उत्तर प्रदेश में चुनाव होने में अभी 2 साल बाकी है लेकिन लगता है कि 3 साल से राज्य की सत्ता से बाहर बैठे हुए यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अभी से चुनावों की तैयारी करना शुरू कर दिया है। ज़ी न्यूज़ की एक रिपोर्ट के अनुसार अखिलेश यादव इस साल के अंत तक हर सीट के लिए उम्मीदवार तय कर सकते हैं। वे इससे पहले हर सीट पर जाकर स्वयं विश्लेषण करेंगे, और सत्तासीन पार्टी के विधायकों को मात देने की रणनीति पर काम करेंगे।
ज़ी न्यूज़ की ही रिपोर्ट के अनुसार इस बार अखिलेश यादव पिछली बार की तरह कांग्रेस या बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन तो नहीं करेंगे, लेकिन उनके नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करने की पूरी कोशिश करेंगे। बता दें कि हाल ही के दिनों में बसपा के दो कद्दावर नेता रामप्रसाद चौधरी और सीएल वर्मा के साथ कई पूर्व विधायकों ने सपा ज्वाइन की थी। इसके साथ ही अब की बार अखिलेश यादव जातीय समीकरणों पर भी खास ध्यान देने वाले हैं। लेकिन जिस तरह उनकी सारी रणनीति पिछली बार भाजपा की आँधी में ओझल हो गयी थी, क्या इस बार वे उसमें कोई अंतर लाने में कामयाब हो पाएंगे?
उत्तर प्रदेश के अधिकतर यादव वोटर्स समाजवादी पार्टी के लिए ही वोट करते हैं। अब इनके अलावा अखिलेश राज्य के ब्राह्मण और कुर्मी वोटर्स को भी अपनी ओर आकर्षित करना चाहते हैं। दलित वोट्स को पाने के लिए वे पहले ही BSP के नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करना शुरू कर चुके हैं। उधर पश्चिमी UP में वोट बैंक हासिल करने के लिए वे राष्ट्रीय लोक दल के साथ भी गठबंधन कर सकते हैं। बता दें कि पिछले वर्ष सम्पन्न हुए लोकसभा चुनावों में UP में भाजपा को भारी सफलता हासिल हुई थी और राज्य की 80 लोकसभा सीटों में से 62 पर जीत हासिल की थी। इसके साथ ही भाजपा को राज्य में लगभग 50 प्रतिशत वोट्स हासिल हुए थे। यानि राज्य के लगभग आधे वोटर्स ने भाजपा को ही अपना वोट दिया था।
दूसरी तरफ इन चुनावों में अखिलेश यादव की पार्टी SP को सिर्फ 18 प्रतिशत वोट्स ही मिले थे, और पार्टी को सिर्फ पांच सीटें मिली थीं। यही कारण है कि भाजपा के मजबूत जनाधार का मुक़ाबला करने के लिए अभी से अखिलेश सुपर एक्टिव मोड में आ गए हैं।
हालांकि, उन चुनावों में अखिलेश यादव ने जो गलती की थी, वही गलती वे इस बार भी दोहराने जा रहे हैं। दरअसल, पिछली बार जब अखिलेश यादव ने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया था, तो काडर लैवल पर दोनों पार्टियों के बीच खूब घमासान देखने को मिला था। सपा के यादव और बसपा के दलित वोटर्स के बीच समन्वय नहीं बन पाया था और चुनावों में इन दोनों ही पार्टियों की दुर्गति हुई थी। अब अखिलेश दोबारा दलित वोटर्स को लुभाने के चक्कर में बसपा के नेताओं को पार्टी में शामिल करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। इससे पार्टी में मौजूद यादव नेता ही पार्टी का बहिष्कार करना शुरू कर देंगे और पार्टी में फूट पड़ने के आसार बढ़ जाएंगे। यानि अखिलेश यादव के दलित-प्रेम ने जिस तरह 2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी की नैया को डुबाया था, ठीक वैसे ही अगर वे अबकी बार BSP के नेताओं को पार्टी में शामिल करते हैं, तो आने वाले चुनावों में भी हमें ऐसी ही तस्वीर देखने को मिल सकती है।
अब जब चुनावों में समाजवादी पार्टी भाजपा की योगी सरकार का मुक़ाबला करने उतरेगी तो एक तरफ भाजपा के पांच सालों का रिपोर्ट कार्ड होगा, तो दूसरी तरफ केंद्र की मोदी सरकार और स्वयं पीएम मोदी का योगी सरकार को समर्थन रहेगा। ऐसे में अखिलेश भी इस बड़ी चुनौती को समझकर अभी से चुनावी तैयारी में जुट गए हैं। अब देखना यह होगा कि आने वाले दिनों में वे कैसे अपनी बनाई रणनीति का अनुसरण करते हैं और इसका चुनावों में किस हद तक उन्हें फायदा मिल सकेगा।