सोमवार को नागरिकता संशोधन बिल यानि Citizenship Amendment Bill लोक सभा से पारित हुआ। कई दल भाजपा के साथ थे तो कई विरोध में, इसी कारण इस मुद्दे पर लगभग 9 घंटे लंबी बहस चली। इस दौरान 50 से ऊपर सदस्यों ने बहस में भाग लिया। भाजपा का साथ देने वालों में JDU यानि जनता दल यूनाइटेड भी थी। यह आश्चर्य की बात थी क्योंकि अभी तक नीतीश कुमार की जेडीयू ट्रिपल तलाक और अनुच्छेद 370 जैसे मुद्दों को लेकर पर भाजपा के निर्णय के खिलाफ थी। परन्तु जेडीयू के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने पार्टी से अलग ही राग अलापा है। उन्होंने पार्टी के स्टांस पर निराशा जताते हुए ट्वीट किया और लिखा, “धर्म के आधार पर नागरिकता के अधिकार में भेदभाव करने वाले बिल का जेडीयू द्वारा समर्थन दिया जाना निराशाजनक हैं। यह पार्टी के संविधान से मेल नहीं खाता जिसमें धर्मनिरपेक्ष शब्द पहले पन्ने पर तीन बार आता है। पार्टी का नेतृत्व गांधी के सिद्धांतों को मानने वाला है”।
Disappointed to see JDU supporting #CAB that discriminates right of citizenship on the basis of religion.
It's incongruous with the party's constitution that carries the word secular thrice on the very first page and the leadership that is supposedly guided by Gandhian ideals.
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) December 9, 2019
गौरतलब है कि नागरिकता संशोधन बिल पर जेडीयू पहले सरकार को समर्थन करने के मूड में नहीं थी, लेकिन रविवार को पार्टी ने अपने फैसले पर यू-टर्न लिया और इस बिल पर सरकार का समर्थन करने का फैसला लिया। इसका मतलब नीतीश को बिहार विधान सभा चुनाव की याद आ गई और वह यह जानते हैं कि उनकी पार्टी भाजपा के बिना विधानसभा चुनाव नहीं जीत सकती है। नीतीश कुमार सत्ता में बने रहने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। अब जब प्रशांत किशोर ने पार्टी से विपरीत लाइन ली है तो अब यह देखना दिलचस्प होगा कि नीतीश प्रशांत किशोर को कब पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाते है। अब हम ऐसा क्यों कह रहे हैं इसके पीछे का कारण भी आपको समझा देते हैं।
दरअसल, भारत के राजनीतिक परिदृश्य को देखे तो यहां 2 तरह की पार्टियां दिखाई देती हैं, पहली कैडर आधारित पार्टी और दूसरी सुप्रीमो आधारित पार्टी जहां सिर्फ सुप्रीमो की चलती है। भारत में 2 ही पार्टीयों को कैडर आधारित पार्टी कहा जा सकता और वो दो पार्टियां है भाजपा और कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया। हालांकि, भारत में CPI का बहुत ही कम जनाधार है और यह भी देश के कुछ ही हिस्सों तक ही सीमित है। इसका मतलब यह हुआ कि भाजपा ही सबसे बड़ी कैडर आधारित पार्टी है।
इन दोनों के अलावा भारत की अधिकतर राजनीतिक पार्टियां सुप्रीमो पर आधारित है। आप चाहे किसी का भी नाम लें, सपा, बसपा, डीएमके जैसे कई उदाहरण हैं, और जो भी सुप्रीमों के खिलाफ जाता है या तो उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया जाता है या उन्हें अप्रासंगिक बना दिया जाता है। जेडीयू यानि कि नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड भी इसी तरह की पार्टी है। यहाँ कर्ता भी नीतीश है धर्ता भी नीतीश ही हैं। इस पार्टी के मुखिया भी नीतीश है और संयोजक भी नीतीश ही है। कहने का मतलब है यहां सर्वेसर्वा नीतीश बाबू ही है। अब जब कोई नीतीश बाबू का विरोध करेगा तो वह भला पार्टी में कैसे टिक सकता है, चाहे वो पार्टी के शीर्ष नेताओं में ही क्यों न आता हो, पार्टी के खिलाफ जाने का परिणाम भुगतना ही पड़ता है। प्रशांत किशोर भले ही मौजूदा समय में पार्टी के उपाध्यक्ष हैं, लेकिन वह सिर्फ नीतीश बाबू द्वारा चुनाव जीतने के लिए प्रयोग किए जाते है। जिस दिन उनकी जरूरत खत्म उस दिन उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने में नीतीश कुमार हिचकेंगे नहीं। प्रशांत किशोर को शरद यादव और जीतन राम मांझी के साथ हुए बर्ताव को भी याद रखना चाहिए।
अब इनके साथ ऐसा क्या हुआ था? दरअसल, एक समय पर शरद यादव जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, लेकिन जेडीयू के एनडीए में शामिल होने का विरोध करते हुए उन्होंने बागी तेवर अपना लिए थे। जिसके बाद नीतीश कुमार ने शरद यादव सहित उनके कई समर्थकों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया था। नीतीश ने शरद यादव की राज्यसभा सदस्यता रद्द करने के लिए राज्यसभा सभापति से आग्रह किया था और पिछले वर्ष 5 दिसंबर को उनकी राज्यसभा की सदस्यता रद्द कर दी गई थी। इसके बाद वह स्वयं ही पार्टी के मुखिया बन गए। यानि स्पष्ट है की सत्ता हासिल करने के बीच में जो भी आएगा वे उसे नहीं छोड़ने वाले है। ऐसे ही सत्ता में बने रहने के लिए नीतीश ने जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री पद पर बैठा दिया था और स्वयं सब काम देखते थे। यह बात जीतन राम मांझी ने भी स्वीकारा था।
नीतीश कुमार की आदत है कि वह अपने तरीके से पार्टी को चलाते है और यह उनके घमंड से स्पष्ट दिखाई भी देता है। ऐसे में प्रशांत किशोर ने सोशल मीडिया में अब खुलकर अपने तेवर दिखाकर अपने लिए नयी मुश्किल जरुर खड़ी करने का काम किया है। ऐसे में अब उनके पास 2 ही रास्ते बचते है। पहला यह कि वह स्वयं ही पार्टी छोड़ दे नहीं तो नीतीश कुमार स्वयं उन्हें हटा देंगे। और दूसरा यह कि वह सार्वजनिक रूप से अपनी गलती मान कर पार्टी की ही लाइन पर बयान दें। अवसरवादी और सत्ता के लिए कोई भी निर्णय लेने से पीछे न हटने वाले नीतीश कुमार को अभी बिहार विधान सभा चुनाव सामने दिखाई दे रहा है। बिहार में भाजपा की बढ़ती साख को भी वो नजरअंदाज नहीं कर सकते ऐसे में वो भाजपा के खिलाफ नहीं जाना चाहते क्योंकि ऐसा करने पर जेडीयू को बड़ा नुकसान हो सकता है। इसी वजह से नागरिकता संशोधन बिल पर भाजपा का समर्थन करना नीतीश कुमार की मजबूरी भी है। स्पष्ट है अब प्रशांत किशोर ने पार्टी लाइन से विपरीत बयान देकर अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने का काम किया है अब उन्हें जल्द ही इसका परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।