चरम सीमा पर है शिवसैनिकों की गुंडई: येदियुरप्पा का पुतला फूंका, कन्नड़ फिल्म का प्रदर्शन रोका

शिवसैनिकों ने फिर मचाया उत्पात

शिवसेना

लगता है सत्ता का नशा शिवसेना को कुछ ज़्यादा ही चढ़ गया है। तभी वे आए दिन अपने संस्कारों और आदर्शों की धज्जियां उड़ाते फिरते हैं। अभी कल ही में कोल्हापुर शहर में शिवसैनिकों ने न केवल कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के पुतले जलाए गए, अपितु कन्नड़ भाषा में बनी फिल्मों की स्क्रीनिंग भी रुकवा दी।

शिवसेना के कुछ कार्यकर्ताओं ने केंद्रीय बस स्टैंड पर येदियुरप्पा का पुतला फूंका और अप्सरा टॉकीज में चर्चित कन्नड़ फिल्म ‘अवाने श्रीमननारायण’ का प्रदर्शन भी रोक दिया। उन्होंने बाकी थिएटर संचालकों को भी धमकी दी कि यदि कन्नड़ फिल्में दिखाई, तो परिणाम अच्छा नहीं होगी।

कार्यकर्ताओं ने गांधीनगर इलाके में कुछ दुकानों पर कन्नड़ भाषा में लगे बोर्ड्स को भी काला कर दिया। शिवसेना सांसद धैर्यशील माणे और कांग्रेस के पूर्व विधायक सतेज पाटिल ने विरोध रैली में हिस्सा लिया। केंद्रीय बस स्टैंड पर बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों को तैनात कर दिया गया है। एक पुलिस अफसर के अनुसार एहतियातन रूप से कोल्हापुर से कर्नाटका तक की बस सेवा को निलंबित कर दिया गया है।

सांसद धैर्यशील माणे के अनुसार, “भीमाशंकर पट्टी और कर्नाटक नवनिर्माण सेना ने हमारे मुख्यमंत्री और हमारे राज्य का अपमान किया है। यहाँ लोग केवल उसका विरोध कर रहे हैं”।

परंतु समस्या आखिर किस बात की है? दरअसल महाराष्ट्र और कर्नाटका के बीच की तनातनी आज की नहीं, अपितु दशकों से चल रहा एक शीत युद्ध है। जब महाराष्ट्र का गठन हुआ, तो बेलगावी / बेलगाम जैसे कई जिले मराठी बहुल होने के बावजूद महाराष्ट्र से बाहर कर दिये गए थे, क्योंकि 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम के अंतर्गत इन जिलों को तत्कालीन बॉम्बे स्टेट से निकालकर मैसूर स्टेट में डाला गया था। बेलगांव को महाराष्ट्र में समाहित करने हेतु शिवसेना कई दशकों से मोर्चा संभाले हुई है।

इसी दिशा में महाराष्ट्र एकीकरण समिति (एमईएस) वर्षों से करीब 800 गांवों को महाराष्ट्र में शामिल किए जाने की लड़ाई लड़ रही है। समिति ने हाल ही में उद्धव ठाकरे की मांगों का ज्ञापन सौंपा था। मीडिया के एक तबके में आई रिपोर्ट्स के मुताबिक, कुछ दिन पहले कर्नाटका नवनिर्माण सेना के एक नेता ने कहा था कि एमईएस नेताओं को दोनों राज्यों की सीमा के बीच में गोली मार देनी चाहिए। ठाकरे ने हाल में विधानसभा में आरोप लगाया था कि बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कर्नाटक का पक्ष लिया था और महाराष्ट्र को नजरअंदाज किया था।

परंतु वास्तविकता तो कुछ और ही बताती है। पिछले कुछ दिनों में राज्य में जो हिंसक घटनाएँ हुई है, उससे स्पष्ट होता है कि शिवसेना एक बार फिर से क्षेत्रवादी गुंडई की ओर मुड़ चुकी है। हाल ही में उन्होने महाराष्ट्र के वडाला एक आदमी को न सिर्फ पीटा, बल्कि उसका सिर भी मुंडवाया, सिर्फ इसलिए क्योंकि उस व्यक्ति ने उद्धव ठाकरे के जामिया मिलिया पर पुलिस कार्रवाई की जलियाँवाला बाग से तुलना करने वाली टिप्पणी की फेसबुक पर निंदा की थी। इस घटना से वो जख्म फिर उभर गए थे, जो क्षेत्रवाद के नाम पर शिवसेना और राज ठाकरे द्वारा स्थापित महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना आए दिन उत्तर भारतीयों को दिया करती थी।

महाराष्ट्र में हो रही वर्तमान घटनाओं से यह तो स्पष्ट हो चुका है कि शिवसेना एक अवसरवादी पार्टी से ज़्यादा कुछ नहीं, जिसे आज भी अपनी बात मनवाने के लिए गुंडों पर निर्भर होना पड़ता है। क्षेत्रवादी हिंसा ने महाराष्ट्र में एक बार फिर वापसी की है, और ये महाराष्ट्र के लिए शुभ संकेत नहीं है।

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