श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षा 28 नवंबर को भारत दौरे पर आए थे, जिससे हमारे पड़ोसी चीन को सबसे ज़्यादा पीड़ा पहुंची है। इसका अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि उनके भारत दौरे से ठीक पहले चीन के सरकारी अखबार और चीन का मुखपत्र कहे जाने वाले ग्लोबल टाइम्स ने भारत को चीन से कूटनीति सीखने की सलाह दी। ग्लोबल टाइम्स ने 28 नवम्बर को एक लेख लिखा जिसमें उसने दावा किया कि पूरी दुनिया सच्चाई को मानकर आगे बढ़ रही है जबकि भारत पीछे ही जाता जा रहा है। ग्लोबल टाइम्स ने लिखा कि भारत को अपने पड़ोसियों के साथ ठीक से बर्ताव नहीं करना आता है, और इसीलिए वह हर पैमाने पर चीन से पिछड़ता जा रहा है। जबकि सच्चाई यह है कि चीन की कूटनीति के लिए अगर सही शब्द इस्तेमाल किया जाये, तो वह होगा गुंडागर्दी। वह इसलिए क्योंकि चीन पहले तो छोटे-छोटे देशों को बड़े-बड़े ऋण देकर उनपर अपना प्रभाव जमाता है और बाद में उसे अपने कूटनीति की सफलता बताता है।
हालांकि, ग्लोबल टाइम्स के इस लेख के छपने के महज़ 24 घंटों के अंदर ही भारत ने यह एक बार फिर स्पष्ट कर दिया कि कूटनीति के मामले में अब भी भारत का कोई जवाब नहीं है और चीन जिसे कूटनीति की सफलता बताता है, वह असल में चीन की आर्थिक गुंडागर्दी होती है। दरअसल, श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षा जब भारत दौरे पर आए, तो भारत ने राजनीतिक और आर्थिक कूटनीति के दम पर गोटाबाया को चीन की पकड़ से छीन कर बिलकुल अपने पाले में ही कर लिया।
दरअसल, एक बड़ा दांव चलते हुए भारत ने श्रीलंका को 450 मिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता प्रदान करने की घोषणा की, जिसमें से भारत 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर के श्रीलंका को लाइन ऑफ क्रेडिट जारी करेगा, वहीं आतंक से लड़ने के लिए श्रीलंका को 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर अतिरिक्त आर्थिक सहायता दी जाएगी। इसके अलावा भारत ने श्रीलंका को आर्थिक सहायता देने के साथ-साथ श्रीलंका में तमिल समुदाय के लिए India Housing Project के तहत घर बनाने का भी आश्वासन दिया है। भारत सरकार द्वारा शुरू किए गए इस हाउसिंग प्रोजेक्ट के तहत अब तक 46 हजार घर बनाए गए हैं। इसके साथ ही तमिल मूल के लोगों के लिए अतिरिक्त 14 हजार घर बनाए जा रहे हैं।
इसके अलावा भारत ने सोलर प्रोजेक्ट के लिए 100 मिलियन डॉलर का ऋण देने का भी फैसला लिया है। दूसरी तरफ गोटाबाया ने भी पीएम मोदी के साथ खड़े होकर ऐसे ऐसे बयान दिये जिसने हजारों किलोमीटर दूर मौजूद चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग की पीड़ा को बढ़ा दिया होगा। इस दौरान राजपक्षा ने भारत को एक बार फिर सुनिश्चित किया कि भारत और श्रीलंका के रिश्तों पर किसी तीसरे देश का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा। श्रीलंका के राष्ट्रपति ने साथ ही श्रीलंका के कब्जे में मौजूद सभी भारतीय नावों को वापस भारत को सौंपने की दिशा में कदम उठाने का ऐलान किया।
हम ग्लोबल टाइम्स को बताना चाहेंगे कि चीन की तरह ना तो भारत को किसी दूसरे देश की ज़मीन हथियाने का शौक है, और ना ही भारत अपनी आर्थिक ताकत का इस्तेमाल कर दूसरे देशों पर अनैतिक दबाव बनाता है। भारत दूसरे देशों की संप्रभुता का सम्मान करते हुए उसकी पूरी मदद करने की कोशिश करता है। इसलिए यूएन पीस मिशन के तहत दूसरे देशों में तैनात जवानों में भारतीय जवानों की संख्या सबसे ज़्यादा है। इसी के साथ भारत अफ़ग़ानिस्तान, मालदीव और श्रीलंका में भी विकास कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहा है। अपनी इसी कूटनीति के तहत अब भारत ने श्रीलंका को भी अपने पाले में कर लिया है। भारत की कूटनीति को चीन के प्रमाण की कोई आवश्यकता नहीं है और श्रीलंका के साथ भारत की कूटनीति से यह स्पष्ट हो गया है कि भारत ने श्रीलंका के मैदान में चीन को पटखनी दे दी है।