हाल ही में कर्नाटका विधानसभा के उपचुनावों के नतीजों में बीजेपी ने विपक्ष को तहस नहस करते हुए 15 में से 12 सीटों पर भारी जीत दर्ज की है। इन उपचुनावों में सबसे अधिक गहरा झटका अगर किसी पार्टी को लगा है तो वह है जनता दल सेक्युलर पार्टी यानि जेडीएस। बीजेपी ने जेडीएस द्वारा पिछले चुनाव में जीती गयीं सीटों पर क्लीन स्वीप किया है। इस जबरदस्त हार के बाद जेडीएस पार्टी के अस्तित्व पर भी खतरा मंडराने लगा है, क्योंकि भाजपा ने मांड्या और चिक्काबल्लापुरा के वोक्कालिगा जैसे जेडीएस की गढ़ मानी जाने वाली जिलों में अपनी धाक बना ली है। यही नहीं जेडीएस को पुराने मैसूर क्षेत्र में भी खाली हाथ ही रहना पड़ा जिसे जेडीएस का एक गढ़ माना जाता था।
अगर देखा जाए तो जेडीएस ने स्वयं अपने लिए एक गहरा गड्ढा खोदा और उसमें जानबूझ कर गिरा और खुद ही उसपर मिट्टी डालने का काम भी किया। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि आज जेडीएस के अस्तित्व पर जो संकट आया है उसके लिए खुद जेडीएस के हाई कमान ही जिम्मेदार हैं। वर्ष 2018 के कर्नाटका के विधानसभा चुनाव के बाद जेडीएस ने मुख्यमंत्री पद के लिए कांग्रेस से हाथ मिला लिया जब कि स्पष्ट तौर पर सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी थी और जनाधार बीजेपी के पक्ष में था। कर्नाटका के लोगों ने स्पष्ट तौर से सिद्धारमैया की सरकार के खिलाफ वोट किया था लेकिन फिर भी कांग्रेस और जेडीएस ने वैचारिक रूप से धूर-विरोधी होने के बावजूद मिल कर बेमेल गठबंधन की सरकार बनाई थी। हालांकि, ये सरकार कुछ महीनों बाद ही गिर गयी।
उस समय विधानसभा चुनाव से पहले यह कयास लगाए जा रहे थे कि जेडीएस बीजेपी के साथ गठबंधन करेगी जैसे उसने वर्ष 2006 में किया था, क्योंकि चुनाव से पहले कांग्रेस और जेडीएस के बीच तनाव अपने चरम पर था। राहुल गांधी ने तो जेडीएस को BJP की B-team तक कह दिया था। कांग्रेस के खिलाफ राज्य में सत्ता विरोधी लहर का फायदा भाजपा के साथ-साथ वहां कि क्षेत्रीय पार्टी जेडीएस को भी मिला। राज्य की 224 विधानसभा सीटों में से भाजपा ने104, कांग्रेस ने 78, जेडीएस ने 37 जीतीं थीं। अगर जेडीएस बीजेपी के साथ आ जाती तो उसे उप मुख्यमंत्री का पद अवश्य मिल जाता और साथ ही कुमारस्वामी का रुदन भी किसी हैडलाइन में पढने को शायद नहीं मिलता। इसके साथ ही इस गठबंधन से जेडीएस को भी बिहार के JDU और महाराष्ट्र के शिवसेना जैसी लोकप्रियता तो मिल ही जाती। इसका फायदा इस पार्टी को 2019 के लोकसभा चुनावों में भी मिलता।
परन्तु जेडीएस ने मुख्यमंत्री पद के लालच में आकर कांग्रेस के साथ हाथ मिला कर अपने लिए कब्र खोदना आरंभ कर दिया। कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने से सबसे पहले जेडीएस ने अपने समर्थक वोक्कालिगा समुदाए को नाराज किया। बता दें कि लिंगायत समुदाय के बाद वोक्कालिगा कर्नाटक का दूसरा सबसे बड़ा समुदाय है जो इनके राजनीतिक महत्व को दर्शाता है। वोक्कालिगा समुदाय मुख्य रूप से कृषि प्रधान समुदाय है जो सिद्धारमैया के शासन के तहत लोकवादी और भयावह नीतियों का शिकार हुआ है। सिद्धारमैया की विनाशकारी आर्थिक नीतियां राज्य भर में खासकर पुराने मैसूर क्षेत्र में कृषि संकट का कारण बन गयीं थीं। इस क्षेत्र में गंभीर सूखे ने वोक्कालिगा समुदाय की मुश्किलों को और बढ़ा दिया था। बेंगलुरु में तो किसानों को मजबूरन अपनी आजीविका चलाने के लिए कैब ड्राइवर और बार वेटर्स के रूप में काम करना पड़ा। वोक्कालिगा समुदाय के 20-35 वर्ष के युवा सिद्धारमैया सरकार की नीतियों से नाराज थे।
इसके अलावा, एक रिपोर्ट के अनुसार, ये बाद में प्रकाश में आया था कि सिद्धारमैया ने वोक्कालिगा को अलग कर उनके साथ भेदभाव किया था। राज्य के वरिष्ठ वोक्कालिगा अधिकारियों को चुनाव के दौरान महत्वहीन पदों पर नियुक्त कर दिया जिसने पूरे समुदाय में नाराजगी और क्रोध को बढ़ा दिया था। यही नहीं
वोक्कालिगा समुदाए को कांग्रेस सरकार के टीपू सुल्तान की जयंती मनाने से भी नाराजगी थी। कोडवा समुदाय तो पहले से ही नाराज था। इन्हीं सभी वजहों से वोक्कालिगा समुदाए को यह उम्मीद थी कि कुमारस्वामी BJP के साथ गठबंधन कर सिद्धारमैया की कांग्रेस सरकार को उखाड़ फेकेंगे। परंतु एचडी कुमारस्वामी ने अपने ही लोगों को धोखा देते हुए कांग्रेस से हाथ मिला लिया और वोक्कालिगा समुदाए को बस एक वोट बैंक बना कर मुख्यमंत्री पद के लिए उनके पीठ में छुरा घोप दिया। उस दौरान वोक्कालिगा समुदाए ने जेडीएस के अलवा BJP को भी वोट दिया था जो कि स्पष्ट तौर पर कांग्रेस के विरोध में था। अपने साथ हुए धोखे का बदला वोक्कालिगा समुदाए ने इस कर्नाटक विधानसभा उपचुनाव में ले लिया है क्योंकि जेडीएस के हाथ कुछ नहीं लगा है।
इस उपचुनाव के नतीजों से यह स्पष्ट पता चलता है कि जेडीएस ने किस तरह अपने ही हाथों अपने राजनीतिक भविष्य का गला घोंट दिया। किसी भी क्षेत्रीय पार्टी के लिए अपने मतदाता आधार को खोना सबसे बड़ी गलती होती है जिसके बाद उसके अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगता है। यही हाल जेडीएस का हुआ है। उसने पहले तो कांग्रेस के साथ हाथ मिला कर अपने लिए गड्ढा खोदा और फिर खुद ही मिट्टी डालने का काम किया जिस कारण आज वो राज्य में एक अप्रासंगिक पार्टी बनकर रह गयी है।