दो मुस्लिम नक्सलियों के लिए आपस में भिड़े येचुरी-करात और केरल सरकार, विजयन सरकार गिर सकती है

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कुछ महीने पहले गृहमंत्री अमित शाह ने व्यक्तिगत आतंकवाद और अर्बन नक्सलियों पर लगाम लगाने के लिए यूएपीए बिल [Unlawful Activities Prevention Act] को संसद से पारित करवाया था। इस बिल का कानून बनते ही इसका व्यापक असर दिखना शुरू हो चुका है। हाल ही में यूएपीए के अंतर्गत केरल में कुछ सीपीआई [एम] के कार्यकर्ताओं को माओवादी उग्रवाद को बढ़ावा देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। 1 नवम्बर 2019 को एलन सुहैब और थाहा फज़ल को माओवाद का समर्थन करने वाले पर्चे रखने और बांटने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था। दोनों को पंथीरनकवु जिले से हिरासत में ले लिया गया था। उन पर सेक्शन-20 (एक आतंकवादी गिरोह या संगठन का सदस्य होने की सज़ा), 38 (आतंकवादी संगठन की सदस्यता से संबंधित अपराध) और 39 (ग़ैर-क़ानूनी गतिविधियों के लिए आतंकवादी संगठन को समर्थन देने से संबंधित अपराध) के तहत मामला दर्ज किया गया था।

पुलिस ने यह भी बताया कि सुहैब और फ़ज़ल की तलाशी के दौरान उन्होंने माओवादी विचारधारा को बढ़ावा देने वाले पर्चे बरामद किए। इन दोनों की गिरफ़्तारी यूएपीए के संशोधित कानून के तहत हुई है, जिसमें बदलाव कर मोदी सरकार ने संगठनों के साथ-साथ व्यक्तियों को भी आतंकवादी घोषित किए जाने के प्रावधान जोड़े हैं। केरल के विपक्षी दलों ने इस कार्रवाई का पुरजोर विरोध किया।

परंतु अपनी पार्टी लाइन से अलग चलते हुए केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने न केवल इस गिरफ्तारी का समर्थन किया, बल्कि उक्त माओवादी कार्यकर्ताओं को पार्टी का सदस्य मानने से ही इंकार कर दिया। पिनराई विजयन के अनुसार, “किन पार्टी कार्यकर्ताओं की बात कर रहे हो आप? वे माकपा के कार्यकर्ता नहीं हैं, बल्कि माओवादी हैं। इस बात की जांच हुई है और यह बात सत्य सिद्ध हुई है कि वे माकपा कार्यकर्ता नहीं हैं।‘’

परंतु पिनराई विजयन के इतना कहते ही सीपीआई [एम] में मानो भूचाल सा आ गया। राज्य स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक सीपीआई [एम] ने सीएम विजयन को आड़े हाथों लिया और उन माओवादी आरोपियों पर से तत्काल यूएपीए कानून हटाने का आग्रह किया है।

पी विजयन के रुख का विरोध करने वालों में प्रमुख रूप से सीपीआई [एम] के जनरल सेक्रेटरी सीताराम येचुरी, पॉलिटकल ब्यूरो सदस्य प्रकाश करात, एमए बेबी और राज्य सीपीआई सेक्रेटरी कणम राजेन्द्रन भी शामिल थे। उधर पी विजयन ने भी स्पष्ट कर दिया है कि वे अपनी ओर से यूएपीए नहीं हटा सकते।

परंतु ये समीकरण महज संयोग नहीं है। आधिकारिक रूप से कम्युनिस्ट विचारधारा में पार्टी और सरकार को एक माना जाता है। मतलब जो पार्टी की राय होगी, वही सरकार की भी राय होगी। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हमें चीन में देखने को मिलता है, जहां की कम्युनिस्ट पार्टी के हाथों में ही सत्ता की डोर है। परंतु केरल में मामला इसके ठीक उलट दिख रहा है, और ऐसा प्रतीत होता है मानो पार्टी अब इस मुद्दे पर दो फाड़ हो गयी है।

हालांकि पी विजयन के इस नए रुख के पीछे एक ठोस कारण भी है। 2019 के लोकसभा चुनाव में केरल में सत्ताधारी सीपीआई [एम] को करारी हार मिली थी, और कुल 20 सीटों में से केवल एक सीट पर जीत दर्ज कर पाई थी। इसके पीछे कई कारण थे, जिनमें प्रमुख थे 2018 के बाढ़ में उनका लचर प्रशासन, और सबरीमाला मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के पुराने निर्णय को लागू करने के लिए उनका दमनकारी अप्रोच। ऐसे में पी विजयन फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं। इसी दिशा में उनकी सरकार ने पहले सबरीमाला मंदिर में जाने वाली महिला कार्यकर्ताओं को सुरक्षा देने से मना कर दिया, और उसके बाद उन्होंने अभी यूएपीए कानून के अंतर्गत पकड़े गए कार्यकर्ताओं को पार्टी का सदस्य मानने से ही मना कर दिया।

सच कहें तो पी विजयन को कम्युनिस्ट पार्टी की आखिरी गढ़ यानि केरल के खोने का भी डर सता रहा है। इसीलिए वे हर हालत में अपनी कुर्सी बचाने के लिए पार्टी के हाईकमान से भी बैर मोल लेने को तैयार हैं। अब देखना यह होगा कि पार्टी के प्रत्यक्ष समर्थन के बिना पी विजयन किस तरह सत्ता में बने रहते हैं।

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