कैबिनेट विस्तार होते ही तगड़ा Drama चालू- महाराष्ट्र का मंत्रिमंडल बंटवारा Karnataka 2.0 को निमंत्रण है

सुना है महान कवि संजय राऊत भी पार्टी से नाराज़ चल रहे हैं..

महाराष्ट्र में NCP, कांग्रेस और शिवसेना के गठबंधन की सरकार ने 32 दिनों के बाद कल यानि सोमवार को अपनी कैबिनेट का विस्तार कर ही दिया, लेकिन इसके बाद ठीक वही हुआ जिसकी उम्मीद थी। मंत्री पद के बंटवारे से अब तीनों पार्टियों में फूट पड़ती नज़र आ रही है। दरअसल, एक तरफ जहां कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण कोई बड़ा मंत्री पद ना मिलने से नाराज़ बताये जा रहे हैं, तो वहीं शिवसेना के बड़बोले मंत्री संजय राउत को भी अब अपनी ही पार्टी से नाराजगी है। कारण यह है कि उनके भाई को मंत्रिमंडल में कोई जगह नहीं मिली। इसके अलावा इन तीनों पार्टियों के बीच होर्डिंग लगाने को लेकर भी तनाव हो गया है। दरअसल, शिवसेना ने पुणे में कुछ होर्डिंग्स लगाए, जिनके माध्यम से शिवसेना ने ‘फार्म लोन वेवर’ का श्रेय लेने की कोशिश की। शिवसेना के इस पोस्टर में कहीं भी कांग्रेस और एनसीपी का ज़िक्र नहीं था, जिसने कांग्रेस को दुविधा में डाल दिया।

पहले बात करते हैं मंत्रिमंडल विस्तार पर छिड़े घमासान की। मंत्रिमंडल में कांग्रेस के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों अशोक चव्हाण और पृथ्वीराज चव्हाण के शामिल होने की अटकलें थीं, लेकिन सिर्फ अशोक चव्हाण ने ही शपथ ली, और आख़िरी समय में पृथ्वीराज चव्हाण का नाम सूची से हटा दिया गया, जिसको लेकर वे ख़ासे नाराज़ बताए जा रहे हैं। इसके अलावा मंत्रिमंडल विस्तार से नाराज होने वालों में स्वाभिमानी शेतकारी पार्टी के नेता राजू शेट्टी भी कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिलने से नाराज़ हैं। राजू शेट्टी पहले बीजेपी के साथ थे और हाल ही में उन्होंने शिव सेना-एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन का हाथ थामा था। स्पष्ट है कि मंत्रिमंडल के बंटवारे से अब तीनों पार्टियों में घमासान मचने के पूरे आसार बन गए हैं।

बता दें कि महाराष्ट्र मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर कांग्रेस के एक बड़े खेमे में नाराजगी का माहौल है। कुछ नाराज़ विधायकों ने मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात करके अपनी नाराजगी जताई। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ नेताओं ने केंद्रीय नेतृत्व को गुमराह किया। नाराज खेमे में पृथ्वीराज चव्हाण, नसीम खान, प्रणीति शिंदे, संग्राम थोपते, अमीन पटले, रोहितदास पाटिल जैसे कुछ नेता हैं। उनका कहना है कि कुछ नेताओं ने केंद्रीय नेतृत्व को गुमराह किया।

सत्ता के लिए जोड़तोड़ करने वाले कुछ विधायकों को ही कैबिनेट में जगह मिली है। जो वफादार कांग्रेस के विधायक हैं, उन्हें दरकिनार कर दिया गया है। इसी तरह सोमवार को हुए कैबिनेट विस्तार में एनसीपी के चार बार के विधायक प्रकाश सोलंके को जगह नहीं मिल सकी, जिसके बाद सोलंके ने विधायकी इस्तीफा देने के साथ-साथ राजनीति से भी संन्यास लेने का ऐलान कर दिया।

इसके अलावा दूसरी तरफ महाराष्ट्र में सरकार द्वारा कृषि ऋण माफी को लेकर लगाई गईं, होर्डिंगों में सिर्फ शिवसेना के नेताओं की तस्वीर होने पर NCP और कांग्रेस ने नाखुशी जताई। दोनों दलों का कहना है कि यह गठबंधन का साझा फैसला था, किसी एक पार्टी का नहीं। इन होर्डिंगों पर मुख्यमंत्री और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे तथा उनके पिता बाल ठाकरे की तस्वीर लगी थी।

शिवसेना के इस कदम पर NCP के एमएलसी सतीश चव्हाण ने कहा, ‘‘बेहतर होता अगर उन्होंने (होर्डिंग पर) गठबंधन के अन्य वरिष्ठ नेताओं की तस्वीर भी लगाई होती।’’ इसके अलावा कांग्रेस के शहर अध्यक्ष नामदेवराव पवार ने कहा कि यह गठबंधन सरकार का फैसला था और सिर्फ एक पार्टी की होर्डिंग लगाने का कदम उचित नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘कृषि ऋण माफी का फैसला सरकार में शामिल सभी गठबंधन सहयोगियों का था। अगर पोस्टर किसी स्थानीय कार्यकर्ता ने लगाए हैं, तो इसे समझा जा सकता है। लेकिन, अगर इन्हें पार्टी पदाधिकारियों ने लगाया है, तो यह नाखुशी वाली बात है।’’

जो नेता भी पार्टी ने नाराज़ चल रहे हैं, उनमें कई बड़े नेता भी शामिल हैं और अब वे नाराज़ होकर चुप तो बिलकुल नहीं बैठेंगे, जिसकी वजह से हमें महाराष्ट्र में भी कर्नाटका 2.0 देखने को मिल सकता है। कर्नाटका में जेडीएस और कांग्रेस के गठबंधन में फ़ूट भी मंत्रिमंडल बंटवारे के बाद ही पड़ी थी। तब कर्नाटक में कुमारस्वामी सरकार के मंत्रालय के गठन में देरी हो रही थी, क्योंकि गठबंधन सहयोगी इसमें बाधा पहुंचा रहे थे। सभी अपना मनपसंद पोर्टफोलिया चाहते थे, जिसे लेकर दोनों ही पार्टियों में पोर्टफोलिया के आंवटन को लेकर खींचतान जारी थी। खासकर वित्त मंत्रालय इस विवाद का जड़ बन गया था।

जहां कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व जेडीएस को वित्त मंत्रालय देने के लिए तैयार था, तो वहीं कांग्रेस का राज्य नेतृत्व इस फैसले से खुश नहीं था, वो महत्वपूर्ण मंत्रालयों को अपने पास रखना चाहते थे। इस लंबी खींचतान का नतीजा यह निकला कि सरकार बनने के 11 महीनो बाद ही कर्नाटका में सरकार गिर गयी। अब महाराष्ट्र में भी यही रिपिट होता दिखाई दे रहा है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि तीनों पार्टियां इससे खींचतान से निकल पाने में सफल होती हैं या नहीं।

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