जब शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन किया, तो कुछ ही समय बाद जयराम रमेश ने खुलासा करते हुए कहा कि कांग्रेस ने शिवसेना का गठन कम्युनिस्ट पार्टियों से लड़ने के लिए और मुंबई की मराठी पहचान को प्रशस्त करने के लिए किया था। वैसे तो यह बात सभी को ज्ञात थी, पर यह पहली बार हो रहा है जब किसी वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने सरेआम यह बात स्वीकारी हो।
इंडिया टुडे की एक इवेंट में जयराम रमेश ने स्वीकारा कि शिवसेना का गठन कांग्रेस की कृपा से ही हुआ था। “शिवसेना भले ही वैचारिक रूप से हमारे समान न हो, परन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वे एसके पाटिल और वीपी नाईक ही थे, जिनके कारण शिवसेना का गठन संभव हुआ था, और जिसके कारण तत्कालीन बॉम्बे में कम्यूनिस्टों का वर्चस्व समाप्त हो सका था”।
बता दें कि एसके पाटिल कांग्रेस के जाने-माने नेता थे, जिनका वर्चस्व 1960 के दशक में मुंबई कांग्रेस पर हुआ करता था। उन्होंने ही शिवसेना को शहर में यूनियनबाजी पर लगाम लगाने के लिए बढ़ावा दिया। इसी तरह वीपी नाईक, जो 1963 से लेकर 1975 तक राज्य के मुख्यमंत्री थे, शिवसेना के प्रारंभिक समर्थकों में गिने जाते थे। उन्होंने मराठी मानूस का उपयोग कर राज्य में कम्युनिस्ट पार्टी और गुजरातियों के वर्चस्व को हिलाकर रख दिया।
गुजराती उद्योगपति चाहते थे कि महाराष्ट्र की पहचान भी गुजराती हो, जबकि शहर में मराठी बहुसंख्यक थे। ऐसे में शिवसेना ने मराठी मानूस को आवाज़ दी।
इतना ही नहीं, जयराम रमेश ने तो यह भी बताया कि कैसे शिवसेना ने कांग्रेस के लिए अपनी वफादारी सिद्ध की। उन्हीं के अनुसार, “हमें यह बिल्कुल नहीं भूलना चाहिए कि ए आर अंतुले के समर्थन में सर्वप्रथम बालासाहेब ठाकरे खड़े हुए थे। यह बाल ठाकरे ही थे जिन्होंने प्रतिभा पाटिल और प्रणब मुखर्जी को समर्थन दिया था।
सबसे आश्चर्य की बात यह है कि शिवसेना कांग्रेस नेता की इस टिप्पणी पर पूरी तरह से चुप रही है। आम तौर पर अपने मुखपत्र सामना के जरिये शिवसेना किसी भी मुद्दे पर अपने विचारों को प्रकाशित करती है। यह ध्यान देने वाली बात यह है कि शिवसेना एनडीए में रहते हुए भी केंद्र में भाजपा और मोदी सरकार की कड़ी आलोचना करती थी। शिवसेना ने कभी भी किसी भी मुद्दे पर भाजपा को घेरने का मौका नहीं गंवाया है। हालांकि, यह आश्चर्यजनक है कि पार्टी की उत्पत्ति के बारे में जयराम रमेश की टिप्पणियों पर शिवसेना का मुखपत्र सामना मौन है। वहीं सोनिया गांधी के बारे में तारीफों का पुल बांध रहा है।
हाल ही में स्थापित सेना-एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन ने कांग्रेस के सभी मूलभूत सिद्धांतों को अपने कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में आत्मसात किया है, चाहे वह सेक्युलरवाद हो, या फिर स्थानीय युवा हों, या फिर किसानों की कर्ज़ माफी ही क्यों ना हो। सीएमपी की तो पहली लाइन ही है, “गठबंधन के सदस्य संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों का अनुसरण करेंगे”।
इसके आगे लिखा गया है,”राष्ट्रीय महत्व के महत्वपूर्ण मुद्दे के साथ-साथ राज्य के महत्व पर विशेष रूप से , शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस एक साथ विचार-विमर्श करने और एक आम सहमति पर पहुंचने के बाद संयुक्त निर्णय करेंगे।
महा विकास अघाड़ी (कांग्रेस-एनसीपी ने शिवसेना को गठबंधन के नाम से शिव को हटाने और विकास से बदलने के लिए मजबूर किया) सरकार ने स्थानीय युवाओं को 80 फीसदी आरक्षण देने का भी वादा किया। सीएमपी में यह तय किया गया है कि, “स्थानीय युवाओं के लिए नौकरियों में 80 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित करने के लिए एक कानून बनाया जाएगा।”
सीएमपी के माध्यम से, कोई भी आसानी से समझ सकता है कि कांग्रेस और राकांपा की सभी वैचारिक आदेशों का शिवसेना ने पालन किया है, कुल मिलाकर शिवसेना इन दोनों पार्टियों के आगे कठपुतली की तरह हो गई है। शिवसेना को भले ही सीएम की कुर्सी मिली हो, परन्तु उस अपने विचारधारा की बलि देनी पड़ी है।