैठे हर शख्स की यह जिम्मेदारी है कि वह संसद से पारित कानून की रक्षा करे।”

अब जब द वायर और द टेलीग्राफ आरिफ मोहम्मद खान को विलेन बनाने पर तुला हुआ हो, तो भला एनडीटीवी कैसे पीछे रहता? एनडीटीवी ने भी आरिफ मोहम्मद खान की प्रतिक्रिया पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करते हुए लेख प्रकाशित किया, ‘ आरिफ़ मोहम्मद खान का चौंकने वाला बयान – दर्शकों में विरोधी गुट ‘बजबजाते नालियों’ के समान है’ –

इतना ही नहीं, एनडीटीवी की पत्रकार गार्गी रावत ने आरिफ मोहम्मद खान पर हुए हमले का उपहास उड़ाते हुए ट्वीट किया, “माफ कीजिएगा, पर आप एक पूर्व अवसरवादी राजनेता आरिफ मोहम्मद खान को एक विद्वान बता रहे हैं और एक जाने माने इतिहासकार इरफान हबीब को एक छद्म लिबरल घोषित कर रहे हैं” –

सच कहें, तो इरफान हबीब ने अपने वास्तविक स्वरूप को ही केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के सामने उजागर किया। ऐसे लोग बहुत सहिष्णु होते हैं, पर केवल अपने और अपने बिरादरी वालों के लिए। इनके विरोध में खड़े होना भी किसी अपराध से कम नहीं है। ऐसे में एस इरफान हबीब के इस कृत्य का समर्थन कर वामपंथी मीडिया ने सिद्ध कर दिया है कि उन्हें देशभर में हेय की दृष्टि से क्यों देखा जाता है।

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