अमेरिका और चीन के बीच जारी व्यापार युद्ध का चीन के शहरों पर भी अब नकारात्मक असर पड़ता नजर आ रहा है। दरअसल, व्यापार युद्ध की वजह से चीन के कई शहर भूतीया शहरों में तब्दील होते जा रहे हैं, क्योंकि कंपनियों के बंद हो जाने से और कंपनियों के देश से बाहर चले जाने से इनमें काम करने वाले कर्मचारी भी शहरों को छोड़कर पलायन कर रहे हैं।
चीन ने आर्थिक क्रांति के शुरुआती सालों में अपने इन्फ्रास्ट्रक्चर को विकसित करने के लिए कई कदम उठाए। शहरों को एयरपोर्ट से जोड़ा, हाईवे बनाए गए और चीन में मौजूद सस्ती लेबर ने विदेशी कंपनियों को यहां आने पर मजबूर कर दिया। इसी के बाद चीन दुनिया की फ़ैक्टरी के रूप में स्थापित होता चला गया।
हालांकि, पिछले लगभग दो साल से अमेरिका और चीन के बीच जारी ट्रेड वॉर से अब स्थिति में बदलाव आना शुरू हो गया है। उत्तरी चीन के पर्ल नदी किनारे बसा हुइजू शहर सैमसंग के तीन दशक पुराने कारखाने के अक्तूबर में बंद होने के बाद ‘भूतिया शहर’ में तब्दील हो चुका है। कारखाने को भारत और वियतनाम में स्थानांतरित कर दिया गया था। बता दें कि पिछले साल सैमसंग ने नोएडा में अपनी दुनिया की सबसे बड़ी मोबाइल फैक्ट्री का उद्घाटन किया था। सैमसंग नोएडा स्थित प्लांट की क्षमता को दोगुना करने का ऐलान भी कर चुका है और इसपर काम भी कर रहा है. दरअसल, भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स मार्केट में सैमसंग का बड़ा मार्केट शेयर है. भारत में सैमसंग की भारी मांग के कारण ही मार्किट शेयर भी इस कंपनी का बढ़ा है।
हांगकांग के साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, सैमसंग ने जब से चीन में मौजूद अपना अंतिम कारखाना बंद किया, दौड़ता-भागता हुइजू ठहर गया और भूतिया शहर में तब्दील हो गया।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सैमसंग ने दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं (चीन और अमेरिका) के बीच ट्रेड वार की परिस्थितियों को भांपा और बड़े पैमाने पर भारत व वियतनाम में उत्पादन को स्थानांतरित कर दिया और यह वैश्विक आपूर्ति में चीन की बदलती स्थिति को दर्शाता है।
इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2013 में चीन के बाजार में सैमसंग की हिस्सेदारी करीब 15 प्रतिशत थी, जो अब केवल एक फीसदी रह गई है। बता दें कि चीन की हुवावे और श्याओमी जैसी कंपनियां विदेश कंपनियों के आगे नहीं टिक पा रही हैं जिसका फायदा भी भारत को ही हो सकता है। स्मार्टफोन मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों के अलावा ई-कॉमर्स कंपनियां भी चीन में अपना कारोबार समेटने का प्लान कर रही हैं।
बता दें कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी कहा था कि ‘उद्योग जगत के ऐसे दिग्गज जो अपने कारोबार को चीन से बाहर ले जाना चाहते हैं, वे निश्चित रूप से भारत की ओर देख रहे हैं’। उन्होंने आगे कहा था कि ‘मैं ऐसी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों की पहचान करूंगी, सभी अमेरिकी कंपनियों या किसी अन्य यूरोपीय देश की कंपनी या ब्रिटिश कंपनी जो चीन से निकलना चाहती है, मैं उनसे संपर्क करूंगी और भारत को निवेश के तरजीही गंतव्य के रूप में पेश करूंगी।’ उन्होंने अपने ये भी कहा कि वियतनाम उतना आकर्षक नहीं है। उन्होंने कहा कि ‘मेरी आज कुछ बैंकों और सरकार के प्रतिनिधियों के साथ भी बात हुई। उनका मानना है कि अब वियतनाम का संकुचन हो रहा है। उसके पास विस्तार के निवेश कार्यक्रमों के लिए श्रमबल की कमी है।’ बता दें कि विदेशी कंपनियों को लुभाने के लिए भारत सरकार पहले ही कॉर्पोरेट टैक्स में बड़ी कमी कर चुकी है। मोदी सरकार का यह कदम स्वागत ले योग्य है कि सरकार ने पहले ही सही दिशा में सोचना शुरू कर दिया था।