सत्ता मिलते ही कई लोगों को रंग बदलते आपने देखा होगा, पर महाराष्ट्र की सत्ता पाने पर उद्धव ठाकरे और उनके नेतृत्व में शिवसेना ने जिस तरह रंग बदला है, उसका कोई जवाब नहीं। कभी आतंकवादियों और नक्सलियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई न करने पर भाजपा को जी भरके कोसने वाली शिवसेना आज न केवल एनसीपी के इशारों पर अर्बन नक्सलियों से जेल से बाहर निकालने की बात कर रही है, अपितु आतंकी समर्थक और भारत-विरोधी तत्वों को अपने सरकार में शामिल भी कर रहे हैं। हाल ही में उद्धव सरकार के मंत्रिमंडल ने शपथ ली है, जिसमें कांग्रेस और एनसीपी ने शिवसेना से ज़्यादा मंत्रालय झटके। पर समस्या ये नहीं है, समस्या है शिवसेना के नेतृत्व वाली सरकार के कैबिनेट में दो ऐसे व्यक्ति का होना जिन्हें शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे तो जीते जी कभी सत्ता में नहीं आने देते, पार्टी से संबंध रखना तो बहुत दूर की बात। पहले नेता हैं कांग्रेस से शिवसेना में आए अब्दुल सत्तार, और दूसरे हैं अब्दुल शेख।
हाल ही में उद्धव सरकार के मंत्रिमंडल ने शपथ ली है, जिसमें कांग्रेस और एनसीपी ने शिवसेना से ज़्यादा मंत्रालय झटके। पर समस्या ये नहीं है, समस्या है शिवसेना के नेतृत्व वाली सरकार के कैबिनेट में दो ऐसे व्यक्ति का होना जिन्हें शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे तो जीते जी कभी सत्ता में नहीं आने देते, पार्टी से संबंध रखना तो बहुत दूर की बात। पहले नेता हैं कांग्रेस से शिवसेना में आए अब्दुल सत्तार, और दूसरे हैं असलम शेख।
परंतु दोनों का उद्धव सरकार में शामिल होना विवाद का विषय क्यों है? इसके लिए हमें इनके बैकग्राउंड पर थोड़ा प्रकाश डालना होगा। कांग्रेस से हाल ही में शिवसेना में शामिल हुए नेता अब्दुल सत्तार ने शिवसेना के वर्तमान नेतृत्व की हिपोक्रिसी को सबके समक्ष उजागर किया है। किसी समय यही शिवसेना अब्दुल सत्तार को दाऊद इब्राहिम से संबंध रखने के लिए जी भर कर कोसती थी, और अपने मुखपत्र सामना में उसे आड़े हाथों भी लेती थी।
1994 में सामना में एक लेख प्रकाशित किया गया था, जिसका शीर्षक था ‘शाइख सत्तार्चे दाऊद गंगशी निकटचे संबंध’, जिसमें इस पार्टी ने आरोप लगाया था कि अब्दुल सत्तार के दाऊद गैंग से काफी घनिष्ठ संबंध हैं। परंतु अब जब अब्दुल सत्तार को महाराष्ट्र की खिचड़ी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया है, तो उनकी इसी हिपोक्रिसी को एक्स्पोज करते हुए सोशल मीडिया पर उनके पुराने आर्टिक्ल के इमेज भी वायरल हो रही है –
इसके अलावा सोशल मीडिया पर कई लोग शिवसेना पर इसलिए भी प्रश्न उठा रहे हैं कि आखिर उस असलम शेख को कैबिनेट में कैसे जगह मिली, जिसने 1993 के मुंबई धमाकों के आरोपी याकूब मेमन की फांसी रोकने के लिए दया याचिका दायर की थी। वर्ष 2015 में जब याकूब मेमन को मिली मौत की सजा के बाद कई लोगों ने इस घटना में मारे गए लोगों का मजाक उड़ाते हुए याकूब मेमन के लिए दया याचिका दायर की थी। इस याचिका पर हस्ताक्षर करने वाले राजनेताओं में असलम शेख शामिल थे।
दिलचस्प बात तो यह है कि अपने एक संपादकीय में सामना ने याकूब मेमन की दया याचिका पर हस्ताक्षर करने वालों को खूब खरी खोटी सुनाई थी। इस अखबार में लिखा था, “जो 1993 के बम विस्फोटों के दोषियों के साथ सहानुभूति जता रहे हैं, उनपर देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाना चाहिए। याकूब मेमन की फांसी का विरोध करने वाले असल में देश के दुश्मन हैं”। ऐसे में सवाल उठता है कि अब ऐसा क्या हुआ कि असलम शेख, जो कल तक शिवसेना के लिए देश का दुश्मन था, अब कैबिनेट का सदस्य बन गया है। क्या जो इस पार्टी ने पहले ‘सामना’ में लिखा था, वो सब यूं ही था?
शिवसेना के हालिया निर्णयों से न सिर्फ महाराष्ट्र में आक्रोश है, अपितु उसके विश्वसनीय समर्थक भी काफी आहत हुए हैं। केवल सत्ता प्राप्त करने के लिए नैतिकता, आदर्शों, यहां तक कि अपनी आत्मा की तक को त्याग देना कहां तक उचित है? यदि बालासाहेब ठाकरे आज जीवित होते, तो वे वर्तमान परिस्थितियों को देखकर अपना सिर पकड़ लेते और अपने आप से पूछते, ‘क्या इसी दिन के लिए मैंने शिवसेना को अपना सर्वस्व अर्पण किया था?”