अफ्रीका के घने जंगलो में सर्वत्र शांति थी। हिंसा और भय का वातावरण नहीं था। कोई अकारण किसी से लड़ता नहीं था, कोई किसी का भोजन नहीं हड़पता था। सिंह राजा मुफ़ासा न्यायप्रिय और दयालु था और साथ ही साथ विधि व्यवस्था के प्रति प्रतिबद्ध। इस कारण लालची और स्वभावतः चोर और दुष्ट लकड़बग्घे वन साम्राज्य की ओर फटकते भी नहीं थे। मुफ़ासा का एक भाई था जिसका नाम था स्कार। स्कार निर्बल और कायर था, उसमें एक भी गुण मुफ़ासा के नहीं थे।
परंतु स्कार था बड़ा ही ईर्ष्यालु और चालाक। उसकी मित्रता वन साम्राज्य से निष्कासित लकड़बग्घों से थी परंतु वह इसका पता मुफ़ासा को नहीं चलने देता था। स्कार बस दिन भर मुफ़ासा को मार कर राज्य हड़पने की युक्ति भिड़ाने में लगा रहता था। परंतु सीधे द्वंद में मुफ़ासा को पराजित करना सकार के बस की बात नहीं थी।
तदनंतर, एक दिन वनसाम्राज्य एक महान प्रसन्नता के समाचार के साथ उठा। सिंह राजा मुफ़ासा की पत्नी रानी सराबी ने एक सिंह शिशु को जन्म दिया था जो शैशव से ही बलिष्ठ प्रतीत हो रहा था, उसका नाम रखा गया सिंबा। स्कार के मन में मानो एक फांस सी उठी, उसकी मुफ़ासा और उसके पुत्र को मारने की इच्छा और प्रबल हो उठी। एक दिन दुर्भाग्य ने मानो वन साम्राज्य को आ घेरा। सिंबा जंगली भैंसो के झुंड में जा गिरा, मुफ़ासा ने उसे वहाँ से निकाल लिया पर दुर्गम पहाड़ी पर चढ़ते हुए उसके पैर लड़खड़ा रहे थे। ऐसे में स्कार वहाँ आ पहुंचा और उसने अपने भाई को पहाड़ी से धक्का दे दिया।
मुफ़ासा सीधे भैंसो के झुंड के बीच में गिरा और देखते ही देखते उनके पैरों के नीच रौंदा गया। मुफ़ासा मर चुका था, वनसाम्राज्य राजा-विहीन हो चुका था। और सिंबा अनाथ हो चुका था। स्कार ने सिंबा के मन में आत्मग्लानि भर दिया और उसे राज्य छोड़ कर जाने को कहा। नन्हा सिंबा मुह लटकाकर दूर चला गया जहां उसकी मित्रता अन्य पशुओं से हुई। वहीं स्कार अपने लकड़बग्घे मित्रो और मंत्रियों के साथ मुफ़ासा का राज्य हड़प लेता है। जिस राज्य में सर्वत्र शांति थी, हिंसा और भय का वातावरण नहीं था जहां कोई अकारण किसी से लड़ता नहीं था, कोई किसी का भोजन नहीं हड़पता था, वहीं वन प्रदेश एक खंडहर सा बन जाता है, अधिकतर पशु वहाँ से पलायन कर देते हैं, परंतु स्कार और उसके लकड़बग्घे मित्रों को ना भोजन की कमी थी ना आराम की।
कालांतर में सिंबा भी एक बलिष्ठ सिंह बनता है जिसे उसकी एक पुरानी मित्र उसकी शक्ति का आभास दिलाती है। वह पुनः अपने घर लौटता है और स्कार को ललकारता है। अपने पिता की तरह ही डील डौल वाले सिंबा को देख कर स्कार की घिग्गी बंध जाती है। और वह क्षमा याचना करने लगता है। बाद में वह सारा आरोप लकड़बग्घों के सर मढ़ देता है। लकड़बग्घे क्रुद्ध हो उठते हैं। सिंबा स्कार को क्षमा कर के लौटने लगता है पर स्कार पीछे से वार करता है, पर सिंबा के एक पंजे से वह नीचे गिर जाता है। और इसके बाद लकड़बग्घे उसपर आक्रमण कर देते हैं और कुछ ही क्षणों में स्कार दम तोड़ देता है।
ये फिल्म द लायन किंग की कहानी है लेकिन कुछ ऐसा ही हाल महाराष्ट्र की राजनीति का भी है। महाराष्ट्र एक सम्पन्न राज्य है जहां के सिंह राजा मुफ़ासा थे पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस, उनके साथ साथ चलने वाले परंतु उनसे ईर्ष्या करने वाले शिव सेना अध्यक्ष और वर्तमान मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे स्कार के रोल में बिलकुल सटीक बैठते हैं। और उनके लकड़बग्घे मित्र हैं उनके महाविकासघाडी के सहोगी दल एनसीपी और काँग्रेस।
यहाँ सिंबा के रोल में जनता है जिसे विवश कर के बाहर निकाल दिया गया, बस एक अंतर यह है की मुफ़ासा गिर कर घायल तो अवश्य हुआ है, मरा नहीं है। सिंबा का समर्थन और सहयोग मुफ़ासा के साथ है और मुफ़ासा पुनः अपने राज्य को जीतने अवश्य जाएगा। ऐसे में स्कार बने ठाकरे अपने कार्यकाल में हुई हर गलती का ठीकरा लकदबग्घों यानि की एनसीपी और काँग्रेस के सर फोड़ेंगे। मुफ़ासा पुनः राजा बनेगा और लकड़बग्घे स्कार का वही हाल करेंगे जो उन्होने फिल्म में किया था।