BJP ने दिल्ली विधान सभा चुनावों के लिए अपने उम्मीदवारों की आखिरी लिस्ट जारी कर चुकी है और इसी के साथ शिरोमणि अकाली दल के साथ दिल्ली में चुनावी नाता भी टूट गया। दिल्ली की डेमोग्राफी देखे तो कालकाजी, तिलक नगर, हरी नगर और रजौरी गार्डेन जैसे क्षेत्रों में SAD की अच्छी पकड़ थी और वह BJP के गठबंधन में इन्हीं क्षेत्रों में चुनाव लड़ती थी। परंतु इस बार के विधान सभा चुनावों में यह टूट गया और BJP अकेले ही चुनाव मैदान में उतरेगी।
दरअसल, संशोधित नागरिकता कानून (CAA) को लेकर बीजेपी और अकाली दल में ठन गई है। दिल्ली एसजीपीसी के अध्यक्ष और अकाली दल के नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने सोमवार को ऐलान किया कि पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव न लड़ने का फैसला किया है। हालांकि, इसके बाद BJP ने SAD को पुनर्विचार करने के लिए कहा था।
बता दें कि शिरोमणि अकाली दल CAA के मुद्दे पर BJP के खिलाफ है बावजूद इसके कि इससे पाकिस्तानी सिख इससे सबसे अधिक लाभान्वित होंगे।
वैसे भी सिख समुदाय के बीच भी SAD की लोकप्रियता घट रही है, और इसका कारण है बादल परिवार का इस पार्टी पर अधिकार। यह पार्टी तो अकाली आंदोलन से निकली, जिसमें सिखों के कल्याण और राजनीतिक प्रतिनिधि की बात की गयी थी। हालांकि, जब से बादल परिवार ने पार्टी का कार्यभार संभाला है, तब से वह केवल अपने परिवार के कल्याण के लिए काम कर रहे हैं।
BJP ने CAA का विरोध करने पर SAD को छोड़ कर एक सराहनीय कदम उठाया है। बादल परिवार की घटती लोकप्रियता और भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण यह पार्टी अपने सबसे बुरे दौर में है और इसके बाद इसने CAA का विरोध कर अपने आप को सिखों के बीच भी कमजोर कर लिया। इस तरह से अगर इस पार्टी ने सीख नहीं ली तो दिल्ली के अलावा, पंजाब में भी अपने जनाधार खो देगी।
जिस पार्टी ने सिख आंदोलन की राजनीतिक शाखा के रूप में तैयार किया गया था, उसने अचानक से धर्मनिरपेक्ष रुख अपना लिया और पंजाब विधानसभा में संशोधन की मांग करते हुए नागरिकता संशोधन कानून में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से मुसलमानों को शामिल करने की मांग की।
SAD का CAA पर यह कदम बहुत घटिया और पूर्वाग्रह से पूर्ण है। इस पार्टी ने यह दावा किया था कि उसने संसद में इस कानून के पक्ष में मतदान किया था क्योंकि वे समझ नहीं पायी थी कि इस कानून का क्या मतलब है। अब तो केवल अकाली दल ही यह स्पष्ट कर सकता है कि इतना सीधा सा कानून में इतना जटिल क्या है कि वह इसे समझने में विफल रहा। इस बहाने से यह पार्टी अपने यू-टर्न को नहीं छिपा सकता है।
शिरोमणि अकाली दल ने पंजाब के सीएम, अमरिंदर सिंह को भी CAA के खिलाफ प्रस्ताव लाने के लिए बधाई तक दे डाला। अकाली दल के विधायक दल के नेता शरणजीत सिंह ढिल्लों ने भी संशोधन का सुझाव दिया और कहा, “पार्टी चाहती है कि कांग्रेस हजारों सिखों को दी गई राहत का विरोध न करे, लेकिन केवल मुसलमानों को राहत देने पर ध्यान केंद्रित करे।” अगर SAD ने इस नागरिकता संशोधन क़ानून को समझा होता तो इस तरह के संशोधन का सुझाव नहीं देती।
अपने इस रुख के साथ, SAD ने यह दिखाया है कि सिख समुदाय के कल्याण के लिए किया गया सभी कार्य केवल राजनीतिक उपकरण है। राजनीतिक लोकप्रियता और वोट बटोरने के लिए पार्टी ने सिख भावनाओं का इस्तेमाल किया है।
बीजेपी को पंजाब में भी डंप कर देना चाहिए क्योंकि एक तरह से देखा जाए तो यह पार्टी एनडीए पर बोझ है। 2017 के पंजाब विधानसभा चुनावों के दौरान SAD को केवल 15 सीटों ही मिल सकी थी। अकाली दल ने पिछले साल लोकसभा चुनावों में कोई अच्छा प्रदर्शन नहीं किया था और केवल दो सीटें जीतीं। शिरोमणि अकाली दल को मोदी कैबिनेट में एक कैबिनेट मंत्रालय भी मिला हुआ है। परंतु जब इस पार्टी को मोदी सरकार के साथ खड़ा होना चाहिए था तब इस पार्टी ने राजनीतिक दबाव के आगे घुटने टेक दिए।
SAD आंतरिक कलह से भी जूझ रही है। पिछले साल, SAD नेता और राज्यसभा सांसद, सुखदेव सिंह ढींडसा ने पार्टी अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया पर सवाल उठाए थे। SAD के भीतर बादल परिवार के खिलाफ भावना बढ़ रही है, जिसके कारण पार्टी में द्वंदता बढ़ गई है।
इन सब मामलों को देखते हुए और CAA और NRC पर यू-टर्न लेते हुए, शिरोमणि अकाली दल ने बीजेपी को आड़े हाथों लेने की कोशिश की है। अब, भाजपा को चाहिए की SAD को उसका स्थान दिखाये और NDA से बाहर करे।