लगता है जम्मू कश्मीर ने लद्दाख से काफी सीख ली है। अलगाववादी उत्सवों को अपनी कैलेंडर से हटाने के लद्दाख के निर्णय के कुछ ही दिनों बाद अब खबर आ रही है कि जम्मू कश्मीर ने अपने नए कैलेंडर से अलगाववाद को बढ़ावा देने वाले लोगों से संबन्धित उत्सवों को हटाने का निर्णय लिया है। इसी दिशा में उन्होंने अलगाववादी पार्टी और वर्षों तक कश्मीर पर राज करने वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख शेख मुहम्मद अब्दुल्ला के जन्मदिन को जम्मू कश्मीर के कैलेंडर से हटाने का निर्णय लिया है।
जम्मू कश्मीर प्रशासन ने आगामी वर्ष 2020 के लिए एक नया कैलेंडर जारी किया है। इसमें दो अहम बदलाव हुए हैं। जहां शेख अब्दुल्ला के जन्मदिन यानि 5 दिसंबर को सूची से हटाया गया है, तो वहीं 26 अक्टूबर यानि कश्मीर के भारत में विलय के दिन, जिसे ‘Accession Day’ के तौर पर मनाया जाता है, यथावत रखा गया है।
इस निर्णय पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के कार्यकर्ता काफी बौखलाए हुए हैं और वे इस निर्णय को रद्द करने की मांग पर जुट गए हैं। पार्टी के कार्यवाहक अध्यक्ष देवेंद्र सिंह राणा ने कहा, “छुट्टी रहे या नहीं, परंतु शेख साब के कद को कोई नहीं दबाता। कई बार प्रयास किए गए हैं उन्हें अपमानित करने के लिए परंतु इतिहास उनके लिए बोलेगा। शेर ए कश्मीर [शेख अब्दुल्ला]को क्षेत्रवाद की बेड़ियों में नहीं जकड़ा जा सकता। जब पूरा देश महात्मा गांधी के नेतृत्व में अंग्रेजों से स्वाधीनता के लिए लड़ रहे थे, तो शेख साब कश्मीर के लोकतन्त्र के लिए लड़ रहे थे। वे जम्मू और कश्मीर के दबे कुचले लोगों के लिए लड़ रहे हैं। जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, शेख अब्दुल्ला जम्मू और कश्मीर हैं और जम्मू एवं कश्मीर ही शेख अब्दुल्ला है। उनके कारण ही पंचायती राज सिस्टम सशक्त हुआ और उनके कारण ही भूमि सुधार अधिनियमों को बल मिला”।
परंतु वास्तविकता तो कुछ और ही बताती है। शेख अब्दुल्ला न तो राष्ट्रवादी थे और न ही वे लोकतन्त्र के समर्थक। वे जवाहरलाल नेहरू की भांति केवल सत्ता के लिए लालायित थे, और किसी भी कीमत पर वे सत्ता पाना चाहते थे। जिन शेख अब्दुल्ला को शेर ए कश्मीर के नाम से संबोधित किया जाता है, वे तो पाकिस्तान द्वारा जम्मू कश्मीर पर आक्रमण होते ही इंदौर भाग आए और वे तब तक कश्मीर नहीं पहुंचे, जब तक भारतीय सेना ने स्थिति को नियंत्रण में नहीं कर लिया था। इस बात की पुष्टि एचएल सक्सेना ने अपनी पुस्तक ‘द ट्रैजेडी ऑफ कश्मीर’ में और पूर्व न्यायाधीश एसएन अगरवाल ने ‘हिमालयन ब्लंडर’।
इसी तरह लद्दाख क्षेत्र में भी शेख मोहम्मद अब्दुल्ला की जयंती पर सार्वजनिक अवकाश के रूप में मनाया जाता था। परंतु ये वही शेख अब्दुल्ला हैं जिनका कश्मीर को अलग रखने के लिए भारत के संविधान में अनुच्छेद 370 समिलित करने में सबसे अधिक योगदान था, जिसके कारण लद्दाख को हमेशा अनदेखा ही किया गया।
स्वतन्त्रता के बाद शासन पर पकड़ बनाए रखने के लिए शेख अब्दुल्ला ने कश्मीर में इस्लाम को बढ़ावा दिया और मंदिरों का विध्वंस भी करवाया। इस बात की जानकारी राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड(NSG) के पूर्व डीजी वेद मरवाह ने अपनी पुस्तक “इंडिया इन टरर्मोइल” में भी वर्णन किया है कि शेख अब्दुल्ला के मुख्यमंत्री रहते हुए इस्लाम को शह देने के लिए लगभग हजारों मंदिरों को तोड़वाया था।
इस कट्टरवादिता का ही परिणाम था कि वर्ष 1989 में कश्मीरी पंडितों पर असहनीय हमले हुए और घाटी से हिंदुओं का नामों निशान मिटाने की कोशिश की गयी थी। ये वही शेख अब्दुल्ला, जिनके कारण पहले जम्मू कश्मीर राज्य में प्रवेश हेतु किसी पासपोर्ट की भांति परमिट कार्ड की आवश्यकता पड़ती थी, और जिसके विरोध में राष्ट्रवादी नेता डॉ॰ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को अपने प्राणों की आहुति भी देनी पड़ी थी।
अगस्त में जब जम्मू एवं कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया था, तब कश्मीरी नेता सज्जाद लोन ने खुलासा किया था कि कैसे कोई स्थायी नौकरी न होने के बाद भी अब्दुल्ला परिवार की तीन पीढ़ियाँ धनाढ्य बन चुकी थी। सज्जाद के अनुसार अब्दुल्ला परिवार ने कश्मीर पर राजाओं की तरह राज किया था और आम जनता को लूटकर उन्होने अपने आप को समृद्ध बनाया था –
Only 2-3 families in Kashmir amassed all the wealth… Even politicians in Kashmir are asking how?! #Article370 pic.twitter.com/UmgUPFvC7L
— Amit Malviya (मोदी का परिवार) (@amitmalviya) August 8, 2019
एक रिपोर्ट की माने तो फारुक अब्दुल्ला की मौजूदा संपति 23 करोड़ हो चुकी है यानि पिछले 5 वर्ष में फारुक की संपत्ति 10 करोड़ बढ़ी है। बता दें कि बीसीसीआई ने 2002 से 2011 के बीच राज्य में क्रिकेट सुविधाओं के विकास के लिए 112 करोड़ रुपये दिये थे। फारुख अब्दुल्ला के जम्मू कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष रहते हुए ही राज्य क्रिकेट संघ में 43 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ था। जब यह घोटाला सामने आया तो इस मामले में सीबीआई ने फारुक अब्दुल्ला के खिलाफ षड्यंत्र और विश्वास के आपराधिक उल्लंघन के आरोप लगाते हुए अदालत में चार्जशीट दायर की थी। यही नहीं प्रवर्तन निदेशालय इस मामले में फारूक अब्दुल्ला से 6 घंटे तक पूछताछ भी कर चुकी है।
अब जब से अनुच्छेद 370 हटा है, तब से गांधी परिवार के साथ साथ अब्दुल्ला परिवार को भी उनकी औकात दिखाई गयी है। कभी कश्मीर को सत्ता में बने रहने हेतु हिंसा की आग में झोंकने वाले अब्दुल्ला परिवार का प्रभुत्व अब जम्मू कश्मीर पर से हटता जा रहा है, और शेख अब्दुल्ला के जन्मदिन के वर्षगांठ को सार्वजनिक अवकाशों की सूची से हटाना इसी दिशा में एक सकारात्मक कदम है।