सीएए के विरोध में बॉलीवुड का वामपंथी वर्ग ज़ोर शोर से अभियान चला रहा है। चाहे इस विषय पर उन्हें कोई ज्ञान न हो या न हो। परंतु, जिस तरह बॉलीवुड का एक पूरा धड़ा इस विषय पर उग्र हुआ है, वो इनके हिपोक्रिसी को स्पष्ट रूप से दर्शाता है। इसी कड़ी में अब आगे आए हैं प्रसिद्ध गीतकार, कवि एवं फिल्म निर्देशक संपूर्ण सिंह कालरा, जिन्हें गुलज़ार के नाम से बेहतर जाना जाता है।
अमर उजाला अखबार द्वारा आयोजित एक साहित्य समारोह में संपूर्ण सिंह कालरा ने बिना नाम लिए मोदी सरकार और हाल ही में लागू हुए सीएए पर तंज़ कसते हुए कहा, “मैं आपको ‘मित्रों’ संबोधित करने वाला था, लेकिन फिर मैं रुक गया”। फिर उन्होंने कहा कि उन्हें किस प्रकार से ‘दिल्लीवालों’ से डर लगता है। उन्होंने कहा, “मेरे मित्र यशवंत व्यास जब दिल्ली से उनसे मिलने के लिए आए तो मैं डर गया था। इन दिनों आप नहीं जानते कि ‘दिल्ली-वाले’ क्या कानून ला देंगे। आज कल दिल्ली वालों से सब डरते हैं, पर इन हालातों में भी जो सबसे शुद्ध और सबसे सच्ची है, वो है एक लेखक की आवाज़। वो एक ध्वज की तरह अडिग है।”
जब स्वतंत्रता के समय भारत का विभाजन हुआ था, तो उसका सबसे ज़्यादा असर अविभाजित पंजाब और बंगाल में रहने वाले करोड़ों हिंदुओं और सिक्खों पर हुआ था। चाहे वो मनोज कुमार हो, कपूर वंश हो, या फिर चोपड़ा बंधु ही क्यों न हो, उन सभी को भारत में आकर नए सिरे से शुरुआत करनी पड़ी, और भारत से ही उन्हें प्रसिद्धि और समृद्धि मिली थी। इसी कड़ी में संपूर्ण सिंह कालरा यानि गुल्ज़ार भी आते हैं, और उन्हें तो सीएए का खुले दिल से स्वागत करना चाहिए था, क्योंकि जो लोग दुर्भाग्यवश विभाजन के समय पाकिस्तान से भारत नहीं आ पाये थे, उन्हें अब भारत में मान और सम्मान भी मिलेगा।
शायद संपूर्ण सिंह कालरा भूल गए हैं कि उनके साथ क्या बीती थी। संपूर्ण सिंह कालरा अविभाजित पंजाब के झेलम जिले में स्थित दीना नामक स्थान पर 1934 में एक कालरा सिख परिवार में जन्मे थे। भारत के विभाजन के चलते उन्हें मुंबई आना पड़ा, जहां उन्होंने छोटी-मोटी नौकरियां करते हुए पहले अपनी पढ़ाई पूरी की, उसके बाद वे फिल्म उद्योग में अपनी संभावनायें तलाशने निकल पड़े।
एक व्यक्ति विशेष का विरोध करते करते वे कब अपने ही बीते हुए कल का उपहास उड़ाने लगे, ये शायद गुल्ज़ार साहब को भी नहीं पता चला होगा। पर यही तो हमारे वामपंथी गुट और उनके समर्थकों की खूबी होती है, एक व्यक्ति विशेष का विरोध करते करते वे कब राष्ट्रद्रोह और अधर्म के उपासक बन जाते हैं, उन्हें भी पता नहीं चलता। पाकिस्तान में जिस तरह से यूसुफ योहाना अपने साथ हुई त्रासदी के बाद भी आँखें मूँद कर अपने साथ बुरा व्यवहार करने वालों का समर्थन कर रहे हैं, उसी भांति संपूर्ण सिंह कालरा अपने बीते हुए कल को जानबूझकर अनदेखा कर उन लोगों का समर्थन कर रहे हैं, जो बिलकुल नहीं चाहते कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक आधार पर प्रताड़ित किए गए व्यक्तियों के साथ न्याय हो।
बता दें कि इससे पहले जिम सार्भ ने भी अपने पारसी समुदाय के साथ हुए अनगिनत अत्याचारों को भुलाते हुए सीएए के खिलाफ अतार्किक विरोध जताया था। उनके बोल विरोध कम और किसी राजनीतिक कार्यकर्ता का मोदी सरकार के प्रति विरोधी भाषण ज़्यादा लग रहे थे। गुलज़ार दुर्भाग्यवश उसी जमात का हिस्सा बन चुके हैं, जिसका काम सीएए के विरोध के नाम पर हिंसा भड़काना है, चाहे वे सीएए का ‘सी’ भी न जानते हों। सच कहें तो गुलज़ार और जिम सार्भ जैसे लोग जिस तरह से CAA के विरोध में खड़े हैं, उससे तो एक ही कहावत इन पर चरितार्थ होती है, “नाच न जाने, तो आंगन टेढ़ा!”